कोलकाता : पश्चिम बंगाल के राज्यपाल जगदीप धनखड़ और राज्य सरकार के बीच अविश्वास का वातावरण बढ़ता ही जा रहा है. टीएमसी ने राज्यसभा में राज्यपाल के खिलाफ प्रस्ताव लाने का फैसला कर लिया है. पार्टी ने विधानसभा में भी राज्यपाल के कार्यों के खिलाफ निंदा प्रस्ताव लाने का निर्णय किया है. अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या टीएमसी का इस हद तक विरोध करना व्यावहारिक है या नहीं ? क्या इसे सही ठहराया जा सकता है ? ईटीवी भारत ने इस सवाल का जवाब जानने के लिए कुछ राजनीतिक विश्लेषकों के बात की है.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ अमल कुमार मुखोपाध्याय मानते हैं कि राज्यपाल के खिलाफ टीएमसी का इस सीमा तक विरोध करना कहीं से भी न्यायोचित नहीं दिखता है. उन्होंने कहा कि हम सब जानते हैं कि आप उनके खिलाफ ही विधानसभा या संसद में निंदा प्रस्ताव ला सकते हैं, जो उस सदन के सदस्य होते हैं. और राज्यपाल तो न तो विधानसभा और न ही राज्यसभा के सदस्य होते हैं. इसलिए आप अपने इस कदम को किस आधार पर सही ठहराएंगे. दूसरी बात ये भी है कि यह टीएमसी को भी पता है कि उसका प्रस्ताव राज्यसभा में पारित नहीं होने वाला है. उनके पास पर्याप्त संख्या नहीं है. वो चाहे लोकसभा हो या राज्यसभा.
मुखोपाध्याय ने कहा कि टीएमसी के पास कोर्ट जाने का भी विकल्प नहीं है. क्योंकि संविधान के मुताबिक पद पर बैठे हुए राज्यपाल के खिलाफ कोर्ट जाने की भी इजाजत नहीं है. राष्ट्रपति के खिलाफ महाभियोग लगाया जा सकता है, लेकिन यही व्यवस्था राज्यपाल को लेकर नहीं की गई है. इसलिए मुझे लग रहा है कि टीएमसी न सिर्फ समय बर्बाद करेगी, बल्कि अपना ही माखौल उड़ाएगी.