हैदराबाद:आज की दुनिया में सोशल मीडिया सूचनाओं के आदान-प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इंस्टाग्राम और ट्विटर भावनाओं को साझा करने और आभासी दोस्तों के साथ रोजमर्रा की अद्यतन जानकारी साझा करने के लिए पसंदीदा साइट हो गई हैं. और तो और राजनीतिक दल और नागरिक संगठन लोगों को अपने पक्ष में करने के लिए ऑनलाइन अभियान चला रहे हैं.
सरकारों की ओर से सोशल मीडिया का उपयोग नागरिकों की शिकायतों को दूर करने और कल्याणकारी योजनाओं का कितना काम हुआ इस पर नजर रखने के लिए भी किया जा रहा है. दूसरी तरफ इन साइटों का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग होता है, जो अपने आप में इसका नकारात्मक पक्ष है. विशेष रूप से किशोर और छोटे बच्चे तो इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स से जुड़ गए हैं. कुछ साल पहले तक शैक्षणिक संस्थान अपने पाठ्यक्रम में पढ़ाई के अलावा अन्य गतिविधियों को शामिल करते थे. स्मार्टफोन के आने के बाद पढ़ने की आदत तेजी से गायब हो रही है. लोग बिना काम के ब्राउजिंग करने में समय बर्बाद करके खुश हैं. वॉट्सएप, यूट्यूब और फेसबुक ने हमारे जीवन को काबू में करना शुरू कर दिया है.
महामारी और लॉकडाउन सुनिश्चित करने के दौरान सोशल मीडिया के उपयोग में बढ़ोतरी हुई थी. ऑनलाइन कक्षाओं के लिए स्मार्टफोन अनिवार्य होने के बाद छात्रों में डिजिटल लत भी तेजी से बढ़ गई. अध्ययनों से पता चला है कि अश्लील (पोर्नोग्राफी) साइट्स देखने वालों की तादात चिंताजनक रूप से बढ़ गई.
विशेषज्ञों की चेतावनी है कि सोशल मीडिया के तेजी से फैलाव में जोखिम भी है. बहुत अधिक डिजिटल मौजूदगी से बच्चों की शारीरिक गतिविधियां प्रभावित हो रही हैं, जिसके परिणामस्वरूप पढ़ाई में खराब ग्रेड आ रहे हैं और बच्चे मोटापा के शिकार हो रहे हैं.
राजनीतिक दल और धार्मिक संगठन अपने ऑनलाइन अभियानों के माध्यम से युवाओं को प्रभावित कर रहे हैं. डिजिटल उपकरणों के आदी बच्चों में असहिष्णुता, अज्ञानता और अपमानजनक व्यवहार आम बात है. बहुत सारे लोगों के खिलाफ अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर आपत्तिजनक संदेश पोस्ट करने के लिए आईटी एक्ट 2000 की धारा 66 के तहत मामला दर्ज किया गया है. इन डिजिटल मंचों का बढ़ता उपयोग देश की आंतरिक सुरक्षा को चुनौती दे रहा है. इससे सामाजिक विवाद बढ़ रहा है.