अलीगढ़: रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत लौटी एमबीबीएस छात्रा फाल्गुनी ने वहां की स्थिति के बारे में बताया कि दोनों देशों के युद्ध के बीच में भारतीय छात्र संघर्ष कर रहे हैं. हालांकि यूक्रेन के हालात को लेकर भारतीय दूतावास से 20-25 दिन पहले ही एडवाइजरी आई थी लेकिन हमारी यूनिवर्सिटी ने सुरक्षा का भरोसा दिलाया था. वहीं, जब राजधानी कीव पर हमले होने लगे तो हमारे पास भारत लौटने का कोई विकल्प ही नहीं था. उन्होंने बताया कि भारतीय दूतावास ने उस समय तीन फ्लाइट अरेंज की थी, जो पूरी तरह से फुल थी. फाल्गुनी ने इसे एक बुरा सपना करार देते हुए कहा कि अभी भी जो छात्र यूक्रेन में रह गए हैं उनके लिए यह बहुत मुश्किल भरा समय है.
अलीगढ़ की रहने वाली फाल्गुनी यूक्रेन में एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं. फाल्गुनी ने बताया कि, 'मेरे साथ करीब ढाई हजार भारतीय छात्र यूक्रेन में फंसे थे और यूक्रेन से रोमानिया आने तक ही मेरे पैसे खर्च हुए. लेकिन रोमानिया से इंडिया आने में कोई पैसा खर्च नहीं हुआ. भारत सरकार ने फूड और ट्रांसपोर्ट का पूरा प्रबंध कराया. फाल्गुनी ने बताया कि भारत सरकार जितना कर सकती थी, कर रही है. लेकिन यूक्रेन की सरकार अगर पहले ही भारतीयों को खतरे का आगाह कर देती तो ऐसी स्थिति नहीं होती. उन्होंने यह भी बताया कि अब परिस्थितियां बहुत कठिन है. इसलिए भारत सरकार ने अपने मिनिस्टर को रोमानिया और पौलेंड भेजा है.
फाल्गुनी बताती हैं कि, 'हमारी क्लासेस ऑफलाइन चल रही थी और छात्रों को क्लास में उपस्थित नहीं होने पर भारी फाइन देना पड़ता है. यूक्रेन की सरकार ने रूस के हमले को हल्के में लिया. अगर यूक्रेन की सरकार ने समय पर यूक्रेन से निकलने का नोटिस दे दिया होता तो आज ऐसी स्थिति नहीं बनती. फाल्गुनी ने यूक्रेन में फंसे होने का एक-एक पल बयां किया. उन्होंने बताया कि एक अलार्म बजते ही हम लोगों को बंकरों में भागना पड़ता था. उन्होंने यह भी बताया कि बंकर्स में पहले यूक्रेन के लोगों को वरीयता दी जाती थी और भारतीयों के लिए अलग से सेंटर भी नहीं बनाये गए थे.
फाल्गुनी ने यह भी बताया कि, 'रोमानिया बॉर्डर पर भी पहुंचना आसान नहीं था. बहुत खतरनाक स्थिति थी. हमें एमबीबीएस की किताब तक नहीं लाने दिया गया. हमें सिर्फ दो जोड़ी कपड़े, थोड़ा खाना और पानी की बोतल ही अपने साथ ले जाना था. वहां का तापमान माइनस 5 डिग्री था. उन्होंने बताया कि भारतीय लोगों के लिए शेल्टर की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी. हम लोगों ने गत्ते को फाड़कर और उसे बिछाकर छह से सात घंटे भीषण ठंड में बिताए.
उन्होंने यह भी बताया कि भारतीय दूतावास की तरफ से मैसेज आया था कि अगर बसों पर भारतीय झंडे लगाए जाएं तो रशियन आर्मी भारतीयों को कुछ नहीं कहेंगे. फाल्गुनी ने बताया कि अगर आप झंडा नहीं लगाएंगे तो हो सकता है हमला हो सकता है. हमारा तिरंगा झंडा ही पासपोर्ट था और किसी ने कुछ नहीं कहा. वहीं, फाल्गुनी के पिता पंकज ने बताया कि यूक्रेन की हालत से अभिभावक परेशान हैं. अलीगढ़ के 23 बच्चे अभी भी यूक्रेन में फंसे हुए हैं.
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इसी कड़ी में जनपद मथुरा के निवासी ओम अग्रवाल भी सरकार की मदद से यूक्रेन से अपने घर लौट आए हैं. ओम वहां एमबीबीएस की पांचवीं वर्ष की पढ़ाई कर रहे थे, लेकिन इस बीच वहां रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध में फंस गए. सरकार की मदद से वो अब अपने घर लौट आए हैं. वहीं, घर वापसी और यूक्रेन के हालात पर उन्होंने कहा कि वहां माहौल इतना खराब हो चुका है कि कब क्या हो जाए कुछ भी कहा नहीं जा सकता. हम काफी तनाव में थे. लेकिन जब हमें पता चला कि भारत सरकार हमें वहां से वापस लाने के प्रयास कर रही है तो हमारा आत्मबल बढ़ा और अब घर वापसी के बाद हमें शांति मिली है.
वहीं उन्होंने सही सलामत घर वापसी के लिए सरकार को धन्यवाद भी दिया और कहा कि हम उम्मीद करेंगे कि हमारे जो भी साथी वहां अब भी फंसे हैं, उनकी भी जल्द ही वतन वापसी हो. ओम ने आगे बताया कि यूक्रेन में मेरी बहन भी थी और वो बहुत ज्यादा डरी हुई थी जिसकी वजह से मुझे भी डर लग रहा था, लेकिन वह भी अब सुरक्षित घर लौट चुकी है. हमारी घर वापसी में सरकार का अहम योगदान रहा है. हमें बिल्कुल निःशुल्क और सुविधा के साथ बहुत कम समय में घर तक वापस लाया गया है.
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