नई दिल्ली : आजाद भारत के इतिहास में श्रीनगर में लालचौक पर तिरंगा फहरा कर सबसे ज्यादा सुर्खियां यदि किसी दो नेता ने बटोरी उनमें पहले थे मुरली महनोहर जोशी और दूसरे थे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी. वह साल था 1992 का और कश्मीर में आतंकवाद चरम की ओर बढ़ रहा था. यहां झंडा फहराने से पहले मुरली मनोहर जोशी ने 1991 में कन्याकुमारी से भारत एकता की शुरुआत की थी. इस यात्रा के व्यवस्थापक थे नरेंद्र मोदी. यानी यात्रा के रूट से लेकर ठहराव और कार्यक्रम सबकुछ तय करना उनकी जिम्मेदारी थी.
उस यात्रा में नरेंद्र मोदी की भूमिका को याद करते हुए मुरली मनोहर जोशी ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनकी यात्रा सफल हो सके, इसका प्रबंधन मोदी के हाथों में था. उनके अनुसार, 'यात्रा लंबी थी. अलग-अलग राज्यों के अलग-अलग प्रभारी थे और उनका को-ऑर्डिनेशन नरेंद्र मोदी करते थे. यात्रा सुगमता से चलती रहे, लोगों और गाड़ियों का प्रवाह बना रहे, सबकुछ समय पर हो, यह सारा काम नरेंद्र मोदी ने बहुत कुशलता के साथ किया और जहां आवश्यकता होती थी, वहां वो भाषण भी देते थे.'
एक मीडिया चैनल से बात करते हुए मुरली मनोहर जोशी ने कहा था कि उनकी यात्रा का उद्देश्य बहुत स्पष्ट था. उन्होंने कहा, 'जम्मू-कश्मीर में पिछले कई सालों से जो हालात थे वो लोगों को परेशान कर रहे थे. बहुत सारी सूचनाएं आती थीं इस बारे में. मैं उस समय पार्टी का महासचिव था. यह तय हुआ कि जम्मू-कश्मीर का ग्राउंड सर्वे किया जाए. वो किया भी गया. केदारनाथ साहनी, आरिफ बेग और मैं, तीन लोगों की कमेटी बनी और हम 10-12 दिन तक जम्मू-कश्मीर में दूर-दूर तक गए.'
जोशी ने कहा था, 'आतंकवादियों' को प्रशिक्षण दिया जा रहा था, उसे भी देखने गए. जो कश्मीरी पंडित वहां से निकाले गए थे और जिन कैंपों में वो रह रहे थे, वहां भी गए, उनसे भी मिले और घाटी में जो कुछ भी भारत विरोधी गतिविधियां हो रही थीं, उसे भी देखा.' जोशी ने आगे कहा कि यही वह दौर था जब नेशनल कॉन्फ्रेंस में दो गुट हो गये थे. जोशी के शब्दों में दोनों यह साबित करने में लगे थे कि कौन ज्यादा भारत विरोधी है.