हैदराबाद:त्योहार के मौसम में पेट्रोल डीजल के अलावा खाने के तेल की कीमतों ने भी लोगों का बजट बिगाड़ा है. खाद्य तेलों की बढ़ती कीमतों से राहत दिलाने के लिए भारत सरकार ने बीते दिनों एक फैसला लिया था. कहा जा रहा है कि इस फैसले के बाद से खाने के तेल के दाम कम हो जाएंगे. आखिर क्या है वो फैसला ? कैसे और कब तक कम होंगे खाद्य तेलों के दाम ? क्यों बढ़ रहे हैं खाद्य तेलों के दाम ? और भारत कितना खाद्य तेल आयात करता है ? इन सभी सवालों का जवाब जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर (etv bharat explainer)
सरकार ने क्या फैसला लिया था ?
केद्र सरकार ने सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर लगने वाले मूल सीमा शुल्क (basic customs duty) को अगले 6 महीने यानि वित्त वर्ष 2021-22 के अंत तक खत्म कर दिया है. वहीं पाम ऑयल पर लगने वाले एग्री सेस को 20 फीसदी से घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया है. वहीं सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर एग्री सेस 5 फीसदी कर दिया है.
सरकार ने खाद्य तेलों के मूल सीमा शुल्क में की कटौती इस कटौती के बाद कच्चे पाम पर 8.25%, कच्चे सोयाबीन पर और सूरजमुखी तेल पर 5.5% सीमा शुल्क लगेगा. पहले इन तीनों कच्चे माल पर प्रभावी शुल्क 24.75 प्रतिशत था.
इस फैसले क्या होगा ?
बीते कुछ महीनों से देश में खाद्य तेलों के दाम लगातार बढ़ रहे हैं. सरसों तेल की खुदरा कीमत कई शहरों में 240 से 250 रुपये तक पहुंच चुकी है. यही हाल रिफाइंड से लेकर सूरजमुखी, मूंगफली समेत अन्य खाद्य तेलों का भी है. खाने के तेल की कीमतों में आए इस उछाल ने त्योहारों की रंगत और मिठास कम कर दी है. जानकार मानते हैं कि त्योहारी सीजन को देखते हुए ही सरकार ने ये फैसला लिया है.
खाने के तेल की कीमतों ने बिगाड़ा किचन का बजट सरकार का ये फैसला तत्काल प्रभाव से 14 अक्टूबर से प्रभावी हो चुका है. जानकार मानते हैं कि क्योंकि भारत अपनी खपत का ज्यादातर तेल आयात करता है इसलिये जल्द ही तेल के दाम कम हो सकते हैं. जानकारों की मानें तो एक लीटर तेल में 15 से 20 रुपये की कमी आने वाले दिनों में देखी जा सकती है.
हालांकि कई जानकार मानते हैं कि इस फैसले का असर सोयाबीन और मूंगफली जैसे तिलहन की फसलें उगाने वाले किसानों की आय पर पड़ेगा. क्योंकि इन फसलों की कटाई का मौसम आने वाला है और आयात शुल्क कम होने से तेल के दाम हो जाएंगे जिससे इन किसानों की फसल के कम दाम मिलना भी तय है.
खाने के तेल की कीमतें क्यों बढ़ रही हैं ? क्यों बढ़ रही हैं खाद्य तेल की कीमतें ?
अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाने के तेल की कीमतें बढ़ी हैं. खासकर पाम ऑयल के गिने चुने निर्यातक ही दुनिया में खाद्य तेल की कीमतों पर असर डालते हैं. यही वजह है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमत का सीधा असर पड़ता है. जानकार मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमतें बढ़ी हैं और कई देश अपने संसाधनों का इस्तेमाल करते हुए जैव ईंधन नीति में पाम ऑयल का इस्तेमाल कर रहे हैं. मलेशिया और इंडोनेशिया जो पाम ऑयल के सबसे बड़े निर्यातक हैं वो अपनी जैव ईंधन नीति के लिए इसका इस्तेमाल कर रहे हैं जबकि इसी तरह अमेरिका भी सोयाबीन का इस्तेमाल जैव ईंधन के लिए कर रहा है. जिसका असर खाद्य तेलों के निर्यात पर पड़ रहा है और कमी होने पर दाम बढ़ रहे हैं.
बीते कुछ महीनों में ही हर तरह का खाद्य तेल हुआ महंगा चीन को भी खाद्य तेलों की महंगाई की वजह माना जा रहा है. जानकार बताते हैं कि दुनिया की सबसे बड़ी आबादी वाला देश चीन खाद्य तेल का भी सबसे बड़ा आयातक है. चीन में खान-पान में बदलाव आ रहा है, वहां अंतरराष्ट्रीय खान-पान का चलन बढ़ने से तले भोजन की खपत बढ़ी है. जिसे पूरा करने के लिए चीन भी बड़ी मात्रा में खाद्य तेल आयात करता है. जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों में उछाल आया है.
भारत की बढ़ती आबादी, खान-पान की आदतों में बदलाव और बढ़ती तेल की मांग भी खाद्य तेलों की महंगाई की वजह है. इसके अलावा पॉम, सोया, सूरजमुखी जैसी तेल की फसलों वाले इलाकों में मौसम की मार का असर भी तेल की कीमतों पर पड़ता है.
सबसे ज्यादा पाम ऑयल आयात करता है भारत भारत सरकार ने पिछले साल सरसों के तेल में किसी अन्य तेल की मिलावट पर रोक लगा दी थी. सरसों के तेल की ब्लेंडिंग प्रतिबंधित करने से भारत में पाम ऑयल का इंपोर्ट कम हुआ. ये कदम भारतीय किसानों के लिए तो फायदेमंद साबित हुआ लेकिन इस फैसले से सरसों के तेल की कीमतों में बढ़ोतरी करने में मदद की. भारत में करीब 2.5 मिलियन टन सूरजमुखी के तेल का भी आयात होता है. ये तेल रूस और यूक्रेन से आता है. बीते कुछ सालों में ये दोनों ही देश सूखे की मार झेल रहे हैं, जिससे सूरजमुखी के उत्पादन में कमी आई है और तेल की कीमतें बढ़ी हैं. वहीं सोयाबीन तेल का आयात अर्जेंटीना और ब्राजील से होता है यहां भी मौसम की मार इस फसल पर पड़ी है.
खपत और कीमत दोनों बढ़ रही है भारत में तेल का आयात
भारत एक कृषि प्रधान देश है लेकिन खाने के तेल के लिए फिर भी करीब 70 फीसदी आयात पर ही निर्भर हैं. एक अनुमान के मुताबिक भारत में सरसों के तेल का बाज़ार करीब 40 हज़ार करोड़ रुपए का है जबकि करीब 75 हज़ार करोड़ रुपए का खाद्य तेल आयात किया जाता है. देश में हर साल तेल की खपत औसतन 2 से 3 फीसदी बढ़ जाती है, हालांकि कोरोना काल में तेल की खपत कम हुई है. भारत जितना तेल आयात करता है उसका 62 फीसदी सिर्फ पाम ऑयल होता है..
इंडोनेशिया और मलेशिया में होता है सबसे ज्यादा पाम ऑयल पाम ऑयल का इस्तेमाल दुनिया में व्यापक पैमाने पर होता है. ये एक वनस्पति तेल है जो ताड़ के पेड़ के बीजों से निकाला जाता है. इसमें कोई महक नहीं होती, इस वजह से इसका इस्तेमाल दुनियाभर में हर तरह का खाना बनाने में होता है. होटल, रेस्टोरेंट में खाद्य तेल की तरह उपयोग में लाया जाता है, इसके अलावा उद्योगों के अलावा नहाने का साबुन, शैंपू, टूथपेस्ट, विटामिन की गोलियां और मेकअप का सामान बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है.
इंडोनेशिया और मलेशिया पाम ऑयल के सबसे बड़े निर्यातक हैं. भारत भी इन दोनों देशों से ही ज्यादातर पाम ऑयल खरीदता है, जो सालाना करीब 90 लाख टन होता है. ये भारत द्वारा खाने के तेल के कुल आयात का लगभग दो तिहाई है. जिसपर सालाना करीब 50 हजार करोड़ रुपये का सालाना खर्च आता है.
सरसों के तेल का सबसे ज्यादा होता है इस्तेमाल लगातार बढ़ रही है तेल की खपत
बीते सितंबर में पाम ऑयल के आयात ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए. सितंबर के दौरान इसका आयात 63 फीसदी का उछाल के साथ 16.98 लाख टन हो गया. सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के मुताबिक वनस्पति तेलों के कुल आयात जिसमें खाद्य और अखाद्य दोनों प्रकार के तेल शामिल हैं, उनका आयात सितंबर 2020 में 10,61,944 टन था जो इस साल सितंबर में 17,62,338 पहुंच गया है. जो किसी एक महीने में खपत का नया रिकॉर्ड है. इससे पहले अक्टूबर 2015 में 16.51 लाख टन आयात किया गया था.
तेल की कीमतों ने बिगाड़ा त्योहार का जायका सितंबर में पिछले साल अखाद्य तेलों का आयात 17,702 टन था, जो इस साल बढ़कर 63,608 टन पहुंच गया है. नवंबर 2020 से सितंबर 2021 तक की 11 महीने की अवधि के दौरान वनस्पति तेलों का कुल आयात 1,22,57,837 टन था, जो इसी अवधि में बीते साल के मुकाबले 2 फीसदी अधिक था.
क्यों बढ़ रही है खाद्य तेल की खपत ?
द सेंट्रल ऑर्गेनाइज़ेशन ऑफ ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (COOIT) के मुताबिक़ भारत में इस साल सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है. भारत में रबी मौसम के दौरान 89.5 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ जो पिछले साल के मुक़ाबले 19.33 फ़ीसदी अधिक है. 2019-20 में भारत में 75 लाख टन सरसों का उत्पादन हुआ था. लेकिन ये बंपर उत्पादन भी भारत की ज़रूरतों को पूरा करने में नाकाफी है. तेल की खपत हर साल 2 से 3 फीसदी बढ़ रही है, जो आने वाले सालों में और अधिक बढ़ेगी. इसके लिए जनसंख्या के अलावा भी कुछ वजहें है.
सूरजमुखी और मूंगफली के तेल का भी होता है इस्तेमाल - विशेषज्ञों के मुताबिक कोरोना के बावजूद खाद्य तेलों की मांग को कोई कमी दर्ज नहीं हुई है. क्योंकि दुनिया के कई देशों में खाद्य तेलों का इस्तेमला सिर्फ खाने में नहीं किया जा रहा है.
- खाद्य तेलों का इस्तेमाल बायो फ्यूल बनाने में किया जाने लगा है. पेट्रोल डीजल के विकल्प रूप में दुनिया बायो फ्यूल की तरफ बढ़ रही है तो खाद्य तेलों का इस्तेमा बढ़ रहा है और इसकी कमी भी हो रही है.
- भारत सरकार ने सरसों के तेल में किसी अन्य तेल की मिलावट पर रोक लगा दी है जिसके चलते सरसों के तेल की सीमित मात्रा होने पर अन्य तेलों की खपत बढ़ गई है.
- भारत सरकार ने कुछ समय पहले मलेशिया के साथ राजनायिक विवाद के बाद भारत ने मलेशिया से पाम ऑयल खरीदना बंद कर दिया था.
- मलेशिया और इंडोनेशिया मौजूदा दौर में दुनिया के सबसे बड़े पाम ऑयल निर्यातक हैं. कुछ अन्य देश भी इस सूची में हैं लेकिन उत्पादन के मामले में इन दोनों देशों का कोई सानी नहीं है. ऐसे में अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक तरह से इन्हीं दो देशों का बोलबाला है. भारत वनस्पति तेलों का सबसे बड़ा आयातक है जो सालाना औसतन 1.5 करोड़ टन वनस्पति तेलों का आयात करता है.
कई जानकार मानते हैं. दुनिया भर के देश ग्रीन एनर्जी की तरफ बढ़ रहे हैं. इसकी वजह से बायोडीजल की खपत भी बढ़ी है. इसमें भी खाद्य तेलों का इस्तेमाल होता है. ये भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेलों की खपत और दाम बढ़ने की वजह है.
खाने का जायका बिगाड़ रहा है महंगा तेल भारत सरकार का राष्ट्रीय खाद्य तेल मिशन- पाम ऑयल
इसी साल अगस्त में केंद्रीय कैबिनेट ने ताड़ के तेल (पाम ऑयल) के लिए एक नए मिशन को मंजूरी दी थी, जिसका नाम राष्ट्रीय खाद्य तेल- पाम ऑयल मिशन है. इसका उद्देश्य खाद्य तेलों के आयात पर निर्भरता कम करके देश में ही खाद्य तेलों के उत्पादन में तेजी लाना है. इस योजना का फोकस पूर्वोत्तर के क्षेत्रों और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह पर होगा. पाम ऑयल की पैदावार बढ़ाने के लिए 11,040 करोड़ रुपये की इस योजना से पाम ऑयल किसानों को लाभ मिलेगा. इसमें 8844 करोड़ केंद्र सरकार वहन करेगी और बाक़ी 2196 राज्य सरकार वहन करेगी पूंजी निवेश बढ़ने के साथ रोजगार बढ़ाने और आयात पर निर्भरता कम करके देश के किसानों की आय बढ़ाना भी इस योजना का लक्ष्य है.
पाम ऑयल उत्पादन को बढ़ावा देने की जरूरत मौजूदा समय में भारत में ताड़ की खेती सिर्फ 3.70 लाख हेक्टेयर इलाके में ही होती है. जिसे 2025-26 तक 10 लाख हेक्टेयर तक बढ़ाया जाएगा. अन्य तिलहनों की तुलना में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से ताड़ के तेल का उत्पादन 10 से 46 गुना अधिक होता है. इस योजना के तहत 2025-26 तक कच्चे पाम ऑयल का उत्पादन 11.20 लाख टन और 2-29-30 तक 28 लाख टन तक पहुंचेगी. फिलहाल भारत ज्यादातर पाम ऑयल का आयात ही करता है. वर्ष 2014-15 में 275 लाख टन तिलहन उत्पादन हुआ था, जो वर्ष 2020-21 में बढ़कर 365.65 लाख टन हो गया है.
पॉम ऑयल के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार ने शुरू की है पहल देश में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु के अलावा मिजोरम, नागालैंड, असम और अरुणाचल प्रदेश में पाम ऑयल की खेती की जाती है. ताड़ का पेड़ सर्द इलाकों में नहीं उगता. भारत में पाम ऑयल की संभावनाओं के साथ आयात और खपत को देखते हुए कई जानकार सरकार के इस नए मिशन को स्वागत योग्य मानते हैं.
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