हैदराबाद : राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है, ताकि बालिकाओं और आधुनिक समाज में व्याप्त असमानताओं और भेदभाव के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके.
इस दिन को विभिन्न अभियानों, कार्यक्रमों द्वारा 'सेव द गर्ल चाइल्ड', 'चाइल्ड सेक्स रेशियो' और हर लड़की के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित वातावरण बनाने को लेकर विभिन्न घटनाओं और अभियानों द्वारा चिह्नित किया गया है. इन अभियानों के तहत लड़की की जन्म से पहले हत्या, लैंगिक असमानता से लेकर यौन शोषण जैसे मुद्दों पर ध्यान उजागर किया जाता है.
इसके पीछे मुख्य उद्देश्य लड़कियों के द्वारा झेली गई असमानताओं को उजागर करना है साथ ही बालिकाओं के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण के महत्व के प्रति जागरूकता को बढ़ावा देना है.
राष्ट्रीय बालिका दिवस का इतिहास
महिला और बाल विकास मंत्रालय और भारत सरकार द्वारा 2008 में शुरू किया गया राष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 24 जनवरी को मनाया जाता है. 2021 में पूरा देश 14 वां राष्ट्रीय बालिका दिवस मना रहा है.
भारत में लैंगिक असमानता
महिलाओं और पुरुषों दोनों की समान भागीदारी के बिना धरती पर मानव जीवन का अस्तित्व असंभव है. वे पृथ्वी पर मानव जाति के अस्तित्व के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं. वे एक राष्ट्र के विकास के लिए भी उत्तरदायी हैं. हालांकि, महिला का अस्तित्व पुरुषों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण है. क्योंकि उसके बिना हम अपने अस्तित्व के बारे में नहीं सोच सकते. इसलिए, मनुष्यों को विलुप्त होने से बचाने के लिए हमें बालिकाओं को बचाने के उपाय करने होंगे.
हमारे समाज और संस्कृति में सदियों से लैंगिक असमानता एक समस्या रही है. लिंग आधारित भेदभाव हमारी संस्कृति, धर्म और यहां तक कि हमारे कानूनों तक के माध्यम से भारतीय समाज में गहराई से अंतर्निहित हैं. बालिका के जन्म से पहले ही भेदभाव शुरू हो जाता है. कभी-कभी लड़की को एक भ्रूण के रूप में मार दिया जाता है और यदि वह अपनी मां के गर्भ से बाहर निकलकर भाग्यशाली बनती भी है, तो उसे मार दिया जाता है. यही कारण है कि 2011 में हुई जनगणना के अनुसार, भारत में बाल लिंग अनुपात प्रति 1,000 लड़कों पर केवल 927 लड़कियां है.
भारत में पुरुष प्रधान समाज है. यही कारण है कि शिक्षा, आर्थिक प्रगति, वैश्वीकरण के वर्षों के बाद भी, लड़कियों को शिक्षा, नौकरी जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है. कई मामलों में, जब शिक्षा की बात आती है, तब भी लड़कियों को नजरअंदाज कर दिया जाता है क्योंकि यह माना जाता है कि समाज में एक महिला की एकमात्र भूमिका एक मां या एक पत्नी की होती है, जिसकी प्राथमिक भूमिका उसके परिवार और बच्चों की देखभाल करना है.
भारत सरकार ने इसे बदलने और लड़कियों की स्थिति में सुधार करने के लिए बीते वर्षों में कई कदम उठाए हैं. इस भेदभाव को कम करने के लिए कई अभियान और कार्यक्रम जैसे, सेव द गर्ल चाइल्ड, बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, लड़कियों के लिए मुफ्त या अनुदानित शिक्षा, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में महिलाओं के लिए आरक्षण की पहल की गई है.