उत्तराखंड: आज वर्ल्ड हियरिंग डे यानी विश्व श्रवण दिवस है. इस मौके पर आइए जानते हैं नवजात शिशुओं में होने वाली एक ऐसी खास बीमारी के साथ-साथ इसके लक्षणों के बारे में. आपको पता होना चाहिए कि हमारे कानों पर आज की आधुनिक टेक्नोलॉजी का क्या असर पड़ रहा है.
जन्म लेते ही बच्चा अगर चुप है तो समझिए गड़बड़ है:वर्ल्ड हियरिंग डे के मौके पर आपको कानों से जुड़ी एक ऐसी बीमारी के बारे में हम बताने जा रहे हैं जो कि बच्चों में जन्मजात होती है. इस बीमारी का पता अक्सर परिवार को तब चलता है जब इसका इलाज संभव नहीं रहता है. यहां तक कि बच्चे की मां को भी इस बीमारी का अंदाजा नहीं लग पाता है. यह बीमारी है बच्चों में पैदाइश बहरापन या फिर कम सुनाई देने की.
अगर बच्चा कुकर की सीटी पर रिएक्ट नहीं कर रहा तो सावधान: इस बीमारी का पहला और सबसे बड़ा लक्षण यह है कि बच्चा पैदा होने के बाद कुछ बोलने की कोशिश तो करता है लेकिन आवाज नहीं निकलती है. इसके अलावा नवजात शिशु सामान्यतः बुलाने पर प्रतिक्रिया नहीं देते हैं और डोर बेल, कुकर की सीटी जैसी आवाजों से सामान्यतः बच्चे चौंक जाते हैं या फिर डर जाते हैं, लेकिन इस बीमारी वाले बच्चे इन आवाजों पर भी सामान्य सी प्रतिक्रिया देते हैं. इस बीमारी से ग्रसित बच्चे काफी देर बाद केवल मम्मी पापा ही बोल पाते हैं. क्योंकि यह भी वह आपके फोटो को देखकर बोल पाते हैं. जन्मजात बहरेपन या फिर कम सुनने वाले नवजात शिशु का अगर समय रहते पता नहीं लगा तो ऐसे बच्चों की अधिकतम 5 से 6 साल के बाद सुनने की शक्ति को वापस लाना लगभग नामुमकिन होता है. इसलिए हर नवजात शिशु का जन्म के समय ही OAE (Otoacoustic Emissions test) टेस्ट करना बेहद जरूरी है.
राजस्थान और केरल सरकार ने OAE टेस्ट किया अनिवार्य:जन्मजात बच्चों से जुड़ी इस बहरेपन की बीमारी को लेकर राजस्थान सरकार और केरल सरकार ने बेहद संवेदनशीलता दिखाई है. इन प्रदेशों में जन्म लेने वाले हर एक बच्चे का OAE टेस्ट अनिवार्य किया गया है. क्योंकि जन्म के समय इस छोटे से टेस्ट से बच्चे के कानों की सुनने की क्षमता का पता लग पाता है और बच्चा ठीक से सुन पा रहा है या सुनने की क्षमता में कोई कमी है उसका आकलन किया जा सकता है.
उत्तराखंड की अगर बात करें तो उत्तराखंड में गंगाराम हॉस्पिटल से देहरादून मैक्स हॉस्पिटल में आई ENT डॉक्टर इरम खान ही अपने अस्पताल में जन्म लेने वाले हर एक बच्चे का OAE टेस्ट करती हैं. सरकार द्वारा प्रदेश के अन्य सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में टेस्ट को लेकर कोई गाइडलाइन नहीं है. डॉक्टर इरम बताती हैं कि उत्तराखंड में भी हर एक नवजात शिशु का यह टेस्ट होना बेहद जरूरी है. ताकि हम अपने समाज में इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक कर सकें और कम से कम यदि हम इस तरह की बीमारी से ग्रसित बच्चों का समय से पता लगाएं तो समय रहते इन बच्चों के जीवन को बदला जा सकता है.
जन्मजात बहरेपन का इलाज केवल 5 साल की उम्र तक संभव: देहरादून मैक्स हॉस्पिटल में ईएनटी स्पेशलिस्ट डॉक्टर इरम खान बताती हैं कि जन्म से कम सुनने वाले बच्चे या फिर बहरेपन के साथ जन्म लेने वाले बच्चों के जीवन को बदला जा सकता है. लेकिन इसके लिए इस बीमारी का समय रहते पता लगना बेहद जरूरी है. डॉक्टर इरम बताती हैं कि इस तरह के बच्चों का अगर जन्म के समय ही ओए टेस्ट किया जाए, तो उससे बच्चे की सुनने की क्षमता का पता लगता है. इसके बाद इसे कोक्लियर इम्प्लांट सर्जरी (Cochlear Implant Surgery) के जरिए ठीक किया जा सकता है.