हैदराबाद : जैव विविधता और प्राकृतिक संपदा की महत्व को ध्यान में रखकर 6 नवंबर को युद्ध और सशस्त्र संघर्ष में पर्यावरण के शोषण को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 नवंबर 2001 को इस संबंध प्रस्ताव पास किया. प्रस्ताव के माध्यम से सभी राज्यों को इस दिवस के बारे में जागरूकता फैलाने का आग्रह किया गया है. संयुक्त राष्ट्र सहस्राब्दी विकास लक्ष्य घोषणापत्र को ध्यान में रखकर आने वाली पीढ़ियों के लिए जैव विविधता और प्राकृतिक संपदा की रक्षा पर बल दिया गया है.
युद्ध और सशस्त्र संघर्ष के कारण संबंधित इलाके में जान-माल का व्यापक नुकसान होता है. इस दौरान आम लोग और सैनिकों के घायल और मरने की गणना होती है. आधारभूत संरचना और अन्य संपत्तियों के नुकसान का आकलन होता है. सैन्य लाभ के लिए इस दौरान कई बार जल स्रोतों को प्रदूषित कर दिया जाता है, फलसों को जला दिया जाता है. इस दौराम जल-जंलग और जमीन तबाह हो जाता है. पशुओं को भी मार दिया जाता है. लेकिन युद्धग्रस्त इलाके में वन-पर्यावरण, जल संसाधन व अन्य जैव विविधता के नुकसान का न तो आकलन किया जाता है न तो उसके सुरक्षा के लिए कोई नीति थी. इसी को ध्यान में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने कई कदमों को उठाया है.
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) ने अपने अध्ययन में पाया कि बीते 60 सालों में हुए ज्यादातर आंतरिक संघर्षों में कम से कम 40 फीसदी संघर्षों के पीछे की लड़ाई प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा करना है. इनमें कीमती लकड़ी, हीरे, सोना, तेल, उपजाऊ भूमि, पानी व अन्य वस्तुएं शामिल हैं. यूएनईपी का अनुमान है कि प्राकृतिक संसाधनों पर कब्जा के लिए आने वाले समय में संघर्ष दोगुनी होने की संभावना है.
संयुक्त राष्ट्र लगातार प्रयास कर रहा है कि प्राकृतिक संसाधन रोजगार का प्रमुख हिस्सा है और पारिस्थितिकी तंत्र का प्रमुख घटक है. प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा के बिना वैश्विक स्तर पर स्थायी शांति नहीं हो सकती है. संयुक्त राष्ट्र धरती पर मौजूद संसाधनों के लिए संघर्ष को रोकने के लिए लगातर रणनीतियों पर काम कर रहा है.