रतलाम।शहर के दो बच्चे साढे़ 9 साल के ईशान और और उनकी दो जुड़वा बहनों मे से एक तनिष्का अब मोक्ष मार्ग पर चलने को तैयार है. दोनों बच्चों को गुरुवार सुबह जैन मुनिं बेलड़ी बंधु के मार्गदर्शन में सन्यासी बनने की दिक्षा दिलाई गई. जिसके बाद अब वे पूज्यनीय संत हो गए हैं. ये दोनों बच्चे अब महाराज साहब कहलाएंगे. खास बात यह है कि तनिष्का की बड़ी बन पलक 4 साल पहले ही मुमुक्क्षु की दीक्षा ले चुकी हैं.
नौ साल के ईशान और बहन पलक ने ली दीक्षा दीक्षा के दौरान भावुक हुए परिजन:अपने बच्चों को सांसारिक जीवन से विरक्त करते उन्हें संयम और मोक्ष के रास्ते पर विदा करते समय बच्चों के माता-पिता और परिजन भावुक हो गए, लेकिन संतों के दिखाए रास्ते पर चलने का निश्चय कर चुके इन बच्चों पर अब उसका कुछ भी प्रभाव देखने को नहीं मिला. बच्चे अपने चेहरे पर मुस्कान लिए हुए गुरुदेव बेड़ली बंधु के पास पहुंचे और दीक्षा ग्रहण की. इसके बाद इन बाल मुमुक्षु जैन भजनों पर झूमने लगे. गुरुवार को हुए दीक्षा समारोह में मुमुक्षु ईशान कोठारी ने दीक्षा ग्रहण की जबकि उनकी बहन तनिष्का को स्वास्थ्य कारणों से चलते कुछ दिन बाद दीक्षा दिलाई जाएगी. तनिष्का की बड़ी बहन पलक 4 साल पहले ही दीक्षा ग्रहण कर चुकी हैं.
नौ साल के ईशान और बहन पलक ने ली दीक्षा बाल जैनमुनियों के नाम भी बदल गए:जैन मुनि बनते ही इन बच्चों का नया नामकरण कर दिया गया है. पलक चाणोदिया अब साध्वीचर्या पंक्तिवर्षा श्रीजी और ईशान कोठारी बाल मुनि आदित्यचंद्र सागर जी के नाम से जाने जाएंगे. तनिष्का का नामकरण दीक्षा ग्रहण करने के बाद ही होगा. दोनों बाल जैनमुनि अब गुरुदेव के साथ ही रतलाम से विहार कर संतों के पथ पर चलने की शुरुआत करेंगे.खास बात यह है कि 9 साल के ईशान जैन परिवार के पूरे कुल में एकमात्र बालक हैं. इसके बावजूद परिवार ने उन्हें दीक्षा दिलाकर जैन मुनि बनाने के निर्णय लिया वे संयम पथ पर बढ रहे है.
नौ साल के ईशान और बहन पलक ने ली दीक्षा नौ साल के ईशान और बहन पलक ने ली दीक्षा संतों की तरह ही बात करते हैं गुरुकुल में पढ़े ईशान:रतलाम के टाटा नगर निवासी चाणोदिया परिवार की बेटियां हैं तनिष्का और पलक. दोनों ने 9th तक पढ़ाई की है. साढ़े 9 साल के भाई ईशान दूसरी तक ही पढ़े हैं, हालांकि उन्होंने यह शिक्षा हेमचंद्राचार्य गुरुकुल में हासिल की है. इसके बाद उन्होंने दीक्षा लेने का फैसला ले लिया. ईशान से आदित्यचंद्र सागर बने ईशान बातचीत भी किसी संत की ही तरह करते हैं. दीक्षार्थी बताते हैं कि संसार में सार नहीं है, छोटी उम्र में ही दीक्षा लेनी चाहिए क्योंकि बडी उम्र मे सारी क्रियाए शून्य हो जाती हैं. ईशान कहते हैं कि संसार में कुछ नहीं है, संयम पथ मे ही सार है, संत ही संयम को धारण करता है और डूबने वाला संसार मे जाता है.
नौ साल के ईशान और बहन पलक ने ली दीक्षा परिवार ने लिए सौभाग्य का समय:अपने बच्चों को जैनमुनि बनने की दीक्षा दिलाने वाले चाणोदिया परिवार के चेहरे पर भी खुशी दिखाई दी. वे इस अवसर को अपने लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं मानते हैं. जैन समाज में मुनि बनने के लिए दीक्षा दिलाने, केश लोचन और संथारा जैसी कई प्रथाएं हैं. जो वर्षों से संचालित हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि जिन बच्चों ने अभी ठीक से संसार देखा नहीं समझा नहीं उन्हें संसार का त्याग कर संयम अपना कितना समझ आएगा. हालांकि 14 साल की जुड़वा बहनें तनिष्का और पलक के साथ 9 साल के ईशान कोठारी धन, दौलत और संसार की दूसरी कीमती वस्तुओं को लुटा कर उनका त्याग कर संयम पथ पर बढ़ चले हैं.