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भारत के महान फुटबॉलर मोहम्मद हबीब का स्वतंत्रता दिवस पर निधन, लंबे समय से थे बीमार

भारत के महान पूर्व फुटबॉलर और कप्तान मोहम्मद हबीब का मंगलवार को भारत के 77वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर उनके आवास पर निधन हो गया. हबीब काफी समय से पार्किंसंस रोग से पीड़ित थे और पिछले कुछ वर्षों से लोगों को पहचानने की क्षमता खो चुके थे.

Footballer Mohammad Habib passed away
फुटबॉलर मोहम्मद हबीब का निधन

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Published : Aug 15, 2023, 10:13 PM IST

कोलकाता: सत्तर के दशक के भारत के महान फुटबॉलर और पेले की न्यूयॉर्क कोस्मोस के खिलाफ मोहन बागान के लिये गोल करने वाले मोहम्मद हबीब का मंगलवार को निधन हो गया. जानकारी के अनुसार वह 74 वर्ष के थे. भूलने की बीमारी और पार्किंसन से जूझ रहे हबीब ने हैदराबाद में अंतिम सांस ली. उनके परिवार में पत्नी और तीन बेटियां हैं. बैंकाक में 1970 एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली टीम के सदस्य रहे हबीब ने मोहन बागान, ईस्ट बंगाल और मोहम्मडन स्पोर्टिंग के लिये खेला था.

बाद में वह टाटा फुटबॉल अकादमी के कोच भी रहे. उन्होंने हल्दिया में भारतीय फुटबॉल संघ अकादमी के मुख्य कोच के रूप में भी काम किया. हबीब ने 1977 में ईडन गार्डन पर बारिश के बीच पेले के कोस्मोस क्लब के खिलाफ गोल किया था. उस टीम में पेले, कार्लोस अलबर्टो, जॉर्जियो सी जैसे धुरंधर थे. वह मैच 2-2 से ड्रॉ रहा था. मैच के बाद पेले ने उनकी तारीफ भी की थी.

हबीब भारत और देश की शीर्ष क्लब टीमों के लिए फॉरवर्ड के रूप में खेलते थे. हबीब को देश का पहला पेशेवर फुटबॉल खिलाड़ी माना जाता है. कई विशेषज्ञ और पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी उन्हें देश के अब तक के सर्वश्रेष्ठ मिडफील्डरों में से एक मानते हैं. मोहन बागान और मोहम्मडन स्पोर्टिंग जैसे अन्य दिग्गजों के प्रति निष्ठा बदलने से पहले उन्होंने 1969 में कोलकाता के दिग्गज ईस्ट बंगाल के लिए एक पेशेवर के रूप में अपना फुटबॉल करियर शुरू किया.

हबीब ने 10 साल तक भारत का प्रतिनिधित्व किया. जब हबीब कोलकाता के मैदान में खेल खेलते थे, तो खिलाड़ी खेलने के लिए मिलने वाले पैसे को मामूली मानकर सरकारी और सार्वजनिक क्षेत्रों में नौकरी कर लेते थे. लेकिन इस हैदराबादी खिलाड़ी ने कभी नौकरी नहीं की और लगभग कुछ दशकों तक कोलकाता में खेलना जारी रखा. उनके भाई मोहम्मद अकबर ने भी उनके नक्शेकदम पर चलते हुए दशकों तक कोलकाता के मैदान पर शासन किया, लेकिन उन्होंने नौकरी कर ली और अब अपने बड़े भाई के विपरीत पेंशन धारक हैं.

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