नई दिल्ली: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General) ने पिछले हफ्ते संसद के पटल पर एक रिपोर्ट रखी. जिसमें कहा गया कि भारतीय तटरक्षक बल को मिलने वाली हाईस्पीड इनशोर वेसेल (High Speed Inshore Vessel) नौ साल की देरी से मिली, जिसकी वजह से हिंदुस्तान शिपयार्ड लिमिटेड (Hindustan Shipyard Limited) को 200 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ.
मार्च 2006 में आईसीजी और विशाखापत्तनम मुख्यालय वाले एचएसएल के बीच 231.29 करोड़ रुपये की कुल लागत से पांच इनशोर पेट्रोल वेसल (IPV) के निर्माण के लिए अनुबंध किया गया था. 275 टन वजनी और 34 समुद्री मील की गति के अनिवार्य मानक की जगह सभी पांच जहाजों का वजन क्रमशः 330, 330.3, 328.6, 330.6 और 329.1 टन था. जिनकी गति भी क्रमशः 31.6, 33.01, 33.5, 32.5, और 34.1 समुद्री मील थी. यह अनुबंध की शर्तों का खुला उल्लंघन है.
कैग की रिपोर्ट:इसके निहितार्थ को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय लेखा परीक्षक की रिपोर्ट कहती है कि वजन में वृद्धि और आईपीवी की गति में कमी से उच्च गति वाले गश्ती वाहनों के रूप में उनकी उपयोगिता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. आईपीवी एक उच्च गति और वजन के प्रति संवेदनशील पोत है, जिसके लिए हल्की आउटफिटिंग सामग्री और सिस्टम इंजीनियरिंग की आवश्यकता होती है. इस मध्यम श्रेणी के पोत का उपयोग खोज व बचाव, कानून प्रवर्तन, समुद्री गश्ती मिशनों के लिए किया जाता है. साथ ही समुद्री सुरक्षा, पर्यावरण संरक्षण और भारत की तटीय रक्षा को बढ़ाने के लिए भी यह उपयोगी है.