हैदराबाद: समाचार पत्रों से मुफ्त में कंटेंट लेकर गूगल और फेसबुक पैसे कमाते हैं. बदले में समाचार पत्रों को कुछ भी नहीं मिलता है, लेकिन अब इसके खिलाफ आवाज उठने लगी है. ऑस्ट्रेलिया ने गूगल और फेसबुक को पैसे देने के लिए मजबूर कर दिया. भारत में भी ऐसी ही आवाज उठने लगी है. समाचार पत्रों की संस्था आईएनएस ने इसे लेकर पहल की है.
भारत में भी गूगल और फेसबुक को देने पड़ सकते हैं पैसे
पारंपरिक प्रिंट मीडिया के तथ्यों पर इतराने वाला सोशल मीडिया अब कठिनाई का सामना कर रहा है. जिस तरीके से उसे ऑस्ट्रेलिया और यूरोप में विरोध का सामना करना पड़ रहा है, भारत में भी वैसा ही विरोध का सामना करना पड़ सकता है. इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी (आईएनएस) ने गूगल को चिट्ठी लिखकर स्पष्ट किया है कि सोशल मीडिया द्वारा अखबारों से मुफ्त में सामग्री लेकर पैसे कमाने के दिन लद गए. समाचार पत्रों की सामग्री एकत्रित करने के लिए दिन-रात जिस तरह उनके कर्मचारी मेहनत करते हैं, उन्हें उनका हक देना ही होगा.
एक कहावत है, जब तक सच सामने आता है, तब तक झूठ आधी दुनिया को नाप चुका होता है. सोशल मीडिया पर यह कहावत सबसे सटीक बैठता है. सूचनाओं के संग्रह और प्रसार की संगठित कार्यप्रणाली की वजह से समाचार पत्र और प्रकाशन नकली समाचारों से लोगों को बचाते रहे हैं. समाचार पत्र में सत्यता की जांच पर बहुत अधिक श्रम और व्यय किया जाता है. अखबार अपने कर्मचारियों, संपादकों, कलाकारों और स्तंभकारों को वेतन और परित्याग का भुगतान करते हैं, ताकि दुनिया भर के लोगों को सूचित किया जा सके. लेकिन जब से गूगल और फेसबुक आया है, इसने अखबारों और अन्य प्रकाशनों से मुफ्त में कंटेंट लिए हैं. इन सोशल मीडिया दिग्गजों का अपना कोई फील्ड स्टाफ या न्यूज नेटवर्क कभी नहीं था. लिहाजा, आईएनएस ने गूगल और फेसबुक से पैसे लेने की बात की है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है. डिजिटल मीडिया संगठन भी ली गई सामग्री के आधार पर विज्ञापन राजस्व जुटा रहे हैं. आईएनएस की मांग सौ प्रतिशत उचित है.