देहरादून (उत्तराखंड):देवभूमि उत्तराखंड में इन दिनों लैंड जिहाद पर हल्ला मचा हुआ है. धाकड़ धामी इस मामले में फ्रंटफुट पर बैटिंग कर रहे हैं. वहीं, जमीन से जुड़े दूसरे संवेदनशील मामले पर यही धामी सरकार सुन्न पड़ी दिखती है. ये दूसरा मामला नदियों में हो रहे अवैध खनन से जुड़ा है. जिस पर सरकार, शासन चुप्पी साधे हुए हैं.
उत्तराखंड में खनन को हमेशा से सोने का अंडा देने वाली मुर्गी माना जाता रहा है. उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल दोनों ही रीजन्स में रेत बजरी, खनन का कारोबार धड़ल्ले से होता है. बीते एक हफ्ते से राजधानी देहरादून में हो रहा खनन चर्चा का विषय बना हुआ है. राजधानी देहरादून के विकासनगर से बीते एक हफ्ते से कुछ ऐसी तस्वीरें और वीडियो सामने आये हैं जिन्हें देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां खनन माफिया के हौसले कितने बुलंद हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि राज्य के राजस्व में खनन बड़ा योगदान देता है. मगर इसी योगदान में अगर कोई डाका डाले, तो आप सोच सकते हैं कि डाका डालने वाले की पहुंच कहां तक होगी.
लुटती नदियां, राजस्व का नुकसान, क्यों हैं सब खामोश? राजधानी देहरादून के पछुवादून में इन दिनों सुबह और रात के अंधेरे में ट्रकों की बड़ी बड़ी लाइन नदी किनारे लगनी शुरू हो जाती है. ऐसा नहीं है कि यह खनन पूरी तरह से अवैध है. सरकार ने लगभग 3 से 4 लोगों को पट्टे चलाने की परमिशन दी है. मगर यहां खनन माफिया बिना रोक-टोक अवैध खनन करने में लगे हुए हैं. सिस्टम किस तरह से पछुवादून में फेल हुआ, इसका नजारा विकासनगर में देखा जा सकता है. यमुना नदी पर अवैध खनन के खिलाफ लगातार ग्रामीण आवाज उठा रहे हैं. मजाल है कि कोई अफसर कार्रवाई करने पहुंच जाये. यहां कार्रवाई के नाम पर कुछ गाड़ियों को रोककर ही प्रशासन इतिश्री कर रहा है. ग्रामीण लगातार विकासनगर में खनन पट्टे की आड़ में अवैध खनन सामग्री ना केवल उत्तराखंड बल्कि हिमाचल से भी लाने का आरोप लगा रहे हैं.
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हिमाचल और उत्तराखंड से लाई जा रही अवैध खनन सामग्री कोई एक-दो वाहनों में नहीं बल्कि सैकड़ों वाहन की लंबी-लंबी कतारों के साथ देहरादून के अलग-अलग क्षेत्रों में दाखिल हो रही है. ग्रामीणों का आरोप है कि एक आवेदन रवन्ना पर कई कई गाड़ियां निकाली जा रही हैं. गढ़वाल मंडल विकास निगम ने विकास नगर क्षेत्र में एक व्यक्ति के नाम से मांजरी में खनन पट्टा अलॉट किया है. जिसका संचालन फरीदाबाद का एक व्यापारी कर रहा है. इतना ही नहीं खनन पट्टा धारक हिमाचल प्रदेश से 12 किलोमीटर पहले खनन सामग्री उठाकर इस पट्टे पर लगातार डाल रहा है. इससे राज्य सरकार को लाखों करोड़ों रुपए की जीएसटी और रॉयल्टी का नुकसान सीधे तौर पर हो रहा है.
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अवैध खनन पर कैग ने भी किया था बड़ा खुलासा: उत्तराखंड में अवैध खनन का कारोबार किस तरह से धड़ल्ले से चल रहा है, सरकारी आंकड़े भी इसकी तस्दीक कर रहे हैं. यह बात आप ऐसे समझ सकते हैं कि साल 2017 और साल 2018 के साथ साथ साल 2020 और साल 2021 की कैग रिपोर्ट यह कहती है कि देहरादून में लगभग 37 लाख टन अवैध खनन हुआ है. इससे ₹45 करोड़ के राजस्व का नुकसान हुआ है. यह नुकसान सिर्फ और सिर्फ राजधानी देहरादून से ही हुआ है. अवैध खनन की पुष्टि कैग रिपोर्ट में रिमोट सेंसिंग विशेषज्ञों के साथ सेटेलाइट अध्ययन के बाद सामने आई थी. कैग ने खुलकर यह बात कही है कि कैसे पुलिस और प्रशासन की नाक के नीचे यह पूरा कारोबार चल रहा है.
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कैग रिपोर्ट में बताया गया कि कैसे देहरादून के सौंग, ढकरानी और कुल्हाल जैसे क्षेत्रों में लगभग 50 महीने से खनन बंद होने के बावजूद भी धड़ल्ले से खनन हो रहा है. कैग ने अपनी रिपोर्ट में देहरादून के कई बड़े अधिकारियों पर भी सवाल खड़े किये थे. साथ ही कुछ सुझाव दिए थे. जिसमें कहा गया था कि खनन मंत्रालय और भारतीय खनन ब्यूरो की ओर से विकसित की गई खनन निगरानी प्रणाली को अपनाया जाये. उपग्रह आधारित इस प्रणाली में अवैध खनन की निगरानी संभव है. निर्माण एजेंसियां ठेकेदार को भुगतान से पहले खनन सामग्री के पास की सत्यता की पुख्ता जांच कर लें. निर्माण एजेंसी, जिला प्रशासन व अन्य विभाग आपस में तालमेल बनाएं. जीएसटी विभाग से भी सहयोग लिया जाए. ड्रोन के माध्यम से खनन क्षेत्रों की निगरानी कराई जाए, लेकिन ऐसा लगता है कि सब कुछ जानते हुए भी इस मामले में कोई कुछ करने के लिए राजी नहीं है.
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