कंपाला (युगांडा) : विदेश मंत्री एस जयशंकर की युगांडा यात्रा गुरुवार को संपन्न हो गई. इस यात्रा के बाद यात्रा से संबंधित एक पॉडकास्ट में हिस्सा लिया. जिसमें उन्होंने अपनी यात्रा के बारे में जानकारी दी. उन्होंने कहा कि भारत और युगांडा वैश्विक अर्थव्यवस्था के प्रति एक जैसा दृष्टिकोण रखते हैं. विदेश मंत्री जयशंकर ने भारत और युगांडा के साझे उद्देश्यों को साऊथ टू साऊथ सहयोग का नाम दिया. उन्होंने कहा कि एकजुटता पर आधारित सहयोग की राजनीति हमारी विकास की गाथा लिख सकती है.
पढ़ें : EAM Jaishankar News : अगले सप्ताह युगांडा, मोजाम्बिक का दौरा करेंगे विदेश मंत्री जयशंकर: विदेश मंत्रालय
उन्होंने अफ्रीकी राष्ट्र युगांडा को महत्वपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में दिल्ली और कंपाला के बीच संबंध काफी गाढ़े हुए हैं. उन्होंने कहा हम बहुत ही स्पष्ट विजन के साथ आगे बढ़ रहे हैं. भारत अफ्रीकी देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए तत्पर है. विदेश मंत्री ने पॉडकास्ट में बताया कि अपनी यात्रा के दौरान उन्हें युगांडा के राष्ट्रपति मुसेवेनी से मुलाकात का अवसर मिला. उन्होंने कहा कि इसके अलावा युगांडा सरकार के कई महत्वपूर्ण मंत्रियों से भी उनकी मुलाकात हुई.
पढ़ें : India-Korea FMs Meet : जयशंकर से मिले दक्षिण कोरिया के विदेश मंत्री, बोले- मुझे भारत आकर बहुत हो रही है खुशी
जिनमें विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री, व्यापार मंत्री और जल संसाधन मंत्री शामिल थे. अपने पॉडकास्ट में उन्होंने कहा कि यात्रा का दो सबसे बड़ा आकर्षण नेशनल फोरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी के परिसर के उद्घाटन और सौर जल पंप परियोजना के निर्माण की शुरुआत रही. उन्होंने सौर जल परियोजना के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इससे युगांडा के 20 जिलों में रहने वाले 5 लाख लोगों को मदद मिलेगी. अपने पॉडकास्ट में उन्होंने युगांडा के राष्ट्रपति मुसेवेनी की 2015 में की गई भारत यात्रा और साल 2018 में की गई प्रधानमंत्री मोदी की युगांडा यात्रा का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की यात्रा के दौरान दिये गये कंपाला सिद्धांत हमारे संबंधों का मार्गदर्शन कर रहे हैं.
पढ़ें : Tharoor To Jaishankar : एस जयशंकर को शशि थरूर की सलाह, बोले- थोड़ा शांत हो जाएं
रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद लातिन अमेरिका से सूरजमुखी तेल का आयात बढ़ा: विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण दुनिया के सबसे बड़े खाद्य तेल के आयातक भारत को सूरजमुखी तेल के वैकल्पिक स्रोत के रूप में लातिन अमेरिकी देशों का रुख करना पड़ा. मंगलवार को यहां एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जयशंकर ने कहा कि भारत यूक्रेन से सूरजमुखी तेल का बड़ा आयातक था लेकिन युद्ध शुरू होने के बाद आपूर्ति बाधित हो गई. भारत प्रतिवर्ष 25 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात करता है.
इसमें से 70 प्रतिशत यूक्रेन से, 20 प्रतिशत रूस से और शेष 10 प्रतिशत अर्जेंटीना से आयात करता है. जयशंकर ने कहा कि एक साल पहले जब यूक्रेन युद्ध शुरू हुआ तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पहला असर तेल की कीमतों पर हुआ. इस बात पर बहुत कम लोगों का ध्यान गया कि भारत जैसे देश को खाद्य तेल के मामलों में समस्याओं का सामना करना पड़ा क्योंकि हम यूक्रेन से सूरजमुखी तेल के सबसे बड़े आयातक देशों में से एक थे.
उन्होंने कहा कि भारत पर वैकल्पिक स्रोत को खोजने का दबाव वास्तव में भारतीय आयातकों को आसियान देशों में उनके पारंपरिक स्रोतों से काफी आगे ले गया. यह वास्तव में उन्हें लातिन अमेरिका ले गया. जयशंकर ने कहा कि लातिन अमेरिका के साथ भारत के व्यापार में एक बड़ी वृद्धि हुई और दिलचस्प रूप से इसका बड़ा श्रेय खाद्य तेल को जाता है. औद्योगिक इकाई सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन के अनुसार, अक्टूबर को समाप्त विपणन वर्ष 2021-22 में भारत का खाद्य तेलों का आयात पिछले वर्ष के 131.3 लाख टन से बढ़कर 140.3 लाख टन हो गया.
भारत की प्रगति से युगांडा के व्यापार के लिए नए अवसर पैदा होंगे : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि भारत की प्रगति और समृद्धि से ऐसे नए अवसर पैदा हो सकते हैं, जिनसे युगांडा को लाभ मिल सकता है. जयशंकर ने यहां भारतीय व्यापारिक समुदाय से मुलाकात की और उन्हें वृद्धि और विकास के लिए द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ावा देने को कहा. जयशंकर युगांडा और मोजाम्बिक के साथ भारत के द्विपक्षीय संबंधों को मजबूती प्रदान करने के लिए 10-15 अप्रैल तक दोनों अफ्रीकी देशों की यात्रा पर हैं.
जयशंकर ने भारतीय व्यापारित समुदाय के साथ मुलाकात के बाद मंगलवार को ट्वीट किया कि भारत की प्रगति और समृद्धि से ऐसे नए अवसर पैदा हो सकते हैं, जिनसे युगांडा को लाभ मिल सकता है. बिल्कुल वैसे ही जैसे भारत के अनुभव युगांडा की विकास यात्रा में मदद कर सकते हैं. समुदाय को संबोधित करते हुए जयशंकर ने उन समस्याओं के बार में बात की, जिनका भारत ने यूक्रेन युद्ध के कारण सामना किया. उन्होंने कहा कि एक साल पहले जब यूक्रेन संकट शुरू हुआ था, तो वैश्विक अर्थव्यवस्था पर पहली चोट कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ी. उन्होंने कहा कि इसके तुरंत बाद, गेहूं की कीमतें बढ़ गईं, क्योंकि तेल की कीमतें निश्चित रूप से एक अधिक जटिल मुद्दा थीं. गेहूं यूक्रेन से निर्यात की कमी का प्रत्यक्ष परिणाम था. यूक्रेन गेहूं का एक बड़ा निर्यातक है.
(एएनआई/पीटीआई-भाषा)