चंडीगढ़ : पंजाब विधानसभा में कुल 117 सीटें हैं. सरकार बनाने के लिए 59 का आंकड़ा चाहिए. जिस पार्टी या गठबंधन को यह आंकड़ा प्राप्त हो जाएगा, सरकार उसकी ही बनेगी. जाहिर है, किसकी सरकार बनेगी, यह तो 10 मार्च को ही पता चल पाएगा. लेकिन कुछ परिस्थितियां ऐसी जरूर बन रहीं हैं, जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि फिर से कोई नया गठबंधन बन जाए.
दरअसल, पंजाब में मुख्य रूप से तीन पार्टियों की सबसे अधिक चर्चा हो रही है, या आप गठबंधन का भी नाम दे सकते हैं. कांग्रेस अभी सत्ताधारी पार्टी है. जाहिर है वह तो सत्ता में लौटने का सपना देख ही रही है. शिरोमणि अकाली दल एक बार फिर से सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है. 2017 से ही वह सत्ता से दूर है. बसपा ने अकाली दल के साथ गठबंधन किया है. वहीं दूसरी ओर आम आदमी पार्टी, जो इन दोनों ही पार्टियों के मुकाबले नई है, वह भी सरकार बनाने का दावा कर रही है. 2017 में भी आप को लेकर ऐसे ही दावे किए जा रहे थे, लेकिन पार्टी सरकार बनाने से चूक गई. बाद में उनके कई विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी थी. इन तीनों से हटकर भाजपा गठबंधन की चर्चा बहुत अधिक नहीं हो रही है. इसने कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस और अकाली दल के एक धड़े से समझौता किया है. आइए सबसे पहले कांग्रेस की बात करते हैं.
बतौर मुख्यमंत्री रहते हुए जब कैप्टन ने चार साल का कार्यकाल पूरा कर लिया, तो ऐसा माना जा रहा था कि कांग्रेस की सरकार एक बार फिर से वापस आएगी. लेकिन 2021 में कई सारी ऐसी राजनीतिक घटनाएं हुईं, जिसने इस आकलन को ध्वस्त कर दिया. अब हर पार्टी को अपनी जमीन तलाशनी पड़ रही है. कई सारे सिख चेहरे मैदान में आ गए हैं. भाजपा भी नए दलों के साथ गठबंधन में उतर आई. इस वक्त हर सीट पर बहुकोणीय मुकाबला की स्थिति दिख रही है.
ऐसी स्थिति में किसी एक दल की सरकार आसानी से बन जाएगी, इसकी संभावना बहुत क्षीण दिख रही है. हो सकता है चुनाव बाद कुछ नया समीकरण देखने को मिले. चुनाव से चार महीने पहले कांग्रेस ने एक मास्टर स्ट्रोक मारा था. पार्टी ने कैप्टन को हटाकर दलित समुदाय से आने वाले चरणजीत सिंह चन्नी को सीएम बनाने की घोषणा कर दी. इतना ही नहीं पार्टी ने अब फिर से उनको ही जीत की स्थिति में सीएम बनाने का भी ऐलान कर दिया है. इस बीच अवैध खनन का मामला तूल पकड़ने लगा. इसलिए अभी यह कहना कि कांग्रेस आसानी से सरकार बनाने के लिए जादुई आंकड़ा प्राप्त कर लेगी, मुश्किल है. 2017 में कांग्रेस को 79 सीटें मिली थीं. पार्टी उम्मीद कर रही है कि चन्नी के चार महीने के कार्यकाल की बदौलत वह फिर से सत्ता में लौटेगी. अभी की स्थिति के अनुसार चुनाव बाद कांग्रेस किसी दल से गठबंधन करेगी, यह कहना कठिन है, शायद नहीं कहें तो ज्यादा बेहतर होगा.
अब बात अकाली और बसपा गठबंधन की करते हैं. किसान आंदोलन के दौरान किसान अकाली दल से नाराज थे. कई स्थानों पर अकाली नेताओं ने भी अपनी ही पार्टी का विरोध किया. विशेषज्ञों का कहना है कि 2017 के बाद खुखबीर सिंह बादल ने अपनी रणनीति बदल ली थी. वे उसी समय से जनता के बीच जाने लग गए थे. इसलिए पिछली बार के मुकाबले बादल की स्थिति अच्छी है. लेकिन उस हद तक अच्छी नहीं कही जा सकती है कि वे अकेले अपने दम पर सरकार बना लें.