हैदराबाद : नेताओं को फांसी पर चढ़ाना, निर्वासित करके मौत के घाट उतारना, जेलों में बंद करना, घरों में नजरबंद करना, पाकिस्तान के इतिहास की विशेषता रही है और ऐसा लगता है कि ये कभी खत्म नहीं होगा. ताजा घटनाक्रम मंगलवार को इस्लामाबाद उच्च न्यायालय में हुआ, जहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को कई मामलों में से दो में अदालत में पेश होना था, जहां से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सभी प्रकार के दंगा गियर से लैस सुरक्षा बल उन्हें एक भगोड़े की तरह घसीटकर वाहन तक ले गए.
देश में इस साल की आखिरी तिमाही में चुनाव होने हैं, ऐसे में सिंहासन (कुर्सी) का खेल शुरू हो गया है. मौजूदा व्यवस्था हरसंभव प्रयास करेगी कि उनकी शक्तिशाली दुश्मन, मुख्य राजनीतिक पार्टी पाकिस्तान तहरीक इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख आगामी चुनाव न लड़ पाएं. तोशखाना सहित किसी मामले में दोषसिद्धि होने पर वह अयोग्य हो जाएंगे और चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, जिसके लिए वर्तमान शासन ने शायद देश के पूर्व प्रधानमंत्री को गिरफ्तार कर लिया है. इमरान की पार्टी देश में जल्द चुनाव कराने पर जोर दे रही है, जो पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट और सरकार के बीच विवाद के कारण विफल हो गया है.
हालांकि खान को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ी राहत मिली, जिसने गुरुवार को पूर्व प्रधानमंत्री की गिरफ्तारी को 'अवैध' घोषित कर दिया. उसके आदेश पर एक पीठ के समक्ष पेश किए जाने के बाद उनकी तत्काल रिहाई का आदेश दिया. पीठ ने अल-कादिर ट्रस्ट मामले में उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ के अध्यक्ष की याचिका पर सुनवाई करते हुए अर्धसैनिक रेंजरों द्वारा उन्हें हिरासत में लेने के तरीके पर नाराजगी व्यक्त की. कोर्ट ने अधिकारियों को पेश करने का आदेश दिया.
पीठ ने राष्ट्रीय जवाबदेही ब्यूरो (एनएबी) को 70 वर्षीय नेता खान को शाम साढ़े चार बजे (स्थानीय समय) तक पेश करने का निर्देश दिया था. शीर्ष अदालत ने घोषणा की कि खान की गिरफ्तारी 'अवैध' थी और आदेश दिया कि उन्हें रिहा किया जाना चाहिए. जैसा कि उनके समर्थक अदालत के आदेश के बाद उनकी रिहाई का इंतजार कर रहे हैं, हालांकि इमरान खान अब तक स्पष्ट रूप से समझ गए होंगे कि अब वह पाकिस्तानी सेना के चहेते नहीं हैं. सेना ने वर्तमान सरकार का साथ दिया है.
वहीं, ऐसा लगता है कि तालिबान ने भी अफगानिस्तान पर अधिकार प्राप्त करने के बाद अपनी वफादारी बदल ली है और इमरान से मुंह मोड़ लिया है. कभी तालिबान उनका प्रशंसक था, लेकिन अफगानिस्तान पर कब्जा करने के बाद उसका रुख भी बदल गया है.
चीन की बात करें तो यह इमरान सरकार ही थी जिसने उइगर संकट पर चीनी सरकार के सामने समाधान प्रस्तावित किया था, जो कम्युनिस्ट देश के लिए आंख की किरकिरी थी. ऐसे समय में जब इमरान को चीन के साथ की सबसे ज्यादा जरूरत है, उसने (चीन) इमरान के लिए या उनके खिलाफ कोई टिप्पणी नहीं की है. इसके बजाय चीन ने पाकिस्तान की सेना का तारीफ की है. ताजा घटनाक्रम पर चीन की स्थिति दर्शाती है कि सक्रिय भागीदारी से बचने के लिए कभी-कभी मौन का उपयोग किया जा सकता है.
चीन समझता है कि पाकिस्तान में जो कुछ भी हो रहा है वह नया नहीं है, और यह स्थिति एक अकल्पनीय परिदृश्य में स्नोबॉल करने की क्षमता रखती है. अतीत में ऐसी कई घटनाएं हुई हैं जिनमें शीर्ष पदों पर आसीन लोगों को जेल में डाल दिया गया और यहां तक कि मौत की सजा भी दी गई है. जैसे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो. उन्हें अहमद रजा खान के खिलाफ हत्या की योजना बनाने का आदेश देने के लिए ये सजा दी गई. अहमद रजा खान भुट्टो सरकार के कट्टर आलोचक थे. रज़ा को मारने के उद्देश्य से किए गए गुप्त हमले में उनके पिता मोहम्मद अहमद खान कसूरी मारे गए. हालांकि हत्या के इस प्रयास में अहमद रज़ा बाल-बाल बच गए.
इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो को सरकार विरोधी नारे लगाने के आरोप में गिरफ्तार कर तीन महीने के लिए जेल भेज दिया गया था. एक अन्य नेता, पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री हुसैन सुहरावर्दी को एकान्त कारावास में रखा गया था. क्योंकि वह तत्कालीन सैन्य नेतृत्व के चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंकने और सैन्य शासन स्वीकार करने के लिए राजी नहीं हुए थे.