गया:पितृपक्ष के तहत गयाजी में पिंडदानका आज छठवां दिन है. पिंडदानी आज छठा पिंडदान (Sixth Day Of Pinddan In Gaya) कर रहे हैं. गयाजी में पिंडदान के छठवें दिन विष्णुपद गर्भगृह के ठीक बगल में स्थित 16 पिंडवेदियों पर तर्पण करने का विधान है. यहां लगातार तीन दिनों तक एक-एक कर सभी पिंडवेदियों पर पिंडदान किया जाएगा. ये पिंडवेदियां स्तंभ के रूप में हैं. यहां लोग पितरों को पिंड अर्पित करने के बजाए स्तंभों को पिंड अर्पित करते हैं. इसके पीछे पौराणिक कथा का महत्व है.
16 पिंडवेदियों पर तर्पण: दरअसल, गयाजी में पिंडदान के छठवें दिन ( Importance Of Sixth Day Of Pitru Paksha) विष्णुपद मंदिर (Vishnupad Temple In Gaya) स्थित पद रूपी तीर्थों में श्राद्ध करते हैं. छठवें दिन पहले फल्गु नदी में स्नान करके मार्कंडेय महादेव का दर्शन कर विष्णुपद स्थित सोलह वेदियों पर जाने की प्रथा है. यहां आकर विष्णु भगवान सहित अन्य भगवानों को जिनके नाम से वेदी हैं, उनको स्मरण करना चाहिए. उसके बाद पिंडदान का कर्मकांड शुरू करना चाहिए.
पितरों को मिलता है अक्षय लोक: फल्गु नदी मार्कंडेय महादेव से लेकर उत्तर मानस तक ही फल्गु तीर्थ है. इतनी दूरी में ही स्नान, तर्पण और श्राद्ध करने से फल्गु तीर्थ का श्राद्ध माना जाता है. मार्कंडेय से दक्षिण नदी का नाम निरंजना और उत्तर मानस से उत्तर इसका नाम भुतही है. फल्गु के तट पर ही दिव्य विष्णु पद है. जिसके दर्शन, स्पर्श और पूजन से पितरों को अक्षय लोक मिलता है. विष्णुपद पर स्थित सभी पिंडों का श्राद्ध करने से अपने सहित एक हजार कुलों का दिव्य अनन्त कल्याणकारी अव्यय विष्णुपद को पहुंचता हैं.
यह है मान्यता: पौराणिक कहानी है कि भीष्म पितामह अपने शान्तनु का श्राद्ध करने जब गया जी आए थो, तो उन्होंने विष्णु पद पर अपने पितरों का आह्वान किया और श्राद्ध करने को उद्दत हुए. उसी दौरान शान्तनु के हाथ निकले लेकिन भीष्म पितामह ने शान्तनु के हाथ पर पिंड न देकर विष्णुपद पर पिंडदान किया. इससे प्रसन्न होकर शांतनु ने आशीर्वाद दिया कि तुम शास्त्रार्थ में निश्चल एवं त्रिकाल में दृष्टा होगे. अंत में विष्णु पद को प्राप्त होगे. इसी तरह रुद्र पद पर भगवान श्रीराम पिंडदान करने को तैयार हुए. उसी समय राजा दशरथ ने हाथ निकाला. लेकिन राम जी ने हाथ पर पिंड न देकर रुद्रपद पर पिंड दिया. इससे प्रसन्न होकर राजा दशरथ ने राम जी से कहा कि तुमने मुझे तार दिया. हम रुद्र लोक के प्राप्त करेंगे. छठवें, सातवें और आठवें दिन विष्णुपद, रुद्रपद, ब्रह्मपद एवं दक्षिणानिग पद पर पिंडदान करने की विधि-विधान है.
स्तंभों के पीछे की कहानी: स्तंभों के पीछे की भी एक कहानी है. जब ब्रह्मा जी गयासुर के शरीर पर यज्ञ कर रहे थे, तब उन्होंने 16 भगवानों का आह्वान किया था. सोलह भगवान ब्रह्मा जी के आह्वान पर यज्ञ में शामिल हुए. उन सभी ने यहां स्तंभ रूपी पिंडवेदी बनायी. जहां-जहां स्तंभ हैं, वहां यज्ञ के दौरान देवताओं ने बैठकर आहुति दी थी. बताते चलें कि पिंडदानी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर रहे हैं. पिंडदान करने वाले ज्यादातर लोगों को इच्छा होती है कि वे अपने पूर्वजों का पिंडदान गयाजी में ही करें. हिंदू मान्यताओं के अनुसार पिंडदान और श्राद्ध करने से व्यक्ति को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. देश में कई जगहों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन गया में पिंडदान करना सबसे फलदायी माना जाता है. इस जगह से कई धार्मिक कहानियां जुड़ी है.
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करने के लिए गया जाता है. उनके पूर्वजों को स्वर्ग में स्थान मिलता है. क्योंकि भगवान विष्णु यहां स्वयं पितृदेवता के रूप में मौजूद हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर नामक के राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वे देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और उसके दर्शनभर से लोगों के पाप दूर हो जाए. इस वरदान के बाद जो भी पाप करता है, वो गयासुर के दर्शन के बाद पाप से मुक्तु हो जाता है. ये सब देखकर देवताओं ने चिंता जताई और इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर के पीठ पर यज्ञ करने की मांग की. जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया और तब देवताओं ने यज्ञ किया. इसके बाद देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस जगह पर आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म और तर्पण करेगा उसके पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी. यज्ञ खत्म होने के बाद भगवान विष्णु ने उनकी पीठ पर बड़ा सा शीला रखकर स्वयं खड़े हो गए थे.
गरूड़ पुराण की मान्यता: गरूड़ पुराण मे भी कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म के लिए गया जाता है, उसका एक- एक कदम पूर्वजों को स्वर्ग की ओर ले जाता है. मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध करने से व्यक्ति सीधा स्वर्ग जाता है. फ्लगु नदी पर बगैर पिंडदान करके लौटना अधूरा माना जाता है. पिंडदानी पुनपुन नदी के किनारे से पिंडदान करना शुरू करते हैं. फल्गु नदी का अपना एक अलग इतिहास है. फल्गु नदी का पानी धरती के अंदर से बहती है. बिहार में गंगा नदी में मिलती है. फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ के आत्मा की शांति के लिए नदी के तट पर पिंडदान किया था. गया में विभिन्न नामों से 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था. इनमें से 48 बची हुई हैं. इस जगह को मोक्षस्थली कहा जाता है. हर साल पितपक्ष में यहां 17 दिन के लिए मेला लगता है.
भूल के भी ना करें ये काम:पितृ पक्ष के दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.
गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.
पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.
दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.
चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.