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क्या इस बार उत्तरप्रदेश विधानसभा में बढ़ेगी मुस्लिम विधायकों की तादाद ? - muslim voters in up

यूपी की सियासत में मुस्लिम करीब 143 विधानसभा सीटों पर निर्णायक की भूमिका में हैं. पिछले चुनाव में जहां मुस्लिम वोट कई दलों के बीच बंट गया, वहीं ओबीसी वोट भाजपा के खाते में गए. इसका फायदा भाजपा को पिछले चुनाव में लाभ मिला था और पार्टी कई मुस्लिम बहुल सीटों पर पार्टी जीत दर्ज करने में कामयाब हुई थी. सूबे में मुस्लिमों की अनुमानित आबादी करीब 20 फीसद है. बावजूद इसके 2017 में केवल 23 मुस्लिम विधायक ही चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. हालांकि, मुस्लिम विधायकों की सबसे अधिक संख्या 2002 में 64 रही थी.

Importance of Muslims in UP politics
Importance of Muslims in UP politics

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Published : Jan 18, 2022, 1:34 PM IST

हैदराबाद :भले ही सूबे में भाजपा राष्ट्रवाद और विकास के नाम पर चुनाव लड़ने की बात कह रही हो, लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं के हालिया बयानों ने यह साफ कर दिया है कि अबकी भाजपा एक बार फिर जियारत पर सियासत के मूड में है यानी धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश चरम पर है. वहीं, सूबे की गैर भाजपा पार्टियों की निगाहें मुस्लिम वोटों पर टिकी हैं. इन वोटों का एक बड़ा हिस्सा समाजवादी पार्टी के पास रहा है, लेकिन बहुजन समाज पार्टी और कांग्रेस को भी मुस्लिम वोट पारंपरिक तौर से मिलता रहा है. इस बार असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम इन वोटों की नई दावेदार हैं. गौरतलब है कि प्रदेश की 143 सीटों पर मुस्लिम मतदाता प्रभावी हैं.

यूपी में मुस्लिमों की अनुमानित आबादी करीब 20 फीसद है. वहीं, 2007 में बड़े पैमाने पर मुस्लिमों ने बसपा के पक्ष में मतदान किया था. इस चुनाव में ऐसा माना जा रहा है कि मुस्लिमों का वोट समाजवादी पार्टी को जाएगा. पर ये एक अनुमान मात्र है, क्योंकि कि एकमुश्त वोट होगा कि नहीं, यह बड़ा सवाल है. साल 2007 में इस समुदाय के मतदाताओं ने बसपा के पक्ष में मतदान किया था तो 2012 में इनका वोट सपा को गया था. लेकिन 2017 में यह सपा, कांग्रेस और बसपा के बीच बंट गए थे. उत्तरप्रदेश में 20 फीसद की बड़ी आबादी होने के बाद भी 2017 में केवल 23 मुस्लिम ही विधायक चुने गए थे.

2022 के विधानसभा चुनाव में एआईएआईएम के असदुद्दीन ओवैसी भी बड़े फैक्टर होंगे.

मुस्लिम विधायकों की सबसे अधिक संख्या साल 2002 में 64 थी. जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, 40 सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 30 फीसद से अधिक है. रामपुर, फर्रुखाबाद और बिजनौर ऐसे क्षेत्र हैं, जहां मुस्लिमों की संख्या करीब 40 फीसद है. एक अनुमान के मुताबिक सूबे की 143 सीटों में से 73 सीटें ऐसी हैं, जहां मुस्लिमों की संख्या 20 से 30 फीसद के बीच मानी जाती है और करीब 40 सीटों पर मुस्लिम आबादी 30 फीसद से अधिक है.

यूपी में 1970 और 1980 के दशक में समाजवादी विचारधारा वाली पार्टियों के उदय और कांग्रेस के पतन के बाद पहली बार विधानसभा में मुस्लिमों के प्रतिनिधित्व में वृद्धि हुई. विधानसभा में मुस्लिम विधायकों की संख्या 1967 में 6.6 फीसद थी, जो 1985 में 12 फीसद हो गई. 1980 के दशक के आखिर में भाजपा के उदय के साथ 1991 अल्पसंख्यक विधायकों की संख्या घटकर 5.5 फीसद हो गई है.

आंकड़ों के अनुसार, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी मुस्लिम उम्मीदवारों को सबसे अधिक टिकट देते हैं. भाजपा यहां शायद ही किसी मुस्लिम को अपना प्रत्याशी नामांकित करती है. वहीं, कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी आमतौर पर हार ही जाते हैं. ऐसे में यूपी में अधिकांश मुस्लिम विधायक सपा और बसपा के हैं. इसलिए जब सपा और बसपा अच्छा प्रदर्शन करते हैं तो विधानसभा में मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व बढ़ता है. जब भाजपा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करती है तो यह संख्या घट जाती है.

अब संघ ने मुस्लिमों से भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील करके सबको चौंका दिया है. मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ने मुस्लिम समुदाय से भाजपा को वोट देने की अपील की है. मंच ने दावा किया है कि कांग्रेस, सपा और बसपा शासन की तुलना में भाजपा के राज में मुस्लिम अधिक सुरक्षित और खुशहाल हैं. एमआरएम ने केंद्र और राज्यों में भाजपा सरकारों की ओर मुस्लिम समुदाय के कल्याण के लिए लागू की गई. विभिन्न योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि भाजपा देश में मुस्लिमों की सबसे बड़ी शुभचिंतक है.

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