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पुलिस और सुरक्षाबलों के बीच जनजातीय क्षेत्रों का ज्ञान बढ़ाने की जरूरत : संसदीय समिति - आदिवासी क्षेत्रों पर संसदीय समिति का सुझाव

आदिवासी क्षेत्रों (tribal areas) में तैनात पुलिस और सुरक्षाबलों को लेकर संसदीय समिति ने गृह मंत्रालय को सुझाव दिया है. संसदीय समिति (Parliamentary committee) का कहना है कि जवानों को वहां के रीतिरिवाज और परंपराओं की जानकारी होनी चाहिए. वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

Former Director General of BSF Prakash Singh
बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह

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Published : Feb 17, 2022, 6:32 PM IST

Updated : Feb 17, 2022, 6:45 PM IST

नई दिल्ली:जनजातीय क्षेत्रों में अपराधों से निपटने के राज्य पुलिस बल के तरीकों को लेकर संसदीय समिति ने चिंता जताई है. केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) को आदिवासी क्षेत्रों में सुरक्षा बलों के बीच आदिवासी रीति-रिवाजों और परंपराओं के बारे में समझ पैदा करने का सुझाव दिया है.

राज्यसभा में कांग्रेस सांसद आनंद शर्मा की अध्यक्षता में गृह मामलों की संसदीय समिति (Parliamentaey committee on Home Affairs) ने आदिवासी क्षेत्रों में अपराधों से निपटने के बारे में चिंता व्यक्त की.

समिति का विचार था कि आदिवासी अभियुक्तों के साथ उनके रीति-रिवाजों और परंपराओं का सम्मान करते हुए एक सामरिक तरीके से व्यवहार किया जाना चाहिए. समिति ने कहा, 'प्रशिक्षण के पाठ्यक्रम का पुनर्निर्माण, पुनर्गठन और पुनर्रचना क्षेत्र के निवासियों के स्थानीय रीति-रिवाजों और परंपरा पर आधारित होना चाहिए क्योंकि पुलिस का कभी-कभी व्यवहार समाज में कट्टरपंथी समूहों को बढ़ावा देता है.'

सुनिए बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह ने क्या कहा
राजस्थान सरकार की तारीफ कीसमिति ने इस दिशा में राजस्थान सरकार के प्रयासों की सराहना की. उल्लेखनीय है कि राजस्थान सरकार ने आदिवासी क्षेत्र में हिंसक गतिविधियों को नियंत्रित करने और आदिवासी क्षेत्र में तैनात पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित करने के लिए उदयपुर जिले के पीटीएस खेरवाड़ा में जंगल और फील्ड क्राफ्ट प्रशिक्षण संस्थान की स्थापना की है. छह सप्ताह की अवधि के पहले पाठ्यक्रम में 36 पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित किया गया. आदिवासियों और अन्य अनियंत्रित जनता से उन्हें कैसे निपटना है इसके तौर-तरीके बताए गए. समय-समय पर विशेषज्ञों को नियुक्त करने के लिए एक विशेष बजट दिया गया है.

संसदीय समिति का मानना ​​है कि आदिवासी क्षेत्रों में अपराधों से निपटने के लिए पुलिस कर्मियों के लिए एक अलग प्रशिक्षण मॉड्यूल की आवश्यकता है. समिति ने सुझाव दिया, 'एसवीपीएनए और एनईपीए राज्य प्रशिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग कर सकते हैं ताकि जनजातियों के बीच सांस्कृतिक अंतर के अध्ययन को शामिल किया जा सके और पुलिस कर्मियों के प्रशिक्षण पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में उनकी आकांक्षाओं और परंपरा को शामिल किया जा सके.'

समिति का कहना है कि राज्यों के प्रशिक्षण नियमावली में भी ये संशोधन किया जा सकता है ताकि पुलिस अधिकारियों को विशेष रूप से आदिवासियों और अन्य कमजोर समूहों की स्थानीय परंपराओं और रीति-रिवाजों से अवगत कराया जा सके. समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, जनजातीय क्षेत्रों में अपराधों से बेहतर ढंग से निपटने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में तैनात पुलिस कर्मियों को आदिवासी नेताओं, गैर सरकारी संगठनों के कार्यकर्ताओं, वकीलों, विश्वविद्यालय के प्रोफेसरों के साथ-साथ आदिवासी मुद्दों पर विशेषज्ञता वाले विद्वानों के साथ नियमित बातचीत करनी चाहिए.

बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक ने ये कहा
संसदीय समिति के सुझावों का समर्थन करते हुए, बीएसएफ के पूर्व महानिदेशक प्रकाश सिंह ने नई दिल्ली में 'ईटीवी भारत' को बताया कि आदिवासी क्षेत्रों में काम करने के लिए जिन सुरक्षा बलों को जिम्मेदारी सौंपी जा रही है, उन्हें वहां की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के बारे में कोई जानकारी नहीं है. पुलिस और अन्य सुरक्षा बल जिन्हें आदिवासी क्षेत्रों में तैनात किया गया है, उन्हें आदिवासियों की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को जानना चाहिए..उन्हें आदिवासी संस्कृति और परंपराओं से अवगत कराया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा कि 'सुरक्षा बलों को आदिवासियों के साथ बातचीत में दोस्ताना तरीके से व्यवहार करना चाहिए. ... अगर आप आदिवासी रीति-रिवाजों को नहीं जानते हैं तो संभावना है कि आप उनका विरोध कर सकते हैं.'

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Last Updated : Feb 17, 2022, 6:45 PM IST

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