नई दिल्ली : हिजबुल्लाह ईरान समर्थित एक शिया चरमपंथी संगठन है. इसका बेस दक्षिणी लेबनान में है. यह अपने आप को शिया इस्लामिक राजनीतिक पार्टी कहता है. हसन नसरुल्लाह इस संगठन का मुखिया है. अमेरिका, इजराइल और मध्य पूर्व के कई देशों ने इसे आतंकी संगठन घोषित कर रखा है.
इस संगठन की शुरुआत 80 के दशक में हुई थी. उस समय इजराइल ने लेबनान पर हमला किया था. हमले की वजह फिलिस्तीनी चरमपंथी संगठन का इस हिस्से से समर्थन पाना था. इस समय कुछ शिया नेताओं ने इस्लामिक अमाल नाम से एक आंदोलन की शुरुआत की थी. ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड्स ने इस आंदोलन से जुड़े लड़ाकों को ट्रेनिंग दी. इस आंदोलन से हिजबुल्लाह का जन्म हुआ.
ईरान ने हिजबुल्लाह की फंडिंग की - औपचारिक रूप से हिजबुल्लाह संगठन की शुरुआत 1985 में हुई. ईरान ने इजराइली हमले का काउंटर करने के लिए हिजबुल्लाह की मदद करनी शुरू की थी. उसे पैसे और हथियार दिए. अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए हिजबुल्लाह अपने आप को शिया धर्म का संरक्षक बताता है. ईरान भी शिया प्रमुख देश है. आज की तारीख में हिजबुल्लाह के पास अपनी मिलिट्री विंग भी है. साल 2000 में इजराइल के लेबनान से वापस आने पर हिजबुल्लाह फलने-फूलने लगा. यह अमेरिका और रूस दोनों को अपना दुश्मन मानता है.
लेबनान में चाहे किसी की सत्ता हो, उसमें हिजबुल्लाह की सबसे अधिक दखलंदाजी होती है. लेबनान की कैबिनेट में हिजबुल्लाह को वीटो का अधिकार दिया गया है. हिजबुल्लाह की ताकत का अंदाजा आप लगा सकते हैं, कि इसने पड़ोसी मुल्क सीरिया में भी अपना बेस बना लिया. आपको याद होगा कि सीरिया के ताकतवर शासक बशर अल असद के लिए वे ढाल बन गए.
2011 में जब सीरिया में गृह युद्ध छिड़ गया था, तब बशर अल असद ने हिजबुल्लाह से मदद मांगी थी. हिजबुल्लाह ने साउथ लेबनान से सटे सीरिया के कई इलाकों में असद को बढ़त दिलाई थी.
खाड़ी के देशों में हिजबुल्लाह का विरोध - इसके विरोध की असली वजह है ईरान और इसकी राजनीतिक व्यवस्था. ईरान शिया मुल्क है. जबकि खाड़ी देशों में सबसे अधिक संपन्न देश सऊदी अरब मुख्य रूप से सुन्नी संप्रदाय को मानने वाला देश है. इस वजह से ईरान और सऊदी अरब एक-दूसरे का विरोध करते रहते हैं. सऊदी अरब इसी आधार पर हिजबुल्लाह का विरोध करता है. वह नहीं चाहता है कि हिजबुल्लाह को बड़ी ताकत मिले. एक समय में हिजबुल्लाह ने लेबनान के सऊदी समर्थक शासक सत्ता से बाहर कर दिया था.