नई दिल्ली : सपा के संस्थापक व समाजवादी आंदोलन को आगे बढ़ाने वाले नेताओं में अग्रणी मुलायम सिंह यादव 1967 से लेकर 1996 तक 8 बार उत्तर प्रदेश में विधानसभा के लिए चुने गए. एक बार 1982 से 87 तक विधान परिषद के सदस्य रहे. 1996 में ही उन्होंने लोकसभा का पहला चुनाव लड़ा और चुने गए. इसके बाद से अब तक 7 बार लोकसभा में पहुंचे, निधन के वक्त भी लोकसभा सदस्य थे. 1977 में वह पहली बार यूपी में मंत्री बने. तब उन्हें को-ऑपरेटिव और पशुपालन विभाग दिया गया. 1980 में लोकदल का अध्यक्ष पद संभाला. 1985-87 में उत्तर प्रदेश में जनता दल के अध्यक्ष रहे और फिर चुनाव होते ही 1989 में पहली बार यूपी के मुख्यमंत्री बने. 1993-95 में दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तभी उनके संपर्क में आए सूचना विभाग के पूर्व अधिकारी दिनेश गर्ग ने मुलायम सिंह को करीब देखने व जानने के बाद अपने अनुभव ईटीवी भारत के साथ शेयर किया. मुलायम सिंह यादव के व्यवहार और कार्यशैली को याद करते हुए उत्तर प्रदेश सूचना विभाग के पूर्व सूचना अधिकारी और अमृत विचार अखबार के स्थानीय संपादक दिनेश गर्ग का कहना है कि वह मुलायम सिंह यादव हमेशा फीडबैक जमीन से जुड़े और अपने साथ काम करने वाले लोगों से लिया करते थे. उनका सूचना तंत्र कभी एसी कमरों में बैठने वाले अफसर नहीं बने. इसीलिए वह अंतिम समय तक ऐसे नेता माने जाते रहे, कि जहां वह चले जाएं वहां हजारों की भीड़ अपने आप एकत्रित हो जाय.
दिनेश गर्ग ने बताया कि वैसे तो मुलायम सिंह यादव ने राजनीति के दांवपेंच उन्होंने 60 के दशक में राममनोहर लोहिया और चरण सिंह जैसे दिग्गज नेताओं से सीथा. राम मनोहर लोहिया ही उन्हें राजनीति में लेकर आए. लोहिया की ही संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ने उन्हें 1967 में टिकट दिया और वह पहली बार चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुंच गए थे. उसके बाद वह लगातार प्रदेश के चुनावों में जीतते रहे. विधानसभा तो कभी विधानपरिषद के सदस्य बनते रहे. उनकी पहली पार्टी अगर संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी थी तो दूसरी पार्टी बनी चौधरी चरण सिंह के नेतृत्व वाली भारतीय क्रांति दल, जिसमें वह 1968 में शामिल हुए. चरण सिंह की पार्टी के साथ जब संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ तो भारतीय लोकदल बन गया. ये मुलायम के सियासी पारी की तीसरी पार्टी बनी. फिर चौथी पार्टी के रूप में वह जनता दल और पांचवीं पार्टी के रुप में सजपा में शामिल हुए और छठवीं पार्टी के रुप में समाजवादी पार्टी का गठन किया.
दिनेश गर्ग का कहना है कि शुरूआती दिनों में पहलवानी का शौक रखने वाले मुलायम सिंह ने 55 साल तक राजनीति की. मुलायम सिंह 1967 में 28 साल की उम्र में बिना किसी राजनीतिक बैकग्राउंड के जसवंतनगर से पहली बार विधायक बने, तब से लेकर अंतिम समय तक वह राजनीति में एक्टिव रहे और एक सांसद के रुप में आखिरी सांस ली.
पूर्व सूचना अधिकारी और अमृत विचार अखबार के स्थानीय संपादक दिनेश गर्ग का कहना है कि उन्होंने बचपन व शिक्षा के दौर में मुलायम सिंह यादव के बारे में जितना सुना था, तब से उनके मन में उनके प्रति एक अलग छवि थी. लेकिन 1986 में अमृत प्रभात अखबार में पत्रकार के रूप में काम शुरू करने और 1984 में सूचना अधिकारी के रूप में उत्तर प्रदेश के सूचना एवं जनसंपर्क विभाग में अपनी सेवा शुरू करने के बाद उनका विचार पूरी तरह से मुलायम सिंह के प्रति बदल गया. 1993 में जब मुलायम सिंह यादव दूसरी बार मुख्यमंत्री बने तो उन्हें सितंबर 1994 में सूचना अधिकारी के रूप में उनके साथ काम करने का अवसर मिला. इस दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि एक मुख्यमंत्री किस तरह से बड़ी सादगी के साथ अपने पार्टी के नेताओं, कार्यकर्ताओं, विधायकों और छोटे अधिकारियों के साथ भी उसी लहजे में बात करते थे, जैसा वह बड़े स्तर के राजनेताओं और अधिकारियों के साथ किया करते थे. उनका आचरण और व्यवहार छोटा बड़ा ओहदा नहीं देखा करता था. वह एक छोटे सूचना अधिकारी के रुप में उनसे न जाने कितनी बार मिले और हर बार उन्होंने उतने ही सम्मान व शालीनता के साथ बात सुनी और अपने सुझाव दिए. छोटे अधिकारी व कर्मचारी की बात सुनने व समझने की कोशिश करने वाला कोई और राजनेता नहीं दिखा.
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पिछड़े वर्ग के उभरते नेताओं के लिए रोल मॉडल
मुलायम सिंह यादव पिछड़े वर्ग के उभरते नेताओं के लिए रोल मॉडल बन कर उभर रहे थे. एक जमाने में डकैतों के विरुद्ध अभियान के नाम पर किए जा रहे उत्पीड़न को मुद्दा बनाकर उन्होंने जिस तरह से अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया और पिछड़े वर्ग के लोगों को जोड़ा, वह काबिले तारीफ माना जाता है. अगर उन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर वह दिलेरी न दिखायी होती तो आज देश व प्रदेशों में राजनीति में पिछड़ों व खास तौर से यादव को वह तवज्जो न मिलती, जितनी की अपने दम पर उन्होंने दिलवाने की आजीवन कोशिश की. आज कई राज्यों के राजनेता पिछड़े वर्ग के वोटों पर अपनी राजनीति चमका रहे हैं.