सागर।कई ऐसी बीमारियां मानव शरीर के लिए परेशानी का सबब बनती है. जिनका इलाज रहन-सहन, खानपान और लाइफस्टाइल में परिवर्तन कर किया जा सकता है. मेडिकल साइंस की पुरानी इलाज की पद्धतियों के कारण हम कुछ समय के लिए इन बीमारियों पर नियंत्रण तो कर लेतें है, लेकिन पूरी तरह से बीमारी से मुक्ति नहीं पा सकते हैं. अब फ्रांस के पेरिस में स्थित INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) और सागर की बुंदेलखंड मेडिकल कालेज के विशेषज्ञ डाक्टर जल्द ही एक अध्ययन शुरू करने जा रहे हैं. जिसके जरिए वो यह पता लगाएगें कि लोगों के रहन-सहन, खान-पान और जीवन चर्या के कारण कौन सी बीमारियां हैं. जो लोगों को परेशानी का सबब बनती है और इन बीमारियों को दवाईयों और मंहगें इलाज की अपेक्षा खान-पान और रहन- सहन से कैंसे कंट्रोल किया जा सकता है. फिलहाल बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज और INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) की बातचीत अंतिम दौर में है. इस रिसर्च के जरिए ग्रामीण और प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले और शहर में रहने वाले लोगों का अध्ययन किया जाएगा और कई बीमारियों के नियंत्रण के लिए इलाज विकसित किया जाएगा.
माइक्रोबायोम आधारित इलाज पर अध्ययन:बुंदेलखंड मेडिकल कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सुमित रावत बताते हैं कि मेडिकल साइंस में इलाज की पुरानी पद्धतियां ज्यादातर हार्मोन और केमिकल आधारित होती हैं. मेडिकल साइंस में 12-13 हार्मोन और 15- 20 केमिकल की खोज की गयी है. अभी तक ग्लूकोस और यूरिया जैसे दूसरे केमिकल्स पर आधारित इलाज होता था, लेकिन मेडिकल साइंस दूसरे तरीके से बीमारियों के इलाज पर शोध और अध्ययन कर रही है. हमारे शरीर में जो बैक्टीरिया मौजूद होते हैं, जो हमारे त्वचा, मुंह और आंत में पाए जाते हैं, इनको माइक्रोबायोम बोलते हैं. शरीर की अपनी कोशिकाओं के अलावा शरीर के अंदर मौजूद बैक्टीरिया की कोशिकाएं शरीर के अंदर सक्रिय रसायन बनाते हैं. इनकी संख्या लगभग दो हजार तक हो सकती है. हमारे शरीर के केमिकल और बैक्टीरिया के केमिकल मानव शरीर के स्वास्थ्य पर प्रभाव डालते हैं. इस मामले में फ्रांस का जो INRAE (National Research Institute for Agriculture, Food and the Environment) संस्थान है. वहां के वैज्ञानिकों का दुनिया में जाना माना नाम है और पिछले 5 सालों में उन्होंने अलग तरह की रिसर्च करके सबका ध्यान खींचा है. हमारी INRAE से बातचीत चल रही है कि हम इनके साथ क्या काम कर सकते हैं या फिर उनकी पद्धति के अनुसार भारतीय परिवेश में कैसे अध्ययन कर सकते हैं.