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प्रकृति का संरक्षण ही सुरक्षित रहने का एकमात्र तरीका है

जलवायु परिवर्तन सभी प्रकार के खतरों की गंभीरता को बढ़ा रहा है. इन परिवर्तनों के कारण आए तूफान और भारी बारिश ने अस्पताल की सेवाओं को बाधित करने के अलावा भोजन, ताजे पानी और बिजली की आपूर्ति को बाधित किया है. यह सब महामारी के खतरों को बढ़ा रहा है.

प्रकृति का संरक्षण
प्रकृति का संरक्षण

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Published : Nov 28, 2020, 6:00 AM IST

प्राकृतिक आपदाएं, महामारी सभी एक साथ हमला कर रहे हैं और मानव जाति के अस्तित्व पर सवाल उठा रहे हैं. सरकारें इन तकलीफदेह हालात से निपटने में सक्षम नहीं हैं, लड़ना दूर की बात है सामना करना भी मुश्किल है!! एक ओर, कोरोना महामारी को संभालना कठिन हो गया है और दूसरी तरफ हम लगातार तूफान और भारी बारिश के आगे मजबूर हैं जो स्थितियों को और जटिल बना देते हैं. लगातार बढ़ता सर्दी का मौसम दुनिया भर के कई देशों में कोविड के प्रकोप की दूसरी लहर को तेजी से आगे बढ़ा रहा है. यूरोप में कोरोना का कहर दो गुना बढ़ गया है.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन, जो पहले ही कोरोना वायरस से संक्रमित हो चुके थे, उन्हें आत्म-संगरोध में वापस जाने पर मजबूर होना पड़ा है. हमारे देश में पश्चिम बंगाल में तबाही मचाने वाले हालिया आमफान तूफान ने स्थानीय सरकार को मुश्किल में डाल दिया है. जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरे के अलावा, तृणमूल सरकार को कोविड संकट की गंभीरता चुनौती दे रही है. अफ्रीकी मौसम विज्ञानियों के अनुसार जलवायु परिवर्तन सभी प्रकार के खतरों की गंभीरता को बढ़ा रहा है.

महामारी का कारण जलवायु परिवर्तन

इन परिवर्तनों के कारण आए तूफान और भारी बारिश ने अस्पताल की सेवाओं को बाधित करने के अलावा भोजन, ताजे पानी और बिजली की आपूर्ति को बाधित किया है. यह सब महामारी के खतरों को बढ़ा रहा है. विशेषज्ञों का कहना है कि कई प्रकार की महामारियां वास्तव में जलवायु परिस्थितियों में आये विभिन्न परिवर्तनों के कारण होती हैं.

संक्रमण का जोखिम

तेलुगु राज्यों में हाल ही में हुई भारी बारिश ने राज्य भर में सीवर प्रणाली में होने वाली गड़बड़ी को उजागर कर दिया है. जलमार्गों को अवरुद्ध करते हुए जो निर्माण किए गए उनके कारण ज्यादा परेशानी हुई. एक बार फिर एक महामारी का खतरा उन स्थितियों में दिखाई दिया जहां सभी बाढ़ पीड़ित तूफान के दौरान एक जगह पर शरण लिए हुए थे. दस्त और हैजा जैसे संक्रमणों के जोखिम के बारे में भी चिंता है.

आपातकालीन चिकित्सा की जरूरत

स्वास्थ्य विशेषज्ञों का अनुमान है कि पर्याप्त पानी की आपूर्ति और स्वच्छता की कमी के कारण महामारी अन्य संक्रमणों के साथ और ज्यादा तीव्रता से फैल जाएगी. यहां तक कि इस तरह के मामलों का इलाज करने के लिए एक विलक्षण समाधान भी संभव नहीं है, विकसित देशों में तो फिर भी कुछ हद तक बचाव करना संभव था, जैसे कि तूफान से बचाव केंद्रों में मास्क देना, कोविड के लिए परीक्षण करना और पीड़ितों को आपातकालीन चिकित्सा देना.

शारीरिक दूरी बनाये रखना असंभव !

सच्चाई यह है कि भारत जैसे देश इनका अनुपालन नहीं कर पाए हैं. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएं, सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों पर उनके प्रभाव, परिवर्तनों के कारण महामारी जैसे प्रकोप और महामारी की गंभीरता का दुनिया भर के देशों द्वारा अनुभव किया गया है. दक्षिण अफ्रीका में बाढ़ के दौरान शारीरिक दूरी बनाये रखना असंभव हो गया था.

पश्चिम बंगाल में कोविड ने पिछली बार अम्फान तूफ़ान के कारण हुई मौतों के आंकड़े को दुगना कर दिया है. विशेषज्ञों के विश्लेषण के अनुसार यह केवल एक ही समय में दो घटनाओं का परिणाम मात्र नहीं है, लेकिन एक आपदा का प्रभाव दूसरे को और अधिक प्रभावित करता नज़र आ रहा है.

तापमान से संबंधित बीमारियां

ऑस्ट्रेलिया में आग के कारण होने वाले वायु प्रदूषण में वृद्धि तो हुई ही, साथ ही कोविड महामारी भी उसी समय भड़क उठी थी. परिणामस्वरूप बुजुर्ग, गरीब, विकलांग और बेघर, जो पहले से ही बढ़े हुए तापमान से संबंधित बीमारियों से पीड़ित थे, अब बहुत अधिक कठिनाइयों का सामना कर रहे हैं. इससे देश की अर्थव्यवस्था चरमरा गई है.

प्रवासियों के सामने संकट

पर्यावरणविद यह भी मूल्यांकन कर रहे हैं कि क्या यह प्रकृति के संबंध में मनुष्य के मनमाने व्यवहार का परिणाम है. समय से पहले सूखा या असामान्य वर्षा हमारे देश में प्रवास का मुख्य कारण है. कुछ क्षेत्रों में इसी तरह की स्थितियों ने बड़ी संख्या में लोगों को रोज़गार के लिए दूसरे क्षेत्रों में जाने के लिए मजबूर कर दिया है. प्रवासी मजदूर जिन स्थितियों में अपना गुज़र-बसर करते हैं, वहां संक्रमण को पलने और फैलने का भरपूर मौक़ा मिलता है.

वास्तविकता के अनुसार करना होगा काम

तंग जगहों पर ज़रुरत से ज्यादा लोगों का रहना, कोरोना जैसी महामारी के संक्रमण के विस्तार को इन तबक़ों में अधिक आम पाया गया हैं. वे उन स्थानों में भी फैल गए जहां जहां लौटकर ये मज़दूर गए थे. यदि मनुष्य अपने गुण का पालन करके प्रकृति की रक्षा करता है, तो वह प्रकृति मनुष्य की रक्षा करती है. लेकिन मनमाने ढंग से वनों की कटाई, नदी और नहर के प्रवाह में रुकावटें पैदा करना, नहरों का अतिक्रमण, क्षैतिज बालू खनन, मैंग्रोव या सदाबहार वनों का विनाश आदि, प्रकृति को अपने तरीके से कार्य करने के लिए उकसाते हैं, जो महामारी और प्राकृतिक आपदाओं का रूप धारण कर सामने आ खड़ी होती हैं. मानव जाति तभी जीवित रह सकती है जब वह इस वास्तविकता को जान ले और उसके अनुसार कार्य करे !!

(लेखक- रघुराम)

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