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बिहार में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करना बड़ी चुनौती, लग सकते हैं कई साल

बिहार में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करना बड़ी चुनौती है. नई शिक्षा नीति में पूरे देश की स्कूली और विश्वविद्यालय शिक्षा को वर्तमान जरूरतों के मुताबिक ढालने की सिफारिश की गई है. अब तक सरकारी व्यवस्था से बाहर रहे नर्सरी एजुकेशन को भी सरकारी स्कूलों से जोड़ने की सिफारिश की गई है.

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Published : Mar 31, 2021, 10:06 PM IST

शिक्षा नीति
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पटना:नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लेकर चर्चा तो बहुत हो रही है, लेकिन बिहारमें एनईपी लागू करना बड़ी चुनौती है. जो स्थितियां बिहार में हैं और जो शिक्षाविद आशंका जता रहे हैं उस आधार पर बिहार में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करना वर्तमान समय में इतना आसान नहीं दिखता.

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नई शिक्षा नीति में पूरे देश की स्कूलीऔर विश्वविद्यालय शिक्षा को वर्तमान जरूरतों के मुताबिक ढालने की सिफारिश की गई है. अब तक सरकारी व्यवस्था से बाहर रहे नर्सरी एजुकेशन को भी सरकारी स्कूलों से जोड़ने की सिफारिश की गई है. इसके साथ-साथ प्राथमिक शिक्षा में स्थानीय भाषा में बच्चे पढ़ पाएंगे. इसके अलावा हायर एजुकेशन में भी व्यापक स्तर पर बदलाव की सिफारिश की गई है.

राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने बढ़ा दी बिहार की चुनौती
जिस तरह के बदलाव नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत किए जाने हैं उसे लेकर बिहार कितना तैयार है हमने यह जानने की कोशिश की. बिहार में पहले से ही शिक्षा विभाग के सामने कई बड़ी चुनौतियां हैं, जिनमें प्रमुख तौर पर सरकारी स्कूलों की व्यवस्था ठीक करना, सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की व्यवस्था करना, शिक्षक छात्र अनुपात सही करना, कॉलेजों में आधारभूत संरचना बेहतर करना, रिसर्च और अन्य गतिविधियां बढ़ाने की चुनौती पहले से ही बिहार सरकार के सामने हैं. अब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने यह चुनौतियां कई गुना बढ़ा दी है.

देखें रिपोर्ट

राष्ट्रीय शिक्षा नीति की खास बातें

  • 3 साल से ऊपर के बच्चों को सरकारी स्कूलों से जोड़ना, उनके लिए नर्सरी स्तर की पढ़ाई शुरू करवाना
  • कक्षा 1 से 5 तक के बच्चों को स्थानीय भाषा में शिक्षा देना
  • कक्षा 6 से ऊपर के बच्चों को पारंपरिक पढ़ाई के साथ रूचि अनुसार कौशल विकास की पढ़ाई कराना
  • 10+2 की जगह 5+3+3+4 सिस्टम नई शिक्षा नीति के तहत लागू होगा

शिक्षा विभाग ने बनाई 6 कमेटी

  • शिक्षा विभाग ने नई शिक्षा नीति 2020 को बिहार में लागू करने के लिए 6 कमेटियां बनाई हैं. इन सभी कमेटियों को अलग-अलग दिशा में काम करने की जिम्मेदारी दी गई है.
  • पहली समिति 3 साल से ऊपर के बच्चों के देखभाल और उनकी शिक्षा को लेकर रिपोर्ट देगी.
  • दूसरी समिति को स्कूल रेगुलेशन और संबद्धता देने के अलावा समावेशी शिक्षा और ड्रॉप आउट पर भी रिपोर्ट देनी है.
  • तीसरी समिति विभिन्न भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने और वोकेशनल एजुकेशन पर अपनी रिपोर्ट देगी.
  • चौथी समिति टीचर ट्रेनिंग और एजुकेशन पर रिपोर्ट देगी.
  • पांचवी समिति को ऑनलाइन और डिजिटल एजुकेशन पर रिपोर्ट सौंपनी है.
  • छठी समिति को एडल्ट एजुकेशन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा लागू करने पर रिपोर्ट देनी है.

50 फीसदी तक पहुंचाना है ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो
शिक्षा विभाग के सचिव असंगबा चुबा आओ ने कहा 'हायर एजुकेशन में व्यापक बदलाव के लिए बिहार में काफी कुछ किया जाना है. सबसे पहले 2035 तक हमें ग्रॉस एनरोलमेंट रेशियो (GER) को 50% तक पहुंचाना है जो वर्तमान में महज 13.5 फीसदी है.'

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इस बारे में शिक्षा विभाग के सचिव असंगबा चुबा आओ का कहना है कि यूनिवर्सिटी में कम से कम 175000 स्टूडेंट्स के लिए आधारभूत संरचना तैयार करना है, जिसके तहत नए कॉलेज खोले जाएंगे और ज्यादा से ज्यादा निजी विश्वविद्यालयों को भी बिहार में खोलने की इजाजत मिलेगी. बिहार में नई शिक्षा नीति लागू करना बड़ी चुनौती है. इसके लिए काफी काम करना है.

वहीं मिड डे मील के निदेशक सतीश चंद्र झा ने कहा कि स्कूली शिक्षा में पहले 3 साल बच्चे आंगनबाड़ी में प्री स्कूलिंग शिक्षा लेंगे. इसके बाद अगले 2 साल कक्षा 1 और 2 में बच्चे स्कूल में पढ़ेंगे. इन 5 सालों की पढ़ाई के लिए एक नया पाठ्यक्रम तैयार होगा, जिसके लिए काम चल रहा है. शिक्षा विभाग न्यू एजुकेशन पॉलिसी लागू करने के लिए एक साथ कई काम कर रहा है, जिनके सार्थक परिणाम आने वाले समय में देखने को मिलेंगे.

बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष केदारनाथ पांडे ने कहा कि केंद्र सरकार का मानना है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करने में कई साल लगेंगे. बिहार में तो पहले से ही शिक्षा में कई खामियां हैं, जिन्हें दूर करना है. विशेष तौर पर ट्रेंड शिक्षकों की कमी और स्कूलों में आधारभूत संरचना का अभाव एक बड़ी समस्या है.

इसी तरह शिक्षा विशेषज्ञ संजय कुमार ने बताया कि चाहे स्कूली शिक्षा हो या हायर एजुकेशन, हर जगह शिक्षकों की भारी कमी है. बिहार में जितने शिक्षक काम कर रहे हैं उन्हें ट्रेनिंग की व्यवस्था उपलब्ध नहीं है. जो स्कूल और कॉलेज हैं वहां पर्याप्त संख्या में नन टीचिंग स्टाफ नहीं हैं जो शिक्षा विभाग के एक अहम भाग हैं.

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