नई दिल्ली:संसदीय समिति ने बांग्लादेश से अवैध प्रवासन पर गंभीर चिंता व्यक्त की है. संसदीय समिति ने कहा है कि बांग्लादेश से अवैध प्रवासन भारत-बांग्लादेश सीमावर्ती गांवों और देश के अन्य हिस्सों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन का कारण बन रहा है. संसदीय समिति ने इसपर रोक लगाने के लिए गृह मंत्रालय को विदेश मंत्रालय (एमईए) से निकट समन्वय में काम करने को कहा है.
समिति सीमा पार आतंकवाद, अवैध प्रवासन, नकली मुद्रा की तस्करी और बांग्लादेश सीमा पार से दवाओं और हथियारों की तस्करी की बार-बार होने वाली घटनाओं पर ध्यान देने के लिए चिंतित है. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि विदेश मंत्रालय अवैध प्रवासियों का मुद्दा उठाता रहा है, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला और द्विपक्षीय संस्थागत तंत्र भी स्थिति से निपटने में सक्षम नहीं है.
भारत और बांग्लादेश लगभग 4,096 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं. पांच राज्य असम, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल बांग्लादेश की सीमा से लगते हैं. संयुक्त सीमा कार्य समूह और संयुक्त सीमा सम्मेलन जैसे स्थापित द्विपक्षीय तंत्र हैं, जो सीमा और सीमा-संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए नियमित अंतराल पर आयोजित किए जाते हैं.
समिति ने कहा कि घुसपैठ, सीमा पार तस्करी आदि को रोकने के लिए भारत-बांग्लादेश सीमा का बेहतर प्रबंधन होना चाहिए. रिपोर्ट में कहा गया है कि इस लंबी सीमा के प्रबंधन के लिए द्विपक्षीय तंत्र को मजबूत किया जाना चाहिए. समिति ने यह भी पाया कि बांग्लादेश भारत का सबसे बड़ा साझेदार है. उन्हें लगभग 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर का रियायती ऋण दिया गया है, जिसमें 7.862 बिलियन अमेरिकी डॉलर (59,000 करोड़ रुपये) की लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) शामिल है, जिसमें भारत का लगभग 25 प्रतिशत शामिल है.