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संयुक्त राष्ट्र के मानव विकास सूचकांक में भारत का 131वां स्थान

मानव विकास सूचकांक किसी राष्ट्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का मापन है. इसके संबंध में सभी देशों की वार्षिक रिपोर्ट यूएनडीपी द्वारा जारी की जाती है. वर्ष 2020 की रिपोर्ट में भारत को 131वां स्थान प्राप्त हुआ है. पढ़ें विस्तार से...

मानव विकास सूचकांक
मानव विकास सूचकांक

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Published : Dec 17, 2020, 10:06 PM IST

नई दिल्ली : संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की ओर से जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 में 189 देशों में मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) की सूची में भारत को 131वां स्थान प्राप्त हुआ. मानव विकास सूचकांक किसी राष्ट्र में स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन के स्तर का मापन है.

मानव विकास रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2019 में भारतीयों की जीवन प्रत्याशा 69.7 साल थी. बांग्लादेश में यह 72.6 साल और पाकिस्तान में 67.3 साल थी.

रिपोर्ट के अनुसार सूचकांक में भूटान 129वें स्थान पर, बांग्लादेश 133वें स्थान पर, नेपाल 142वें स्थान पर और पाकिस्तान 154वें स्थान पर रहा.

सूचकांक में नॉर्वे सबसे ऊपर रहा और उसके बाद आयरलैंड, स्विट्जरलैंड, हांगकांग और आइसलैंड का स्थान रहा.

यूएनडीपी के रेजिडेंट प्रतिनिधि शोको नोडा ने संवाददाताओं से कहा कि भारत की रैंकिंग में गिरावट का यह अर्थ नहीं कि 'भारत ने अच्छा नहीं किया, बल्कि इसका अर्थ है कि अन्य देशों ने बेहतर किया.'

नोडा ने कहा कि भारत दूसरे देशों की मदद कर सकता है. उन्होंने भारत द्वारा कार्बन उत्सर्जन कम करने के प्रयासों की भी सराहना की.

यूएनडीपी की ओर से मंगलवार को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार क्रय शक्ति समता (पीपीपी) के आधार पर 2018 में भारत की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,829 अमेरिकी डॉलर थी जो 2019 में गिरकर 6,681 डॉलर हो गई.

रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया के समक्ष कोविड-19 एक नया संकट है, लेकिन यदि मनुष्य ने प्रकृति को अपने 'चंगुल' से आजाद नहीं किया, तो यह आखिरी संकट नहीं होगा.

रिपोर्ट में मानव प्रगति पर एक प्रयोगात्मक सूचकांक को शामिल किया गया है. यह विभिन्न देशों में कॉर्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन पर गौर करता है.

रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 को असमानताओं के अलावा सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक प्रणाली में कमजोरियों को उजागर करने में कोई समय नहीं लगा.

रिपोर्ट में कहा गया है कि मानव विकास में आगे चुनौती प्रकृति से लड़ने नहीं बल्कि उसके साथ मिल कर चलने और सामाजिक नियमों, मूल्यों में बदलाव लाने की है.

यूएनडीपी की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि दुनिया के नेताओं के पास अब साहसी कदमों के जरिये प्रकृति पर दबाव कम करने का विकल्प है.

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रिपोर्ट के अनुसार, 'यदि हमें दुनिया में एक संतुलन के साथ रहना है तो एजेंसयिों और सशक्तीकरण के जरिये हमें कार्रवाई करनी होगी. आज हम इतिहास के ऐसे अभूतपूर्व पल में है, जहां मानव गतिविधियां सभी चीजों को आकार दे रही हैं.'

रिपोर्ट कहती है कि हम जिस रास्ते पर हैं उसे बदलने के लिए हमें अपने रहने, काम करने और सहयोग के तरीके में बड़ा बदलाव लाना होगा.

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