नई दिल्ली :भारतीय वैज्ञानिकों ने 3D प्रिंटिंग तकनीक का उपयोग करके पुन: प्रयोज्य, धोने वाला N95 मास्क बनाया है. यह N-95 मास्क गंधहीन, गैर-एलर्जी और इसमें रोगाणुरोधी है. इसकी चार परतें हैं और इसकी बाहरी परत सिलिकॉन से बनी है जिससे इसकी शेल्फ लाइफ उपयोग के आधार पर पांच साल से अधिक है. इस N95 मास्क की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें एक नैनो-कण कोटिंग का उपयोग किया गया है जो न केवल अत्यधिक संक्रामक कोरोना वायरस के प्रसार को रोक सकता है, बल्कि इसका औद्योगिक संयंत्रों और ज्यादा प्रदुषण वाले जगहों पर भी उपयोगी होगा. इसके इस्तेमाल करके अत्यधिक प्रदूषण वाले जगहों पर काम करने वाले श्रमिक फेफड़ों की समस्या और अस्थमा जैसी बीमारियों से खुद को बचा सकते हैं.
विज्ञान विभाग ने कहा, COVID 19 जैसे संक्रमणों से रोकथाम के अलावा इसका उपयोग सीमेंट कारखाने, ईंट भट्टों, कपास कारखानों और पेंट उद्योगों में श्रमिकों द्वारा भी किया जा सकता है. जहां उच्च मात्रा में धूलकण के संपर्क में आने का खतरा रहता है. 3-D प्रिंटिंग तकनीक का इस्तेमाल से विकसित एन95 मास्क को फिल्टर कॉन्फिगरेशन में बदलाव करके जरूरत के हिसाब से बदला जा सकता है. इसके इस्तेमाल से सिलिकोसिस जैसी गंभीर फेफड़ों की बीमारियों से बचाव किया जा सकता है. भारतीय वैज्ञानिकों ने भी इसके पेटेंट और ट्रेडमार्क के लिए आवेदन किया है.
भारत में विकसित किए गये N95 मास्क को नैनो ब्रीथ कहा जाता है क्योंकि इसमें बैक्टीरिया, वायरस और अन्य बारीक कणों के प्रवेश को रोकने के लिए नैनो-पार्टिकल कोटिंग का उपयोग किया गया है. इसमें 4-लेयर फिल्ट्रेशन मैकेनिज्म है, जहां फिल्टर की बाहरी और पहली परत नैनोपार्टिकल्स से कोटेड है. जबकि दूसरी परत एक उच्च दक्षता वाले कण अवशोषित (HEPA) फिल्टर है, तीसरी परत 100 माइक्रोन फिल्टर है और चौथी परत नमी अवशोषक फिल्टर है. एमिटी यूनिवर्सिटी हरियाणा (एयूएच) के भारतीय चार वैज्ञानिक- डॉ. अतुल ठाकुर, डॉ प्रीति ठाकुर, डॉ लकी कृष्णा और प्रो पीबी शर्मा एवं एक रिसर्च स्कॉलर दिनेश कुमार और संयुक्त राज्य अमेरिका में नेब्रास्का विश्वविद्यालय से प्रो राकेश श्रीवास्तव ने संयुक्त रूप से इस एन-95 मास्क को विकसित किया है.