पटना : 'जब-जब नदियां खत्म हुई हैं, पूरी सभ्यता खत्म हो गई है. इसलिए नदियों को बचाना होगा. जब नदियां बचेंगी, तभी हम अपनी डॉल्फिन (Dolphin in Ganga River) को बचा पाएंगे.' यह कहना है पद्मश्री आर के सिन्हा (R K Sinha) का, जिन्हें लोग डॉल्फिन मैन (Dolphin Man) भी कहते हैं. उनका मानना है कि भारत के राष्ट्रीय जलीय जीव को बचाने के लिए नदियों में पानी की उपलब्धता और नदियों को गंदा करने से रोकना जरूरी है. बिहार में डॉल्फिन के संरक्षण के लिए कई कार्य हुए हैं. मछुआरों तक को जागरूक किया गया है. तभी बिहार में डॉल्फिन की संख्या ज्यादा है.
डॉल्फिन मैन पद्मश्री आर के सिन्हा ने कहा कि वर्ष 2009 में केंद्र सरकार ने गांगेय डॉल्फिन (सोंस) को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था. तब गंगा की डॉल्फिन जिसे हम सोंस के नाम से भी जानते हैं, विलुप्त होने के कगार पर थी. लोगों को जानकारी नहीं होने की वजह से वह मछली समझ कर इसका शिकार करते थे. लेकिन जब से इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया, उसके बाद जागरुकता अभियान चलाया गया.
उन्होंने बताया कि बिहार में विशेष रूप से मछुआरों को इसके बारे में जानकारी दी गई. भागलपुर और पटना में सोंस के संरक्षण के कई उपाय किए गए. जिसके सकारात्मक परिणाम अब देखने को मिल रहे हैं. तब और आज में इतना फर्क आया है कि अब गांगेय डॉल्फिन की संख्या करीब 4000 तक पहुंच गई है. इसमें से 80 फीसदी डॉल्फिन भारत में है. उनमें से भी आधी से ज्यादा डॉल्फिन बिहार की नदियों में है.
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित करने के बाद गंगा की सेहत की कहानी कहने वाली डॉल्फिन की संख्या में बढ़ोतरी हुई है. लेकिन हमें इसके लिए निरंतर काम करना होगा. सबसे महत्वपूर्ण कदम जो हमें उठाना है, वह है नदियों का संरक्षण. बिहार में नदियों की संख्या ज्यादा है और उन नदियों में पानी रहता है. जिसकी वजह से बिहार में डॉल्फिन की संख्या भी ज्यादा है. लेकिन हमें नदियों को मरने से बचाना होगा. तभी हम डॉल्फिन को बचा पाएंगे. बिहार की नदियों का पानी लगातार कम हो रहा है. क्योंकि उन पर बड़ी संख्या में तटबंध और बराज बना दिए गए हैं. नदियों में गंदा पानी गिरता है जिसकी वजह से मछलियों की संख्या तेजी से कम हो रही है. इस ओर हमें काम करना होगा और सोचना होगा.
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राज्य वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के प्रधान सचिव दीपक कुमार सिंह ने कहा कि डॉल्फिन का इतिहास करोड़ों साल पुराना है. उसके बाद इंसान इस धरती पर आए. लेकिन पिछले कुछ सालों में इंसानों ने ही डॉल्फिन की पूरी प्रजाति को विलुप्त होने के कगार पर पहुंचा दिया है. नदियों की अच्छी सेहत की एक निशानी यह भी है कि उस नदी में डॉल्फिन की मौजूदगी है. जिसे मछुआरे भी मानते हैं. इसलिए डॉल्फिन का रहना बेहद जरूरी है. हमें इसके संरक्षण के लिए लगातार प्रयास जारी रखना होगा.