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आईआईटी मद्रास की रिपोर्ट: वित्तीय समावेशन के लिए बैंकिंग शुल्क और केवाईसी प्रक्रिया में बदलाव जरूरी - आईआईटी मद्रास

आईआईटी मद्रास ने एक रिपोर्ट में बैंकिंग सुविधाओं को देश के निम्न-आय वर्ग और दूरदराज के क्षेत्रों में ले जाने के लिए बैंकिंग लेनदेन, शुल्क और अपने ग्राहक को जानिए (KYC) प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव दिया गया है.

IIT Madras Research
आईआईटी मद्रास की रिपोर्ट

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Published : Jun 15, 2022, 8:05 AM IST

चेन्नई : आईआईटी मद्रास ने एक रिपोर्ट में बैंकिंग सुविधाओं को देश के निम्न-आय वर्ग और दूरदराज के क्षेत्रों में ले जाने के लिए बैंकिंग लेनदेन, शुल्क और अपने ग्राहक को जानिए (KYC) प्रक्रिया में महत्वपूर्ण बदलाव का प्रस्ताव दिया गया है. रिपोर्ट में किराना स्टोर मालिकों और व्यापारियों के अंतिम ग्राहक तक पहुंचने के लिए व्यापार संवाददाताओं (बीसी) के रूप में काम करने की अनुमति देकर कैश इन कैश आउट (सीआईसीओ) को आसान बनाने का प्रस्ताव दिया गया है. खासकर देश के दूरदराज के हिस्सों में. IIT मद्रास रिसर्च पार्क (IITMRP) द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, विशुद्ध रूप से डिजिटल लेनदेन जैसे लेनदेन की सीमा से अधिक लेनदेन, अपर्याप्त बैलेंस, ईसीएस बाउंस, स्थायी निर्देश, एसएमएस अपडेट इन सभी के लिए बैंकिंग शुल्क का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिए.

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इसमें कहा गया है कि आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करने से छूट प्राप्त व्यक्तियों और वरिष्ठ नागरिकों से अभी भी बैंकों द्वारा टीडीएस लिया जा रहा है, इस प्रकार रिटर्न दाखिल करना एक आवश्यकता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि केवाईसी प्रक्रिया और पैन, ओटीपी या बायोमेट्रिक सत्यापन की आवश्यकता ने इसे कम आय वाले समूहों के लिए बोझिल बना दिया है. 'वित्तीय समावेशन की चुनौतियां' नाम से तैयार रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यक्तिगत केवाईसी (और लाइव-वीडियो केवाईसी) को गैर-लाइव (गैर-मानव) विकल्प द्वारा प्रतिस्थापित किया जाना चाहिए.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि कम आय वर्ग के लोगों और वरिष्ठ नागरिकों को औपचारिक वित्तीय चैनलों से वित्तीय सेवाओं की पूरी श्रृंखला तक पहुंचने में अक्सर चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. अशोक झुनझुनवाला, अध्यक्ष- IITMRP, IITM इनक्यूबेशन सेल और RTBI ने कहा कि 90 करोड़ वयस्कों की आबादी वाले देश में, केवल एक छोटे प्रतिशत ने डिजिटल लेनदेन किया है. वित्तीय सेवा क्षेत्र में हमारी उपलब्धियों के बावजूद, भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग अभी भी मूलभूत वित्तीय असमानताओं से जूझ रहा है.

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