दिल्ली

delhi

ETV Bharat / bharat

भारत बेहतर ढंग से गेहूं निर्यात कर विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता बन सकता था : विशेषज्ञ - India could have better managed wheat exports

इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान का मानना है कि रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से गेहूं के आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत को स्थापित कर सकता था. उन्होंने कहा कि सरकार ने उपभोक्ता के अलावा अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के तहत ऐसा किया. पढ़िए ईटीवी भारत संवाददाता अभिजीत ठाकुर की रिपोर्ट...

MJ Khan, Chairman of Indian Chambers of Food and Agriculture
इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान

By

Published : May 18, 2022, 9:25 PM IST

Updated : May 18, 2022, 10:53 PM IST

नई दिल्ली :रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बाधित आपूर्ति श्रृंखला के कारण गेहूं का वैश्विक संकट भारत के लिए अपने निर्यात को बढ़ाने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में खुद को पेश करने का अवसर लेकर आया. इसका लाभ उठाने के लिए भारत आगे बढ़ा, लेकिन सरकार ने अचानक गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला कर लिया. इस निर्णय को लेकर मंगलवार को वाणिज्य विभाग के विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा समीक्षा की गई. इसके बाद सरकार ने कुछ छूट की घोषणा करते हुए कहा कि 13 मई से पहले पंजीकृत और जांच के लिए सीमा शुल्क को सौंपे गए उन खेपों को निर्यात करने की अनुमति दी जाएगी.

सरकार के अनुसार, पिछला आदेश भारत की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और मुद्रास्फीति की जांच करने के लिए जारी किया गया था, लेकिन विशेषज्ञों का सुझाव है कि लागू नियमों के बिना स्थिति को बेहतर ढंग से प्रभावी किया जा सकता था. इस संबंध में ईटीवी भारत से बात करते हुए इंडियन चैम्बर्स ऑफ फूड एंड एग्रीकल्चर के अध्यक्ष एमजे खान (MJ Khan, Chairman of Indian Chambers of Food and Agriculture) ने कहा कि अचानक प्रतिबंध का संभावित कारण उपभोक्ता मूल्य में वृद्धि थी, क्योंकि पिछले 25 वर्षों के रुझानों के अनुसार हमने देखा है कि सरकार बाजार के बजाय उपभोक्ता को पसंद करती है.

भारत बेहतर ढंग से गेहूं निर्यात कर विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता बन सकता था

उन्होंने कहा कि मौजूदा परिदृश्य में बड़ी संख्या में निजी क्षेत्र के द्वारा गेहूं खरीदने के लिए बाजार में आने से इसकी वैश्विक मांग बढ़ रही थी. साथ ही भारत में कटाई का मौसम इस बढ़ती वैश्विक मांग से मेल खा रहा था. इस प्रकार भारत एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर रहा था और यहां तक ​​कि वे देश भी भारत से खरीदारी करने के लिए कतार में थे, जिन्होंने कभी भारत से गेहूं नहीं खरीदा. इसमें मिस्र, तुर्की और अफ्रीकी देश भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि हालांकि अनुमानित उपज 112 मिलियन बताई गई है जो पिछले अनुमान से करीब 5 से 6 टन कम है.

एमजे खान ने कहा कि इस सीजन में कम उपज और बढ़ती मांग के कारण एफसीआई द्वारा सरकारी खरीद भी कम रही है. उन्होंने कहा कि निजी कंपनियों द्वारा एमएसपी से अधिक कीमत की पेशकश के साथ किसानों ने खुले बाजार में बेचने को प्राथमिकता दी जिससे सरकारी खरीद आधे से भी कम हो गई जो पिछले वर्ष के दौरान खरीदी गई थी. उन्होंने कहा कि पिछले साल सरकार ने रिकॉर्ड 433 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की थी लेकिन इस साल अनुमान लगभग 200 लाख मीट्रिक टन ही खरीद हुई है. सरकार के अनुसार, कम खरीद उनके बफर स्टॉक और पीडीएस कोटा को प्रभावित करेगी. वहीं किसान समूह और विशेषज्ञ कहते रहे हैं कि सरकार के पास पर्याप्त स्टॉक है. उन्होंने बताया कि सरकार ने इस साल 1.5 करोड़ टन गेहूं निर्यात करने का लक्ष्य रखा था और अप्रैल के अंत तक उन्होंने इसका लगभग आधा निर्यात कर दिया था. भले ही वे घरेलू मजबूरी की बात करें लेकिन हमारे पास अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त से अधिक बफर स्टॉक है.

उन्होंने कहा कि यह भारत के लिए एक अवसर था लेकिन दूसरा कारण अंतरराष्ट्रीय कूटनीति भी हो सकती है. विश्व बाजार भारत पर निर्भर है क्योंकि यह गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है, हो सकता है कि सरकार दुनिया के नेताओं को भारत के महत्व का एहसास कराना चाहती है और अन्य मुद्दों पर भी कूटनीतिक बातचीत करना चाहती है. एमजे खान ने कहा कि यह किसानों के लिए एक जीत की स्थिति थी यदि उन्हें खुले बाजार में एमएसपी से अधिक मिल रहा था लेकिन कम उपज ने उनकी संभावनाओं को बाधित किया और अब गेहूं के निर्यात पर सरकारी नियमों ने बाजार में कीमत को और नीचे ला दिया.

ये भी पढ़ें -गेहूं निर्यात को प्रतिबंधित करने वाले आदेश में दी गई ढील: भारत सरकार

विशेषज्ञ ने कहा कि यदि किसान अधिक कमा रहे थे तो सरकार को इसे होने देना चाहिए था. सरकार के लिए दूसरा लाभ देश को गेहूं के एक बड़े निर्यातक के रूप में स्थापित करना था जो हमें लंबे समय में लाभ दिला सकता था क्योंकि एक बार अनुबंध पर हस्ताक्षर किए जाने के बाद इससे लाभ मिलता रहता. साथ ही एक विश्वसनीय और विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में भारत की छवि बिखर गई है.उन्होंने कहा कि इस प्रकार भारत एक दीर्घकालिक लाभ से चूक गया है.

हालांकि यह एक अति रूढ़िवादी दृष्टिकोण हो सकता है लेकिन आंकड़ों पर कायम नहीं है. क्योंकि सरकार की बफर स्टॉक क्षमता लगभग 37.5 मिलियन टन है और हमें बफर सुरक्षा के लिए लगभग 7.5 मिलियन टन की आवश्यकता है. इस प्रकार हमारे पास अभी भी लगभग 30 मिलियन टन का अधिशेष है. यहां तक ​​कि अगर हम पीडीएस की आवश्यकता को अलग रखते हैं, तो भारत 15 मीट्रिक टन निर्यात कर सकता है. हम एक आरामदायक स्थिति में थे लेकिन सरकार ने अपने उपभोक्ता महत्व या अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के लिए इस कदम को चुना.

Last Updated : May 18, 2022, 10:53 PM IST

For All Latest Updates

TAGGED:

ABOUT THE AUTHOR

...view details