पानीपत :'कौन कहता है आसमान में सुराग हो नहीं सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो', इस कहावत को सच कर दिखाया है केरल से हरियाणा में काम करने आई एक महिला ने, जिसने अपने पति की मौत के बाद मेहनत कर बच्चों की परवरिश की और उन्हें बुलंदियों तक पहुंचाया. मिसाल बन चुकी पानीपत की ये महिला आज भी 64 साल की उम्र में बेटे के साथ उसके बिजनेस में हाथ बंटा रही हैं.
हम बात कर रहे हैं, शोभना नामक महिला की, जो 1984 में केरल से अपने पति राजेश के साथ हरियाणा के हिसार स्थित हांसी हलके में आई थी. उनके पति हांसी में एक बिस्कुट फैक्ट्री में मशीन ऑपरेटर थे. 1988 में इस फैक्ट्री के मालिक के भाई ने जब पानीपत में नया प्लांट लगाया था, शोभना के पति राजेश को पानीपत प्लांट में मशीन ऑपरेटर रख लिया गया था. शोभना के पति की 1994 में किडनी डैमेज होने के कारण मौत हो गई. उसके बाद से शोभना के संघर्ष का सिलसिला जारी हो गया.
शोभना ने अपने पति की मौत के बाद भी हिम्मत नहीं हारी. जब पति की मौत हुई, उनके पास एक बेटा और तीन बेटियां थीं. सास-ससुर, रिश्तेदार, मां-बाप उनका साथ देने वाला कोई भी नहीं था. सामाजिक संगठनों की सहायता से उन्हें एक पटवारी के पास मुंशी रखवा दिया गया. वह घर-घर जाकर वोटर लिस्ट का काम, बीपीएल सर्वे का काम करने लगी. वहीं, बच्चों को अनाथ आश्रम में छोड़कर घरों में बर्तन मांजना, घर की साफ-सफाई का काम भी शोभना ने किया. उसके बाद शोभना बताती हैं कि गाय का दूध बेचकर वह अपने बच्चों का पालन पोषण करने लगी.