देश की संसद और राज्यों की विधानसभाएं दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश में प्रजातंत्र के मंदिर माने जाते हैं. मंदिर में भगवान और देवी-देवता विराजते हैं, तो ये माना जाना जाना चाहिए कि हमारे सांसद और विधायक प्रजा के लिए देवी-देवताओं से कम नहीं हैं. लेकिन प्रजातंत्र के इन मंदिरों में शिष्टाचार और संस्कृति का जिस तरह से चीरहरण होते इस पीढ़ी ने देखा है, शायद आजादी के ठीक बाद की पीढ़ियों ने कभी नहीं देखा होगा.
कहते हैं कि भाषा इंसान की सभ्यता, शालीनता और उसके संस्कारों की प्रतीक होती है. लेकिन पिछले कुछ दशकों में यह धारणा लगातार तार-तार होती नजर आई है, क्योंकि विधायिका और कार्यपालिका की भाषा असंसदीय, अमर्यादित और अश्लील हो गई है. ये विकृत भाषा किन्हीं मवाली या असामाजिक तत्वों के मुख से नही निकलती, बल्कि भारतीय प्रजा दवारा अपने सर्वोत्तम अधिकार का इस्तेमाल कर भेजे जाने वाले माननीय सांसदों और विधायकों के श्रीमुख से फूटती रही है. ये सभी माननीय जब संसद या विधानसभा में बोल रहे होते हैं, तो देश की तकरीबन 140 करोड़ जनता की जुबान होते हैं. उनके एक-एक बयान की कीमत इतनी होती है कि उनसे संविधान भी बनता है और मजबूत भी होता है.
मध्य प्रदेश विधानसभा की सार्थक पहल
बात इसलिए निकल पडी है कि इस दिशा में मध्यप्रदेश विधानसभा ने एक बहुत ही सार्थक पहल शुरू की है, जिसके लिए मध्यप्रदेश के मुख्य्मंत्री शिवराज सिंह चौहान, पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ और विधानसभा अध्यक्ष गिरीश गौतम बधाई के पात्र हैं. इन्होंने सदन में मर्यादा का पालन करने व गरिमा बनाए रखने के लिए एक 'अमर्यादित शब्द संग्रह' तैयार किया है.
मध्य प्रदेश विधानसभा सचिवालय ने 1954 से लेकर 2021 तक की कार्यवाहियों में से करीब 1500 से ज्यादा ऐसे शब्दों व वाक्यों का संग्रह तैयार किया है, जिन्हें असंसदीय माना गया है. इसमें वे शब्द या वाक्य भी शामिल किए गए हैं, जिन्हें समय-समय पर आसंदी द्वारा सदन की कार्यवाही से विलोपित कर दिया गया था.
करीब 1560 शब्दों को असंसदीय माना गया है. इनमे वेंटिलेटर, पप्पू पास हो गया, दादागिरी, चोर मचाए शोर, मिर्ची लग गई, हत्यारे, शर्म करो, यह झूठ का पुलिंदा है, चमचा, भेदभाव, चापलूस, नौटंकी, पप्पू माई का लाल, शर्मनाक, चड्डी वाला, गोलमाल, मुर्गा और दारू में पैसे खत्म कर देते हैं, सोच में शौच भरा है, फर्जी पत्रकार, नौ सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली, मां कसम, गुंडे, तानाशाही, अंगूठा छाप, नक्सलवादी, चुड़ैल, जनसंघी जैसे शब्द शामिल हैं.
कुछ वाक्यों को भी इस संग्रह में रखा गया है, जैसे बजट में खोदा पहाड़ निकली चुहिया, भैंस के आगे बीन बजाना, आपको भगवान की कसम है, लगे रहो मुन्ना भाई, घड़ियाली आंसू मत बहाइए जैसे मुहावरों को शामिल किया गया है. अलीबाबा और चालीस चोर, यहां अंगूठाछाप की जमात ज्यादा है, श्रीमान भांग पीकर यहां आते हैं, आप तो भत्ता खाने आए हैं बैठिए, झन्नाटा खींच देंगे, तमाचा दे देंगे आदि.
काबिल-ए-गौर ये है कि इस संग्रह में शामिल सभी शब्द विधानसभा में विधायकों या मंत्रियों द्वारा बाकायदा कभी न कभी इस्तेमाल किये गए थे, जिन्हें कार्यवाही के दौरान या बाद में ध्यान दिलाने पर विलोपित कर दिया गया था.
राजनीतिक मर्यादा का उल्लंघन
किसी भी सदन में असंसदीय और अमर्यादित भाषा या व्यवहार कोई नई बात नहीं है. पक्ष और विपक्ष के सांसद एक-दूसरे के लिए नफरत भरे शब्दों का प्रयोग करते आए हैं. न प्रधानमंत्री या मंत्री का ख्याल किया जाता है और न किसी संवैधानिक पद की गरिमा रखी जाती है. मौजूदा दौर में चाहे पप्पू शब्द हो या फेंकू शब्द. ऐसे सभी शब्द राजनीतिक मर्यादा का तो उल्लंघन करते ही हैं, साथ ही हमारी संस्कृति हमारे संस्कार भी जाहिर करते हैं.
कुछ शब्द तो ऐसे होते हैं कि जिनका नैतिकतावश हम यहां बखान नहीं कर सकते. इस शब्दावली का उपयोग करने वाले नेता या तो सांसद होते हैं या विधायक होते हैं या फिर कई संवैधानिक पदों पर रह चुके होते हैं.
वाजपेयी जैसे नेता रखते थे सबका ख्याल
क्या अटल बिहारी वाजयपेयी, चंद्रशेखर, जॉर्ज फर्नाडीज, सुषमा स्वराज जैसे तमाम नेता जिनके मुख से न आवेश में, न गुस्से में कभी कोई असंसदीय शब्द नहीं निकला होगा, उनके शब्दों का चयन हमेशा मुद्दा आधारित ही हुआ करते थे. वहां पर आप दूसरों की भावनाओं को आहत करने वाले शब्द या वाक्य ढूंढते ही रह जाओगे. एक-दूसरे की मान-मर्यादा का ख्याल रखकर अपनी वाणी को आभूषित किया करते थे.
विपक्ष को कोसना ही कभी उनकी मानसिकता नहीं हुआ करती थी, बल्कि स्वस्थ संवाद ही उनका ध्येय होता था, लेकिन आज चुने हुए प्रतिनिधियों के बयान या विचार सदन में विपक्षियों के लिए बदला या हीन भावना से ओतप्रोत होते हैं.
क्या मछली बाजार जैसी हो गई है स्थिति