देहरादून:संयुक्त राष्ट्र में नमामि गंगे परियोजना को उन 10 सबसे बेहतर कार्यक्रमों में माना गया है, जो प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र की बहाली के लिए किए जा रहे हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में मन की बात कार्यक्रम के दौरान भी इस जानकारी को साझा किया था. खास बात यह है कि अब प्रधानमंत्री मोदी 30 दिसंबर को कोलकाता में नेशनल गंगा काउंसिल मीट के जरिए गंगा की स्वच्छता से जुड़े इन्हीं कामों की समीक्षा भी करने वाले हैं.
यूं तो प्रधानमंत्री का प्रयास ओवरऑल कार्यों पर फीडबैक लेना और नए सुझावों को जुटाना होगा, लेकिन समीक्षा से पहले जलीय जीवों को लेकर वैज्ञानिकों का अध्ययन उनके इस ड्रीम प्रोजेक्ट की सफलता को बयां कर रहा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि गंगा के जिन क्षेत्रों में रासायनिक अपशिष्ट या दूषित जल के कारण जलीय जीवों पर संकट खड़ा हो गया था, ऐसे कुछ क्षेत्रों में फिर जलीय जीवों के प्रजनन के सबूत मिले हैं.
गंगा में स्वच्छता को लेकर काफी सुधार हुआ:वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में नमामि गंगे परियोजना को देख रहीं वरिष्ठ वैज्ञानिक रुचि बडोला कहती हैं कि गंगा के पानी में जैसा प्रदूषण पूर्व में दिखाई देता था, अब वह हालात नहीं हैं. पानी की स्वच्छता देखने से ही नजर आ रही है. बडोला दावा करती हैं कि गंगा में स्वच्छता को लेकर काफी सुधार हुआ है. वह कहती हैं कि गंगा की स्वच्छता और जलीय जीवों को लेकर लोगों में आज पहले के मुकाबले बेहद ज्यादा जागरूकता भी आ चुकी है. गंगा का महत्व न केवल सभ्यता के विकास के रूप में रहा है बल्कि जीव जंतुओं के पोषण से लेकर गंगा सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से भी विशेष महत्व रखती है.
गंगा के किनारे वनीकरण का काम जारी:नमामि गंगे परियोजना के तहत न केवल गंगा की साफ सफाई के लिए काम किया जा रहा है, बल्कि शहरों से निकलने वाले गंदे पानी और कचरे को भी नदी में जाने से रोकने के लिए STP का निर्माण किया गया है. इस दौरान गंगा के किनारे वनीकरण करने का भी काम किया जा रहा है. इसके लिए विभिन्न संगठन और सरकार के विभागों के साथ ही बाकायदा गंगा टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है, जो अपने काम को प्रयागराज में बखूबी निभा रही है.