मुंबई : सार्वजनिक परिवहन में एक नए युग की शुरुआत करते हुए, एशिया की पहली यात्री ट्रेन 16 अप्रैल, 1853 को मुंबई और ठाणे के बीच 34 किमी के एक छोटे से खंड पर संचालित की गई थी, जो अगले 17 दशकों में देश की प्रगति और समृद्धि के लिए एक लंबी छलांग साबित हुई. ट्रेन को बोरीबंदर स्टेशन से हरी झंडी दिखाई गई, जहां अब यूनेस्को की विश्व धरोहर छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस खड़ा है. पहले दिन 14 नए लकड़ी के डिब्बों में 400 लोगों ने यात्रा की.
पहली ट्रेन को तीन इंजनों द्वारा खींचा गया था. इनमें नाम 'साहिब', 'सिंध' और 'सुल्तान' रखे गए थे. तेज सीटी, गाढ़ा धुआं और भाप के साथ अपराह्न् 3.35 बजे ऐतिहासिक यात्रा शुरू हुई. इस दौरान 21 तोपों की सलामी दी गई और तालियों की गड़गड़ाहट के साथ ट्रेन आगे बढ़ी. इस युग परिवर्तन यात्रा की तैयारी मद्रास में एक प्रायोगिक रेलवे लाइन के साथ लगभग 30 साल पहले शुरू हुई थी. कई अन्य देशों के विपरीत, भारतीयों ने जल्दी से रेल यात्रा के त्वरित, सस्ते और सुरक्षित तरीके को अपना लिया.
रेलवे ने शीघ्र ही भारत के अन्य भागों में अपना विस्तार कर लिया. पूर्व में पहली यात्री ट्रेन 15 अगस्त, 1854 को हावड़ा और हुगली के बीच 39 किमी की दूरी के बीच चली. इसके बाद, 1 जुलाई, 1856 को दक्षिण (मद्रास प्रेसीडेंसी) में वेयासरपांडी और वालाजाह रोड और उत्तर में हाथरस रोड और मथुरा कैंट के बीच 19 अक्टूबर, 1875 को 53 किमी के रास्ते पर चली. इसके बाद रेलवे ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा.
अपने शुभारंभ के लगभग 27 वर्षों में 1880 तक, भारतीय उपमहाद्वीप में 9 हजार किमी रेलवे नेटवर्क था. 1857, और 90 वर्षों तक चलने वाले आधुनिक विश्व इतिहास में सबसे बड़े स्वतंत्रता आंदोलनों में से एक को भी रेलवे ने प्रेरित किया. पिछले 170 वर्षों में भारतीय रेलवे एक मल्टी-गेज के रूप में विकसित हुई है, जो दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी 108,000 किमी से अधिक लंबी लाइनों के साथ, यात्रियों, जानवरों और सामानों को मैदानों, जंगलों, रेगिस्तानों व बर्फीले पहाड़ों को पार करते हुए देश के दूरस्थ इलाकों तक सुरक्षित रूप से पहुंचाती है.