हैदराबाद :सत्ता में दूसरा कार्यकाल आने के तुरंत बाद प्रधानमंत्री मोदी ने 12 भाषाओं में देश के सभी ग्राम सरपंचों को व्यक्तिगत पत्र लिखे थे. जिसमें वर्षा जल संरक्षण में भाग लेने का आह्वान किया गया था. वर्तमान में उन्होंने लोगों को पानी के संरक्षण की दिशा में 100 दिन के अभियान का हिस्सा बनने का आह्वान किया है.
नवीनतम मन की बात में प्रधानमंत्री ने कहा है कि जल शक्ति मंत्रालय जल संरक्षण पर एक अभियान चलाएगा. जल संरक्षण के लिए मोदी का संदेश वर्ष 2003 में वाजपेयी की पहल की याद दिलाता है. तब तेलुगु भूमि के जाला यज्ञम आंदोलन ने देश को पानी के संरक्षण की आवश्यकता के लिए जागृत किया था. तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने लोगों से आह्वान किया कि वे नदियों, सिंचाई टैंक और तालाब के जल संरक्षण में भाग लें. वे यह भी चाहते थे कि वैज्ञानिक समुदाय जल संरक्षण के लिए लागत प्रभावी तकनीक विकसित करने पर काम करें.
ग्लोबल वार्मिंग से मौसम बदलाव
हालांकि, अनुवर्ती कार्रवाई की कमी के कारण बहुमूल्य जल संसाधनों की उपेक्षा की गई और हर जगह खतरे की घंटी बजने लगी है. ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु के मौसम अनिश्चित हो गए हैं. इसके परिणामस्वरूप पानी की कमी के लिए पहचाने जाने वाले क्षेत्रों में भी बाढ़ देखी जाती है. ये दुख और आंसू तभी खत्म होंगे जब लोग इस स्थिति को बदलने के लिए दृढ़ और एकजुट होकर आगे बढ़ेंगे. भारतीय भाषाएं उन कथनों से परिपूर्ण हैं, जो सिंचाई टंकियों और जल स्रोतों को गाद से मुक्त रखने के महत्व को दर्शाती हैं. जल संसाधनों की रक्षा करने की चेतना प्राचीन काल से जारी है.
4 प्रतिशत ही पेयजल स्रोत
भारत विश्व जनसंख्या का 18 प्रतिशत हिस्सा है. विश्व का लगभग 18 प्रतिशत पशुधन भारत में है, लेकिन विश्व के केवल 4 प्रतिशत पेयजल स्रोत देश में उपलब्ध हैं. सतही जल स्रोतों के लापरवाह विनाश और भूजल के अधिक दोहन से साल दर साल पानी की कमी हो रही है. 100 दिनों में लगभग 70 प्रतिशत वार्षिक वर्षा होने के कारण देश वर्षा जल के संरक्षण के बारे में तो जागरूक है, लेकिन साल के बाकी समय में पानी की जरूरतों को पूरा करने का कोई साधन नहीं है.
कम हो रही पानी की उपलब्धता