भोपाल : प्रदेश की भाजपा सरकार ने अपना एक साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है. सरकार भले ही तरक्की के तमाम दावे कर रही हो, लेकिन उसके आर्थिक हालात ठीक नहीं हैं. मध्य प्रदेश सरकार पर कर्ज का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है. सरकार के खर्चों में कोई कटौती देखने को नहीं मिल रही है. इसका सीधा असर जनता पर पड़ना तय है.
जनता की जेब पर होगा असर
पिछले साल कोरोना काल में राज्य की आय को झटका लगा था. माली हालत खराब हो गई थी. वैसे ही हालात अब भी बनते नजर आ रहे हैं. प्रदेश सरकार ने इस साल जनवरी से लेकर अब तक पांच बार में करीब 10 हजार करोड़ रुपए का कर्ज ले लिया है. आर्थिक जानकारों का कहना है कि सरकार अपने राजनैतिक फायदे के लिए कर्ज ले रही है. जिसका सीधा असर जनता पर पड़ना तय है. भाजपा इस बात से इत्तेफाक नहीं रखती है. पार्टी का मानना है कि सरकार जरूरी खर्चे चलाने के लिए कर्ज ले रही है. कांग्रेस का कहना है कि प्रदेश की भाजपा सरकार कर्ज लेकर घी पी रही है.
हर व्यक्ति पर साढ़े तीन लाख से ज्यादा का कर्ज
आर्थिक मामलों के जानकार राजेंद्र कोठारी मानते हैं कि राजनैतिक फायदा तो हर सरकार उठाती है, चाहे वो किसी भी पार्टी की हो. सरकार को अपने आर्थिक तंत्र को भी देखना पड़ता है. वर्तमान में प्रदेश सरकार पर बढ़ते कर्ज के कारण हर व्यक्ति पर करीब साढ़े तीन लाख रुपए का बोझ आ चुका है. आगे भी ऐसा ही रहा तो गरीब-किसान और आम जनता की क्या हालत होगी. बड़ा सवाल ये है कि कर्ज का ये अर्थशास्त्र प्रदेश को कहां ले जाएगा. कोठारी का कहना है कि एक तरफ सरकार विज्ञापनों पर खर्च कर रही है, तो दूसरी ओर आम आदमी पर कर्ज थोपा जा रहा है.
'विकास के लिए कर्ज जरूरी'
भाजपा प्रवक्ता धैर्यवर्धन शर्मा कहते हैं कि लोन लेना विकासशील अर्थव्यवस्था की पहचान है. हर सरकार जन कल्याणकारी नीतियों के बेहतर क्रियान्वयन के लिए हर साल लोन लेती है. कर्ज भी राज्य की क्षमता के हिसाब से ही मिलता है. कर्ज को नकारात्मक रूप में नहीं देखना चाहिए. ज्यादातर विकासशील अर्थव्यवस्था में लोन विकास के पहिए को स्पीड देता है.