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संत की समाधि पर बना भोले का यह मंदिर, जानें महात्मय

सीकर के फतेहपुर कस्बे में स्थित बुद्धगिरी जी महाराज की मढ़ी पर पिछले 215 साल से हर साल शिवरात्रि के दिन विशाल मेला आयोजित किया जाता है. इस मेले में लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं.

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Published : Mar 11, 2021, 6:27 PM IST

सीकर : महाशिवरात्रि के पर्व को लेकर देशभर में अलग-अलग मान्यताएं हैं. देशभर में भोले के भक्त इस पर्व को अलग-अलग रीति-रिवाज से मनाते हैं. सीकर जिले में भी अलग-अलग जगह कई बड़े शिव मंदिर हैं और हर मंदिर की एक अलग कहानी है. मान्यता है कि यहां आने वाले भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और भगवान भोले का आशीर्वाद मिलता है.

मान्यता है कि सीकर के फतेहपुर कस्बे में स्थित बुद्धगिरी जी महाराज की मढ़ी की. यहां पर पिछले 215 साल से हर साल शिवरात्रि के दिन विशाल मेला लगता है. कहा जाता है कि सीकर के फतेहपुर के बीहड़ में बुध गिरी जी महाराज ने तपस्या की थी.

विशाल मेले का होता है आयोजन

शिव भक्ति में लीन संत शिवरात्रि के दिन समाधि ली और उसके बाद से हर साल यहां पर मेला लगना शुरू हो गया. सीकर जिले के अलावा शेखावाटी के सभी इलाकों से यहां पर मेले में धोक लगाने लाखों श्रद्धालु आते हैं.

शिवरात्रि के दिन विशाल मेले का आयोजन.

समाधि की जगह बनाया शिवालय

जिस जगह पर संत ने समाधि ली थी, वहां पर शिवालय बनाया गया है और भगवान शिव की पूजा की जाती है. इसके साथ-साथ बुद्ध गिरी महाराज की मूर्ति भी लगाई गई है. यहां पर भगवान की शिव की पूजा को विशेष माना जाता है.

फतेहपुर कस्बे में स्थित बुद्धगिरी जी महाराज की मढ़ी

हिंगलाज माता का मंदिर भी है यहां

बुध गिरी जी महाराज की जहां पर मढ़ी बनाई गई है, यहां पर हिंगलाज माता का मंदिर भी है. बताया जाता है कि बुध गिरी जी महाराज खुद पाकिस्तान के इलाके से हिंगलाज माता की मूर्ति लेकर आए थे और यहां पर मंदिर बनाया था. आज भी हिंगलाज माता का मंदिर या तो पाकिस्तान में है या फिर यहां पर.

चंग ढप भी इसी दिन से होता है शुरू

होली के पर्व पर शेखावाटी इलाके की सबसे बड़ी खासियत और पहचान यहां के चंग ढप के कार्यक्रम होते हैं. मेले के दिन सभी कलाकार यहां पर अपनी अपनी मंडली लेकर आते हैं और प्रस्तुति देते हैं. इसके बाद होली तक हर गली मोहल्ले में यह कार्यक्रम चलते हैं, लेकिन शुरुआत करने के लिए इसी मेले को चुना जाता है.

शहर में नहीं आते हैं गद्दी नरेश

बुध गिरी जी महाराज की गद्दी को लेकर और मान्यता है कि यहां पर जो भी महंत बैठते हैं, वह फतेहपुर शहर के अंदर नहीं जाते हैं. इसके पीछे मान्यता है कि एक बार खुद बुध गिरी महाराज भिक्षा के लिए शहर में गए थे, तब किसी ने उनको टोक दिया था. इसके बाद वे कभी शहर में भिक्षा लेने नहीं गए और अपने आसन से नहीं उठे. आज भी यहां पर बैठने वाले महंत शहर के अंदर नहीं घुसते हैं.

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