हैदराबाद :गांवों का विकास तभी होगा जब वहां के युवाओं को रोजगार मिलेगा. सरकार ने ग्रामीण रोजगार बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं. कई योजनाओं की शुरुआत भी की गई है, लेकिन उसका अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहा है. समय की मांग है कि सरकार कौशल प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान दे और उसमें महिलाओं की पूरी भागीदारी सुनिश्चित करे.
महात्मा गांधी ने कहा था कि 'हमसब को महिलाओं के निर्णय लेने की शक्ति का सम्मान करना चाहिए. उसे स्वीकार करें ताकि ग्रामीण स्वशासन की मशाल लगातार जलती रहे.' 2011 की जनगणना के अनुसार, देश की 68.84 फीसदी आबादी ग्रामीण है. 72.4 फीसदी श्रम शक्ति गांवों में है. राष्ट्रीय आय में ग्रामीण अर्थव्यवस्था का 47 फीसदी हिस्सा है. देश में महिला आबादी 48.5 फीसदी है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष का अनुमान है कि कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी को पुरुषों के स्तर तक बढ़ाने पर अर्थव्यवस्था में 27 प्रतिशत की वृद्धि हो सकती है. सरकारों ने ग्रामीण विकास का समर्थन करने वाली महिला कर्मचारियों को बढ़ाने के लिए कई ग्रामीण रोजगार योजनाएं शुरू की हैं.
आजीविका का साधन दिया जाना जरूरी
सरकार ने 1999 में स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना की शुरुआत की थी. उसका उद्देश्य आर्थिक गतिविधि बढ़ाना और स्थिर आय हासिल करना था ताकि गरीबी खत्म हो सके. इसके लिए प्रोफेसर राधाकृष्ण समिति की सिफारिशों के अनुसार जून 2011 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) शुरू किया गया था. 2015 में इसका नाम बदलकर दीनदयाल अंत्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन कर दिया गया.
सरकार का उद्देश्य कृषि और गैर-कृषि क्षेत्रों में विभिन्न आजीविका के अवसरों में वृद्धि करके ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करना है. उद्देश्य- ग्रामीण कल्याण और बुनियादी ढांचा प्रदान करना है.
मिशन का उद्देश्य गरीब परिवारों को लाभदायक स्वरोजगार, कुशल मजदूरी और रोजगार के अवसर प्रदान करके गरीबी को कम करना है. गरीबों के लिए मजबूत नींव वाले संस्थानों का निर्माण करना है, जिससे उन्हें स्थायी आजीविका का साधन प्रदान किया जा सके.
स्वयं सहायता समूह की पहल
देश के प्रत्येक ग्रामीण गरीब परिवार से एक महिला सदस्य के साथ स्वयं सहायता समूह बनाने की पहल की गई. इसके तहत देश की 2.5 लाख ग्राम पंचायतों में सात करोड़ ग्रामीण गरीब परिवारों को आजीविका प्रदान करने का निर्णय लिया गया.