श्रीनगर : जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म किये जाने के दो साल बाद और 234 दिनों तक नजरबंद रखे गये नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को कहा कि शुरूआत में बहुत निराश रहने के बाद उन्होंने महसूस किया कि एक नेता के तौर पर उन्हें लंबे समय तक शोक मनाने का अधिकार नहीं है और वह अपने मूलभूत संवैधानिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे लोगों को निराश नहीं कर सकते.
संविधान के अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को रद्द किये जाने के दो साल पूरे होने की पूर्व संध्या पर पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि पांच अगस्त (2019) को जो कुछ किया गया था उसने ज्यादातर लोगों को स्तब्ध कर दिया था, जिन्हें इस कदम से अचानक, अप्रत्याशित और असंवैधानिक झटका लगा था. केंद्र सरकार ने दो साल पहले जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों--जम्मू कश्मीर और लद्दाख-- के रूप में विभाजित कर दिया था.
उमर सात महीने तक नजरबंद रहे थे और इस कार्रवाई को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई थी. उन्होंने उन दिनों का याद करते हुए कहा, 'मैं एक बहुत ही थका हुआ और निराश व्यक्ति था। यहां तक कि मैं मौजूदा स्थिति में संभव बुनियादी राजनीतिक गतिविधियों में शामिल होने की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहा था, लेकिन जैसा कि कहा जाता है, ‘यदि आप इंद्रधनुष देखना चाहते हैं, तो आपको बारिश को तो सहना ही होगा. इसलिए यहां मैं लोगों के लिए जो सर्वश्रेष्ठ कर सकता हूं, कर रहा हूं,'
उमर ने कहा कि नेशनल कांफ्रेंस के कार्यकर्ताओं और नेताओं ने जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए काफी कुर्बानी दी है. उन्होंने कहा, 'हमारे सैकड़ों कार्यकर्ता और कई नेता आतंकवादियों की गोलियों का शिकार बन गये.'
नेकां उपाध्यक्ष ने अनुच्छेद 370 के ज्यादातर प्रावधानों को केंद्र द्वारा रद्द कर दिये जाने के फैसले को उच्चतम न्यायालय में दी गई चुनौती का जिक्र करते हुए कहा, 'मुझे उम्मीद है और उच्चतम न्यायालय पर विश्वास है, जिसने कहा है कि यदि इसमें (चुनौती में) दम हुआ तो वह घड़ी की सूई को पीछे ले जाएगा. मैं आश्वस्त हूं कि किसी न किसी दिन जम्मू, कश्मीर और लद्दाख के लोगों को न्याय जरूर मिलेगा.'
केंद्र शासित प्रदेश जम्मू कश्मीर के मुख्य धारा के नेताओं के साथ 24 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बैठक पर एक सवाल के जवाब में उमर ने कहा कि पहल को जमीनी स्तर पर ले जाने की जरूरत है ताकि सार्थक परिणाम मिल सके.