हैदराबाद : कोरोना वायरस महामारी ने विश्व भर के करोड़ों लोगों की पूरी दिनचर्या को बदल दिया है. कोविड-19 महामारी के कारण आर्थिक और श्रम बाजार को बड़ा झटका लगा है. साथ ही लोगों के जीवन और आजीविका पर भी भारी प्रभाव पड़ा है. दुर्भाग्य से बच्चे अक्सर सबसे पहले पीड़ित होते हैं. संकट की घड़ी लाखों कमजोर बच्चों को बाल श्रम में धकेल सकती है. पहले से ही, बाल श्रम में अनुमानित 152 मिलियन बच्चे हैं, जिनमें से 72 मिलियन जोखिमभरा काम कर रहे हैं. इन बच्चों को अब और भी कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, जो अधिक कठिन हैं. इसके साथ ही वे लंबे समय तक काम कर रहे हैं.
दुनियाभर में बाल श्रम की स्थिति
- दुनिया भर में हर दस में से एक बच्चा बाल मजदूरी कर रहा है.
- हाल के वर्षों में कमी की दर दो-तिहाई कम हो गई है, जबकि सन 2000 के बाद से अब तक बाल श्रम में बच्चों की संख्या 94 मिलियन घट गई है.
- निम्न-मध्यम आय वाले देशों में नौ प्रतिशत बच्चे और ऊपरी-मध्यम आय वाले देशों में सात प्रतिशत बच्चे बाल श्रम में है.
- प्रत्येक राष्ट्रीय आय समूह में बाल श्रम में बच्चों की पूर्ण आंकड़े इंगित करते हैं कि बाल श्रम में 84 मिलियन बच्चे हैं, जिन में से 56 प्रतिशत माध्यम आय वाले देशों में हैं और अतिरिक्त दो मिलियन उच्च आय वाले देश में रहते हैं.
- 5-17 वर्ष की आयु के बीच के 152 मिलियन बच्चे बाल श्रम में थे, लगभग आधे 73 मिलियन जोखिमभरे बाल श्रम में शामिल हैं.
- बाल श्रम के शिकार लगभग आधे (48 प्रतिशत) 5-11 वर्ष की आयु के थे व 28 प्रतिशत 12-14 वर्ष के थे. साथ ही 24 प्रतिशत 15-17 वर्ष के थे.
- बाल श्रम मुख्य रूप से कृषि (71 प्रतिशत) में केंद्रित हैं, इसमें मछली पकड़ना, वानिकी, पशुधन पालन और जलीय कृषि में शामिल हैं. अन्य कामों में 17 प्रतिशत और खनन सहित औद्योगिक क्षेत्र में 12 प्रतिशत बच्चे शामिल हैं.
- नवीनतम ग्लोबल एस्टिमेट्स बताते हैं कि 152 मिलियन बच्चों में 64 मिलियन लड़कियां और 88 मिलियन लड़के विश्व स्तर पर बाल श्रम में हैं.
- बाल श्रम करने वालों में से लगभग आधे निरपेक्ष रूप से 73 मिलियन जोखिमभरे कामों में लगे हुए हैं, जो सीधे उनके स्वास्थ्य, सुरक्षा और नैतिक विकास को खतरे में डालते हैं.
भारत की स्थिति
2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 5-14 आयु वर्ग के बाल श्रमिकों की कुल संख्या 4.35 मिलियन और 5.76 मिलियन है, जो कुल 10.11 मिलियन हैं. इसके अलावा, भारत में किशोरों की कुल संख्या 22.87 मिलियन है, जो कुल (5-18 वर्ष की आयु वर्ग में) 33 मिलियन के आसपास है.
बाल श्रम का कारण
- बच्चों को काम करने के लिए मजबूर किया जाता है, क्योंकि पारिवारिक आय पर्याप्त नहीं होती है. कोविड-19 के कारण कई लोगों की नौकरी चली गई, परिवारों द्वारा वित्तीय संकटों का सामना कई गुना बढ़ गया. इन परिवारों को एक दिन में दो समय का भोजन लेने के लिए अतिरिक्त सदस्यों की मदद लेनी पड़ती है, ये भी एक कारण है कि बच्चे बाल श्रम का हिस्सा बन रहे हैं या फिर परिवार के स्वामित्व वाले उद्यमों और खेतों पर काम कर रहे हैं.
- बच्चों को सस्ता श्रम माना जाता है और बड़े पैमाने पर वित्तीय घाटे का सामना करने वाले व्यवसायों और उद्यमों के साथ, सस्ते श्रम की मांग बढ़ती जा रही है. शहरी केंद्रों से रिवर्स माइग्रेशन के कारण, वयस्क श्रम की कमी होती जा रही है. बच्चे, विशेष रूप से किशोर, इस अंतर को भरने की मांग में तेजी से बढ़ रहे हैं.
- घर पर रहने वाले बच्चे, विशेषकर लड़कियों पर दबाव, घर के कामों और भाई-बहन की देखभाल में योगदान करना होगा. अधिक से अधिक लड़कियों को शिक्षा से दूर और घर के कामों की ओर बढ़ा दिया जाता है.
- स्कूल तक पहुंच के अभाव में बच्चे शिक्षा से धीरे-धीरे दूर होते जा रहे हैं. कोविड-19 ने भी स्कूलों को बंद करने और ऑनलाइन शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करने का काम किया है, जिससे निम्न आय वर्ग के कई बच्चों के लिए शिक्षा को ट्रैक में रखना मुश्किल हो जा रहा है.
कोविड-19 और उसका प्रभाव
- कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन फाउंडेशन के अध्ययन का शीर्षक 'बच्चों के लिए विशेष संदर्भ के साथ कम आय वाले परिवारों पर तालाबंदी और आर्थिक विघटन का प्रभाव पर एक अध्ययन' है, चूंकि लॉकडाउन ने वित्तीय संकट और गरीबी को जन्म दिया है, यह परिवारों को हताशा और सकंट के दौर से गुजार रहा है.
- महामारी के कारण बड़ी संख्या में बच्चे अपने गांवों में लौट आए हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में पहले से चल रही आजीविका संकट को देखते हुए, जिन बच्चों पर नजर नहीं रखी जाती है, वे तस्करी की चपेट में आ जाते हैं. भीड़भाड़ वाले राहत शिविरों, संगरोध केंद्रों और अपने माता-पिता के साथ घर लौटने वालों पर भी खतरा मंडराता रहा है.