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जनगणना पर भी पड़ी कोरोना की मार, जानिये आपको क्या होगा नुकसान ?

कोरोना का असर देश में इस साल होने वाली जनगणना पर भी पड़ गया है. सरकार ने फिलहाल जनगणना के कार्यक्रम को टाल दिया है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि जनगणना ना होने का असर आपकी जिंदगी पर भी पड़ सकता है ? जानने के लिए पढ़िये ईटीवी भारत एक्सप्लेनर

जनगणना 2021
जनगणना 2021

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Published : Aug 23, 2021, 3:29 PM IST

हैदराबाद: बीते करीब डेढ साल से दुनिया की शायद ही कोई चीज़ हो जिसपर कोरोना का असर ना पड़ा हो. भारत में हर दस साल में होने वाली जनगणना भी इससे अछूती नहीं रही. देश में 2021 की जनगणना का काम पिछले साल अप्रैल से शुरू होकर इस साल फरवरी तक होना था. लेकिन कोरोना ने ऐसा ब्रेक लगाया कि 2021 के लगभग 8 महीने बीतने के बाद भी जनगणना का काम तो छोड़िये महामारी के कारण जनगणना करने वाले 30 लाख कर्मचारियों की ट्रेनिंग तक नहीं हो पाई.

जनगणना 2021 पर कोरोना की मार

कुल मिलाकर कोरोना वायरस ने दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले देश की जनगणना कार्यक्रम पर भी ब्रेक लगा दिया. केंद्र सरकार ने फिलहाल जनगणना 2021 को टाल दिया है. अब इसका आपकी जिंदगी पर क्या असर होगा ? जनगणना कब से हो रही है और क्यों हो रही है? इस तरह के हर सवाल का जवाब आपको मिलेगा इस आर्टिकल में, लेकिन सबसे पहले जानिये

क्या होती है जनगणना ?

जनगणना यानि लोगों की गिनती यानि वो प्रक्रिया जिसके तहत एक निश्चित समय पर किसी देश में रह रहे नागरिकों की संख्या के साथ-साथ उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, आर्थिक, धार्मिक, भाषा आदि से जुड़े आंकड़े इकट्ठे किए जाते हैं. फिर इन्हें प्रकाशित भी किया जाता है. इन आंकड़ों के आधार पर देश की जनसंख्या में आयु, धर्म, राज्य आदि से जुड़े कई और पहलुओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त होती है.

साल दर साल बढ़ रही है देश की जनसंख्या

भारत में जनगणना

भारत में साल 1881 में पहली बार जनगणना हुई थी. जिसके बाद से हर 10 साल में जनगणना होती है और इससे जुड़े आंकड़े प्रकाशित किए जाते हैं. भारत की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, साल 1901 से हुई 12 जनगणना पर नज़र डालें तो सिर्फ साल 1921 में हुई जनगणना के दौरान आबादी में कमी आई थी लेकिन उसके बाद से जनसंख्या लगातार बढ़ रही है. साल 2000 में भारत की जनसंख्या ने एक अरब का आंकड़ा पार कर लिया था जिसकी गवाही 2001 जनगणना के आंकड़े भी देते हैं. भारत दुनिया में चीन के बाद दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश रहा है लेकिन जानकार मानते हैं कि बहुत जल्द इस मामले में चीन पिछड़ जाएगा.

भारत की जनगणना और जनसंख्या

क्यों जरूरी है जनगणना ?

इस सवाल के जवाब में कई लोग कहेंगे की देश के नागरिकों की गिनती के लिए जनगणना की जाती है. पहली नजर में ये जवाब ठीक भी है लेकिन जनगणना का महत्व सिर्फ इतना भर नहीं है.

1. आंकड़ों का व्यापक स्रोत है

जनगणना का काम देश की सरकारें करवाती हैं, ऐसे में ये आंकड़ों का एक पुख्ता और व्यापक स्रोत होता है. भारत जैसे देश की आबादी से जुड़े आंकड़े दुनियाभर के देशों, कंपनियों, छात्रों, या भारत और दुनिया में विभिन्न तरह के कार्यक्रम चलाने वाले संगठनों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी साबित हो सकते हैं. खासकर वैश्वीकरण (Globalization) के इस दौर में जनगणना के आंकड़े बहुत मूल्यवान साबित हो सकते हैं.

2. नीति निर्माण में सहायक

किसी देश की जनगणना के आंकड़े वहां के नागरिकों के सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, शैक्षिक समेत कई पहलूओं की जानकारी देते हैं. जिनके जरिये देश और राज्य की सरकारों को नीतियां बनाने और उन्हें लागू करने की योजना बनाने में मदद मिलती है.

3. शोध, विकास और नीतियों का क्रियान्वयन

जनगणना के आंकड़े आयुर्विज्ञान से लेकर अर्थशास्त्र जैसे मुद्दों के लिए महत्वपूर्ण स्रोत साबित होते हैं. इन आंकड़ों की सहायता से विधायिका द्वारा जनता के लिए विकास परियोजनाएं तैयार की जाती हैं और प्रशासनिक अधिकारी उनका क्रियान्वयन करने के लिए इन आंकड़ों का सहारा लेते हैं. कुल मिलाकर इन आंकड़ों की मदद से उपलब्ध संसाधनों की मदद से जरूरतमंदों के लिए नीतियों का निर्धारण कर बेहतर परिणाम हासिल किए जा सकते हैं.

उदाहरण के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत गरीब परिवारों को मिलने वाले सरकारी योजना का लाभ या राज्यों को जनसंख्या के आधार पर मिलने वले वित्तीय लाभ जनगणा के आधार पर ही तय होते हैं. इसके आधार पर ही सरकारें योजनाएं और उनका बजट तय करती हैं.

4. निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन

भारत वो देश है जहां हर 6 से 9 महीने में कोई ना कोई चुनाव होते हैं. स्थानीय निकाय चुनाव से लेकर विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक, इन सभी चुनावों में किसी निर्वाचन क्षेत्र की जनसंख्या की अहम भूमिका होती है. जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है.

जनगणना ना होने के कारण करोड़ों लोगों को नहीं मिलेगा योजनाओं का लाभ

अब पता चला कि जनगणना ना होने का आपकी जिंदगी पर क्या असर होगा?

अगर अब भी आप नहीं समझे कि इसका आपकी जिंदगी पर क्या असर होगा तो ऐसे समझिए. भारत सरकार जो भी योजनाएं बनाती और लागू करती है उसमें जनगणना के आंकड़ों का अहम रोल होता है. देश में अंतिम बार जनगणना 2011 में हुई थी जिसके मुताबिक देश की आबादी 121 करोड़ थी, अब किसी भी योजना को बनाते वक्त जनगणना 2011 के आंकड़ों को ही आधार बनाया जाता है.

उदाहरण के लिए राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के मुताबिक देश के 80 करोड़ लोग (67%) सार्वजनिक वितरण प्रणाली से जुड़ी योजनाओं के दायरे में आते हैं. अब आपको याद होगा कि पिछले साल कोरोना काल के दौरान केंद्र सरकार ने मुफ्त अनाज देने की योजना के तहत भी 80 करोड़ लोगों को लाभ देने की बात कही थी. अब पिछले दस सालों में देश की आबादी तो बढ़ी है लेकिन जनगणना नहीं हुई है इसलिये इसके लिए आधार 2011 की जनगणना को ही माना जाता है. ऐसे में इस बीच जो भी परिवार इस योजना के हकदार बने हैं उन्हें अगली जनगणना का इंतजार करना होगा.

एक अनुमान के मुताबिक भारत की आबादी इस वक्त करीब 1.39 अरब है. अगर 67 फीसदी को ही आधार बनाया जाए तो इस योजना के लाभार्थियों का आंकड़ा भी बढ़ना चाहिए, लेकिन आज भी वो आंकड़ा 2011 की 1.21 अरब आबादी के 67 फीसदी यानि 80 करोड़ ही है. यानि अगर अनुमान से तुलना करें तो साल 2011 की जनगणना के मुकाबले इस वक्त देश की आबादी में करीब 17 से 18 करोड़ का इजाफा हुआ है. अगर राशन वितरण प्रणाली के लिए 67 फीसदी को ही आधार बनाया जाए तो बढ़ी हुई आबादी में से करीब 12 करोड़ लोग इस तरह की योजनाओं के दायरे में आ सकते हैं.

निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन पर पड़ेगा असर ?

भारत में जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन किया जाता है. देश की लोकसभा और विधानसभा सीटों का परिसीमन 2026 में होना है. केंद्र सरकार ने जनगणना का कार्यक्रम भले टाल दिया हो लेकिन उम्मीद है कि 2026 में होने वाले परिसीमन से पहले जनगणना से जुड़े आंकड़े आ जाएंगे.

सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसी योजनाओं पर पड़ेगा असर

गरीबों को सबसे ज्यादा नुकसान

देश की आबादी का एक बहुत बड़ा हिस्सा सरकारी नीतियों पर आश्रित होता है. पिछले 10 साल में देश की आबादी में इजाफा हुआ है, सरकारी योजनाओं पर निर्भर रहने वाले लोगों की तादाद भी बढ़ी होगी. लेकिन जनगणना ना होने के कारण ऐसी योजनाएं के लिए फिलहाल अयोग्य हैं.

जैसे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों का आंकड़ा हो या फिर सामाजिक सुरक्षा पेंशन पाने वाले बुजुर्ग, विधवा या दिव्यागों का आंकड़ा, इन सबके लिए केंद्र सरकार के खजाने से पैसा जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही निकलता है. फिलहाल सरकारें हर योजना के लाभार्थियों की संख्या 10 साल पहले साल 2011 में हुई जनगणना के आंकड़ों से तय होती है.

हालांकि जानकार मानते हैं कि मौजूदा महामारी के दौर के चलते भले जनगणना नहीं हो पा रही हो लेकिन सरकार चाहे तो जनसंख्या का आंकलन लगाकर इस तरह की योजनाओं का दायरा खुद भी बढ़ा सकती है. जिससे जरूरतमंद आबादी को इसका लाभ मिल सकेगा और जब जनगणना के आंकड़े आ जाएंगे फिर योजनाओं में आबादी से जु़ड़े आंकड़ों को ठीक किया जा सकता है. हालांकि सरकार की तरफ से इस तरह का फैसला फिलहाल तो नहीं लिया गया है.

ये भी पढ़ें: जातिगत जनगणना क्यों नहीं चाहती सरकार, जबकि कई दल इसकी मांग कर रहे हैं

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