हाईकोर्ट के फैसले के बाद वाराणसी में मनाई गई खुशियां. प्रयागराज/वाराणसीः इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी सहित अन्य देवी देवताओं की नियमित पूजा के मामले में अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी की याचिका खारिज कर दी है. यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने शुक्रवार को दिया. वाराणसी के ज्ञानवापी स्थित श्रृंगार गौरी की नियमित पूजा के अधिकार मामले में दोनों पक्षों की लंबी बहस के बाद 23 दिसंबर 2023 को निर्णय सुरक्षित कर लिया था.
श्रृंगार गौरी मामले में महत्वपूर्ण बिंदु, ज्ञानवापी परिसर में श्रृंगार गौरी सहित अन्य देवी देवताओं की नियमित पूजा किए जाने के अधिकार को लेकर राखी सिंह व नौ अन्य महिलाओं ने वाराणसी जिला न्यायालय में दीवानी मुकदमा किया है. अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी वाराणसी ने जिला न्यायालय में वाद की पोषणीयता पर आपत्ति करते हुए अर्जी दाखिल की कि कोर्ट को प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट 1991 के प्रावधानों के तहत उक्त वाद पर सुनवाई करने का अधिकार नहीं है. जिला न्यायालय ने कमेटी की अर्जी खारिज कर दी, जिसे हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में चुनौती दी गई थी. हाईकोर्ट ने भी अर्जी खारिज कर दी है.
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वादी महिलाओं ने बांटी मिठाइंयांःवहीं, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसला के बाद वाराणसी में वादी पक्ष की महिला और वकीलों ने जमकर मिठाइयां बांटी और एक-दूसरे का मुंह मीठा कराया. वादी पक्ष की महिलाओं का कहना है कि प्रतिवादी यानी मुस्लिम पक्ष लगातार मामले में रोड़े अटका आने की कोशिश कर रहा है, लेकिन एक के बाद एक उन्हें मुंह की खानी पड़ रही है. आज न्यायालय के फैसले के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि मुख्य मुकदमा तेजी से आगे बढ़ेगा और उसमें कोई रोक-टोक नहीं होगी.
क्या है प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट. दरअसल राखी सिंह और अन्य महिलाओं ने पूजा के अधिकार को लेकर वाराणसी की जिला अदालत में सिविल वाद दायर किया था. जिस पर मस्जिद कमेटी ने वाराणसी के न्यायालय में पोषणीयता पर आपत्ति करते हुए अर्जी दाखिल की थी कि कोर्ट ऑफ प्लेसिस आफ वरशिप एक्ट 1991 के मुताबिक अदालत को वाद सुनने का अधिकार है ही नहीं, जिसे वाराणसी की अदालत ने खारिज कर दिया था. इसके बाद जिसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी. मुस्लिम पक्ष का तर्क था कि उपासना स्थल अधिनियम से नियमित पूजा प्रतिबंधित है. क्योंकि पूजा से स्थल की धार्मिक प्रकृति से छेड़छाड़ हो सकती है, जो कहीं से भी कानूनन सही नहीं है. इसलिए यहां नियमित पूजा की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए. मर्यादा कानून के आधार पर सिविल वाद को मियाद बाधित करार दिया और कहा गया था कि चालाकी से पूजा के अधिकार की मांग दाखिल की गई है जो 1991 के कानून का उल्लंघन होगा.
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