इंदौर :सिनेमा प्रेमियों के लिए आज भी सिंगल स्क्रीन सिनेमा आकर्षण का केंद्र है. शुरुआती दौर में सबसे पहले सिंगल स्क्रीन सिनेमा ही हुआ करते थे. लेकिन धीरे-धीरे जमाना बदलता गया और मल्टीप्लेक्स सिनेमा हॉल बन गए. मल्टीप्लेक्स के आने से कई सिंगल स्क्रीन सिनेमा बंद हो गए. थिएटर में फिल्म देखने का जुनून भले सिमट गया. लेकिन इंदौर के एक पुस्तक व्यवसायी ने सिंगल स्क्रीन सिनेमा की यादों को धरोहर के रूप में संजोकर रखा है. यहां ना केवल प्रोजेक्टर पर फिल्म दिखाई जाती हैं. बल्कि टिकट लेने से लेकर फिल्म खत्म होने तक बाकायदा सिंगल स्क्रीन थिएटर का एहसास कराया जाता है. (indore Book Trader Made Museum)
किराए के मकान को बनाया थिएटर :विनोद जोशी का थिएटर कृष्ण विहार कॉलोनी में किराए के मकान में 2 सालों से चल रहा है. विनोद जोशी को सिनेमा की पुरानी यादों को सहेजने का शौक 1983 से था. उन्होंने इंदौर की टॉकीजों की यादों को बचाए रखने का संकल्प लिया. जोशी ने बताया, इंदौर में 1980 के दशक में 30 से ज्यादा टॉकीज थे. सबसे पहले राज टॉकीज शुरू हुआ. जिसमें एयर कूल्ड होने के कारण फिल्म देखने का क्रेज था. देखते ही देखते कई सिनेमाघर कॉम्पलेक्स में तब्दील हो गए. समय तेजी से बदला और फिर चैनल्स, कैसेट, सीडी, फ्लॉपी, पेन ड्राइव का दौर आ गया. अब मल्टीप्लेक्स और OTT प्लेटफॉर्म का चलन है. (Memories of Talkies)
नई पीढ़ी के लिए पुरानी यादें:इनकी कोशिश है कि फिल्मों का जो दौर सिमट चुका है उसे सहेजे. आने वाली पीढ़ी को देखने और समझने के लिए किराए पर मकान लिया. बड़े भाई दिनेश जोशी की मदद से थिएटर स्थापित कर दिया. इस थिएटर में लोगों को फिल्म दिखाने के लिए 1 रुपए 65 पैसे का टिकट लगता है. जोशी बंधुओं की कोशिश है कि पुराने दौर के सिनेमाघर कि खूबसूरती को म्यूजियम के रूप में बनाया जाए. जिससे आने वाली पीढ़ी सिंगल स्क्रीन थिएटर को देख और जान सके. (single screen Cinema)
टिकट, फोटो और विज्ञापन का संग्रह:जोशी ने पुराने जमाने के फिल्मों के विज्ञापन, अखबार में छपने वाला सिनेमाघरों का कॉलम, रील, प्रोजेक्टर, स्लाइड को सहेजना शुरू किया. जो टॉकीज अब नहीं हैं उनके पुराने फोटो के आधार पर मॉडल बनवाना शुरू किया. विनोद जोशी बताते हैं कि, सिनेमाघरों कि यादों को संजोने के लिए संचालक और मैनेजर से फोटो, टिकट और गेट पास लिए गए हैं. जो आज भी उनके संग्रहालय की धरोहर हैं. इसके अलावा 1917 में वाघमारे के बाड़े से फिल्म दिखाने और वर्तमान दौर के फिल्म इतिहास को उन्होंने अपने संग्रहालय में सहेज कर रखा है.
सिंगल स्क्रीन से ड्राइव इन सिनेमा का सफर: देश के कई शहरों में पुराने दौर में खुले आसमान के नीचे सिंगल स्क्रीन थिएटर (single screen cinema) पर प्रोजेक्टर मशीन से फिल्में दिखाई जाती थीं. अब ड्राइव इन सिनेमा के जरिए वही दौर फिर से लौट रहा है. इसलिए जोशी ने 1917 से लेकर 2022 तक के फिल्म के सफर पर बाकायदा एक बुकलेट बना रखी है. व्यवसायी का दावा है कि यह भारत का पहला सिंगल स्क्रीन सिनेमाघर म्यूजियम है. इस म्यूजियम में इंदौर की 30 से ज्यादा टॉकीज से जुड़े फोटो, टिकट, स्लाइड, प्रोजेक्टर, पोस्टर्स रखे गए हैं. दर्शक यहां सिंगल स्क्रीन सिनेमा की यादों में खो जाते हैं.