नई दिल्ली : एक समय में जब अमेरिका और रूस के बीच शीत युद्ध का दौर चल रहा था, तब भारत ने तटस्थ रहने की रणनीति (गुटनिरपेक्ष) अपनाई थी. अभी यूक्रेन को लेकर एक बार फिर से अमेरिका और रूस आमने-सामने हैं, ऐसे में भारत किसी एक पक्ष की ओर झुका दिखाई देगा, इसकी संभावना नहीं है. भारत यह अच्छी तरह से जानता है कि यह पुराना वाला दौर नहीं है. ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत ने कहा कि भारत स्पष्ट रूप से न तो यूक्रेन-अमेरिका और न ही रूस की ओर झुकता हुआ दिखना चाहेगा. उन्होंने कहा कि भारत के लिए रूस बहुत अलग महत्व रखता है. हमारा उनके साथ अलग लेवल का रिश्ता है.
यूरोपियन मामलों के विशेषज्ञ जेएनयू के प्रोफेसर गुलशन सचदेवा ने कहा कि यूक्रेन को लेकर रूस-यूरोपियन यूनियन-अमेरिका-नाटो जिस तरह से उलझ रहे हैं, उनमें पूरी दुनिया की राजनीति की गतिशीलता को प्रभावित करने की संभावना है. इसके बावजूद भारत रूस के खिलाफ नहीं बोलेगा. इसकी वजह दोनों देशों के बीच दशकों पुराना रिश्ता है. दोनों के बीच मजबूत द्विपक्षीय संबंध हैं. प्रो. सचदेवा ने कहा कि भारत हमेशा से ही स्वतंत्रता और संप्रभुता का समर्थक रहा है. वह क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांत का भी आह्वान करता रहा है. इसलिए वह किसी भी पक्ष को लेकर स्पष्ट स्टैंड नहीं लेगा. भारत राजनयिक कौशलता दिखाएगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने यूरोपियन और नाटो के नेताओं से बातचीत करने के बाद सहमति जताई है कि वे यूक्रेन की सीमा पर रूसी सेनाओं की धमकी से निपटेंगे. उन्होंने फिर से दोहराया कि यूक्रेन में मास्को ने अगर सैन्य उग्रता दिखाई तो इसके गंभीर परिणम होंगे. हालांकि, उन्होंने यह जरूर कहा कि सहयोगी देशों ने राजनयिक तरीके से बातचीत कर इसे हल करने को लेकर इच्छा जताई है.
यहां आपको बता दें कि नई दिल्ली में जर्मनी के नौसैनिक प्रमुख ने यह बयान दिया था कि क्रीमिया अब रूस का हिस्सा बन चुका है, यह यूक्रेन के पास फिर से नहीं आएगा, और इसके लिए रूस के राष्ट्रपति ब्लदीमिर पुतिन बधाई के पात्र हैं, उन्हें इस्तीफा देना पड़ गया. लेकिन यह बयान यह भी दर्शाता है कि यूरोपियन संघ के भीतर भी एक राय नहीं है. इसके पीछे सिर्फ भू राजनीतिक स्थिति ही नहीं, बल्कि भू आर्थिक स्थिति भी अहम रोल अदा कर रहा है.
यूरोप के तीन प्रमुख देश जर्मनी, इटली और फ्रांस का रूस से बहुत अच्छा संंबंध है. इन देशों, खासकर जर्मनी की, ऊर्जा को लेकर रूस पर निर्भरता है. पूर्व राजदूत अनिल त्रिगुणायत मानते हैं कि रूस का यूरोप से गहरा संबंध है. उनके अनुसार रूस को दिक्कत सिर्फ अमेरिका से है. क्योंकि रूस यूरेशियन देशों में ताकतवर है और पुतिन का इन तीनों देशों से मजबूत संबंध है, साथ ही इन देशों की ऊर्जा की जरूरतें भी रूस पूरी करता है, इसलिए वे किसी भी तरह से रूस के साथ युद्ध नहीं चाहते हैं. त्रिगुणायत का कहना है कि जर्मनी और अमेरिका के बीच रिश्ते डोनाल्ड ट्रंप की वजह से खराब हुए हैं. एंजेला मार्केल के फोन की टैपिंग तक की गई थी. उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि रूस यूक्रेन पर हमला करने को लेकर बहुत अधिक उग्र नहीं है, उसकी मंशा सिर्फ क्रीमिया को अपने साथ रखने की है.