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उत्तराखंड : वन अनुसंधान केंद्र ने नैनीताल जिले में देश का पहला सुगंधित उद्यान विकसित किया

उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान केंद्र ने नैनीताल जिले के लालकुआं में एक 'सुगंधित उद्यान' (Aromatic Garden) खोला है. यह उद्यान 3 एकड़ में फैला है. इसमें लगभग 140 विभिन्न सुगंधित पौधों की प्रजातियां हैं. यह देश का पहला Aromatic Garden है.

उत्तराखंड: वन अनुसंधान केंद्र ने नैनीताल जिले में देश का पहला सुगंधित उद्यान विकसित किया
उत्तराखंड: वन अनुसंधान केंद्र ने नैनीताल जिले में देश का पहला सुगंधित उद्यान विकसित किया

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Published : Oct 24, 2021, 5:30 PM IST

हल्द्वानी :उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान केंद्र ने नैनीताल जिले के लालकुआं में एक 'सुगंधित उद्यान' (Aromatic Garden) खोला है. यह उद्यान 3 एकड़ में फैला है. इसमें लगभग 140 विभिन्न सुगंधित पौधों की प्रजातियां हैं. यह देश का पहला Aromatic Garden है. उत्तराखंड वन अनुसंधान केंद्र ने कई विलुप्त प्रजातियों के पौधों को संरक्षित कर उनकी पहचान दिलाने का काम किया है. इसी के तहत वन अनुसंधान केंद्र लालकुआं ने देश-विदेश से विलुप्त हो रही एरोमेटिक पौधों को संरक्षित करने का काम किया है. वन अनुसंधान केंद्र ने लालकुआं में देश का पहला एरोमेटिक गार्डन का शुभारंभ किया है, जिसका नाम (सुरभि वाटिका) रखा है. कई सुगंधित पौधों के साथ-साथ 24 तुलसी की प्रजाति के पौधे भी शामिल हैं, जो विलुप्त के कगार पर हैं.

140 विलुप्त पौधों को करेगा संरक्षित

गार्डन के स्थापना करने का मुख्य उद्देश्य तुलसी अश्वगंधा पौधे के प्रजातियों को संरक्षित करना और इसके महत्व को लोगों को बताना है. इसके अलावा अनुसंधान केंद्र द्वारा लोगों तक एरोमेटिक पौधों को भी वितरित करने का काम किया जाएगा. उत्तराखडं के मुख्य वन संरक्षक और निदेशक अनुसंधान केंद्र संजीव चतुर्वेदी और वन टच एग्रीकॉन संस्था महाराष्ट्र बीना राव ने गार्डन का उद्घाटन करते हुए बताया कि अनुसंधान केंद्र ने देश का पहला एरोमेटिक गार्डन का स्थापना किया है, जो एक साथ 140 विलुप्त हो रहे सुगंधित पौधों की प्रजातियों को संरक्षित करने का काम करेगा.

नैनीताल जिले में देश का पहला सुगंधित उद्यान

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गार्डन कई राज्यों के सुगंध प्रजातियों के पौधों को उनकी पहचान भी दिला रहा है. इसी के तहत अब तुलसी वाटिका के स्थापना की है, जिसके तहत अभी तक 24 प्रजातियों के देश-विदेश के तुलसी के पौधे लाकर यहां पर संरक्षित किया गया है. उन्होंने बताया कि अनुसंधान केंद्र का मुख्य उद्देश्य विलुप्त हो रही औषधीय और सुगंधित पौधों का संरक्षण करना है. जिसके तहत कई प्रदेशों के वनस्पतियों को लाकर संरक्षण करने का प्रयास किया गया है.

वन अनुसंधान केंद्र ने सुगंधित उद्यान विकसित किया

3 एकड़ में फैला है उद्यान

सुगंधित उद्यान में सुगंधित पौधों की लगभग 140 विभिन्न प्रजातियां हैं, जो इसे भारत का सबसे बड़ा सुगंधित उद्यान तैयार यह उत्तराखंड वन विभाग के अनुसंधान विंग द्वारा लालकुआं में लगभग 3 एकड़ क्षेत्र में स्थापित किया गया है. परियोजना की शुरुआत वित्तीय वर्ष 2018-19 में अनुमोदन के अनुसार की गई थी. विभिन्न सुगंधित प्रजातियों के संरक्षण, इन प्रजातियों के बारे में जागरूकता पैदा करने, इन प्रजातियों के बारे में और अधिक शोध को बढ़ावा देने और भविष्य में स्थानीय लोगों की आजीविका से जोड़ने के लिए, केंद्र की कैंपा योजना के तहत परियोजना को वित्त पोषित किया गया है.

20 से अधिक तुलसी

लालकुआं को साइट के रूप में चुना गया था, क्योंकि यह कुछ औद्योगिक इकाइयों से आने वाली बदबू के कारण दुर्गंध की स्थायी समस्या के लिए जाना जाता है. सुगंधित उद्यान में तुलसी वाटिका है जिसमें तुलसी की 20 से अधिक प्रजातियां शामिल हैं, जिनमें राम तुलसी, श्याम तुलसी, वन तुलसी, कपूर तुलसी के साथ-साथ अफ्रीकी, इतालवी और थाई तुलसी शामिल हैं.

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सुगंधित उद्यान में तुलसी वाटिका के अलावा 8 अलग-अलग वर्ग हैं. सुगंधित पत्ते (नींबू बाम, मेंहदी, कपूर और विभिन्न टकसाल प्रजातियां), सुगंधित फूल (चमेली, मोगरा, रजनीगंधा, केवड़ा), सुगंधित पेड़ (चंदन, नीम चमेली, नागलिंगम, पारिजात), सुगंधित प्रकंद (आमा हल्दी, काली हल्दी), सुगंधित बीज ( कस्तूरी भिंडी, बड़ी इलाची, तैमूर, अजवाइन), सुगंधित घास (नींबू घास, जावा घास, खास घास), सुगंधित बल्ब (लाल अदरक, रेत अदरक) और सुगंधित जड़ें (पत्थरचूर, वच).

दक्षिण भारत से चंदन, उत्तर पूर्व से अगरवुड, तटीय क्षेत्रों से केवड़ा और तराई क्षेत्र से पारिजात, इसके अलावा नीम चमेली, हजारी मोगरा, सोंटाका, कहमेली, रात की रानी, ​​दिन का राजा और अनंत कुछ सबसे सुगंधित लोकप्रिय प्रजातियां हैं.

इसमें जैस्मीन की 9 अलग-अलग प्रजातियां, पुदीने की 4 अलग-अलग प्रजातियां, हल्दी की 4 अलग-अलग प्रजातियां और अदरक की 3 अलग-अलग प्रजातियां है. इन सुगंधित पौधों के अर्क का उपयोग सौंदर्य प्रसाधनों में स्वाद और सुगंध के प्रयोजनों के लिए किया जाता है. इसी तरह, ये पौधे मसालों, कीटनाशकों और विकर्षक बनाने में बहुत उपयोगी है.

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उन्होंने कहा कि विभिन्न सुगंधित प्रजातियों का संरक्षित कर इनके बारे में अनुसंधान को बढ़ावा देना और भविष्य में स्थानीय लोगों की आजीविका से जोड़ना है.

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