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हिमाचल में शराब की सालाना खपत नौ करोड़ बोतलों से अधिक, हर साल 1829 करोड़ की दारू पी जाते हैं लोग

सत्तर लाख की आबादी वाले हिमाचल में शराब पीने वालों की अनुमानित संख्या 15 लाख के आसपास है. शराब पीने का आदी एक इंसान महीने में पांच बोतलें शराब पीता है. एक बोतल का औसत मूल्य 166 रुपये के आस पास बैठता है (थोक मूल्य औसत) इस तरह महीने में 830 और साल में 9960 रुपये की शराब एक व्यक्ति पी जाता है. राज्य में इस समय 2500 के करीब वाइन शॉप्स (Wine shop in himachal) के जरिए शराब की बिक्री होती है. हिमाचल में नई आबकारी नीति (new excise policy in himachal) एक जुलाई 2021 से लागू हो गई है और 31 मार्च, 2022 तक नौ महीने के दौरान नई नीति के तहत शराब बिक्री और सप्लाई का काम होगा.

Annual consumption of liquor in Himachal is more than nine crore bottles, every year 1829 crore people drink liquor
हिमाचल में शराब की सालाना खपत नौ करोड़ बोतलों से अधिक, हर साल 1829 करोड़ की दारू पी जाते हैं लोग

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Published : Feb 10, 2022, 1:53 AM IST

शिमला: देश के कुछ राज्यों ने शराबबंदी जैसे कदम उठाए हैं, लेकिन आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए हिमाचल सरकार को शराब की बिक्री से राजस्व अर्जित करना पड़ता है. बात आंकड़ों की करें तो हिमाचल में हर साल 1829 करोड़ रुपये की शराब बिकती है. हिमाचल में शराब की सालाना खपत नौ करोड़ बोतलों की है. इस तरह से यदि एक महीने का हिसाब लगाएं तो हिमाचल में हर माह 75 लाख और प्रति दिन के नजरिए से देखें तो यहां लोग ढाई लाख बोतलें शराब की पी जाते हैं. सत्तर लाख की आबादी वाले हिमाचल में शराब पीने वालों की अनुमानित संख्या 15 लाख के आसपास है. शराब पीने का आदी एक इंसान महीने में पांच बोतलें शराब पीता है. एक बोतल का औसत मूल्य 166 रुपये के आस पास बैठता है (थोक मूल्य औसत) इस तरह महीने में 830 और साल में 9960 रुपये की शराब एक व्यक्ति पी जाता है.

शराब बिक्री के 14 प्रकार के लाइसेंस-प्रदेश में शराब बिक्री के लिए करीब 14 प्रकार के लाइसेंस हिमाचल प्रदेश एक्साइज एक्ट (Excise and Taxation Department in Himachal) के तहत दिए जाते हैं. लाइसेंस के आधार पर ही विक्रेता शराब की बिक्री कर सकता है. इनमें सबसे उपर एल-1 आता है. एल-1 लाइसेंस धारक व्यक्ति विदेशी शराब के थोक विक्रेता के रुप में कार्य कर सकता है. इन्हें विदेशी बीयर के होलसेल व्यापार करने की अनुमति भी होती है. इसके बाद एल-3 से लेकर एल- 19 लाइसेंस धारक को अलग-अलग मात्रा में शराब रखने और बिक्री करने की अनुमति होती है. इन लाइसेंस के लिए फीस भी अलग-अलग होती है.

हिमाचल में शराब से कमाई.

सरकार ने एक समय अपने हाथ लिया था शराब का कारोबार- प्रदेश में शराब कारोबार से आने वाला रेवेन्यू इतना अधिक है कि पूर्व में वीरभद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान तो सरकार ने खुद शराब का कारोबार अपने हाथ में ले लिया था. तब शराब कारोबार के लिए सरकार ने हिमाचल बेवरेजेज लिमिटेड (Himachal Pradesh Beverages Limited) नाम से कंपनी का गठन किया था उस समय सरकार ने एक सीनियर आईएएस अफसर को इस कारोबार का जिम्मा सौंप दिया था. तय किया गया था कि सरकार शराब कारखानों से खुद अपने स्तर पर शराब खरीदेगी और आगे बेचेगी.

पर्ची सिस्टम से नीलाम होते थे ठेके- इससे पूर्व यानी वर्ष 2016 से पहले हिमाचल में शराब ठेके पहले पर्ची सिस्टम के जरिए ही नीलाम कर दिए जाते थे. इससे कुछ ही ठेकेदारों की मोनोपली बन रही थी. सरकार ने उस दौरान ठेके नीलाम किए. इससे सरकार को करीब 300 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी. वर्तमान सरकार में शराब के ठेके पहले से ठेके संचालित कर रहे ठेकेदारों को ही मुल्य में कुछ वृद्धि के बाद दे दिए गए हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सर्वे (Survey Of Union Health Ministry) में यह सामने आया था कि हिमाचल में हर साल औसतन 1500 करोड़ रुपये की शराब खपती है.

देशी शराब पीने में देश में तीसरे नंबर पर हिमाचल-सर्वे के मुताबिक औसत के लिहाज से हिमाचल का प्रत्येक निवासी प्रति माह शराब के सेवन पर औसतन 178 रुपये खर्च करता है. यदि अंग्रेजी शराब के लिहाज से देखा जाए तो यह दर 98 रुपये और देशी शराब की औसत दर 57 रुपये है. बाकी बचे 23 रुपये अन्य तरह की लोकल दारू आदि पर खर्च होते हैं. अंग्रेजी शराब पीने के मामले में हिमाचल पूरे भारत देश में पांचवें और देशी शराब पीने में तीसरे नंबर पर है. हैरानी की बात है कि भारत में इस मामले में छोटा राज्य अरुणाचल पहले और पंजाब दूसरे नंबर पर है.

हिमाचल में 2500 शराब की दुकान-राज्य में इस समय 2500 के करीब वाइन शॉप्स (Wine shop in himachal) के जरिए शराब की बिक्री होती है. इनमें अलग-अलग लाइसेंस के आधार पर शराब की बिक्री होती है. प्रदेश में देशी शराब की सबसे अधिक दुकानें हैं. इनकी संख्या 1700 के करीब है. इसके अलावा 370 अंग्रेजी शराब की दुकानें हैं. हर शराब दुकान पर औसतन 130-150 शराब की बोतलें हर दिन बिकती हैं ये वो आंकड़े हैं, जो वैध माने जाते हैं. इसके अलावा स्थानीय स्तर पर ग्रामीण लोकल शराब निकालते हैं. इसे झोल व अंगूरी कहा जाता है. हिमाचल में हर साल अवैध शराब की भट्टियां पकड़ी जाती हैं. लाखों लीटर लाहन नष्ट की जाती है. अक्सर मीडिया में ग्रामीण इलाकों में शराब ठेकों के खिलाफ महिलाओं के प्रदर्शन की खबरें सुर्खियां बनती हैं.

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शराब बेचना सरकारों की मजबूरी- पूर्व आईएएस ऑफिसर और वित्त विभाग संभाल चुके केआर भारती मानते हैं कि नशा किसी भी समाज के लिए घातक है, लेकिन सरकारों की यह मजबूरी रहती है कि उन्हें राजस्व भी अर्जित करना होता है. शराब की बिक्री रोकी जानी चाहिए, शराबबंदी होनी चाहिए या नहीं, यह एक सामाजिक बहस का मुद्दा है. देखा गया है कि जिन राज्यों में शराबबंदी लागू हुई वहां शराब का अवैध कारोबार फलने-फूलने लगा. सामाजिक कार्यकर्ता जीयानंद शर्मा का मानना है कि इस विषय में एक सर्वमान्य निर्णय लेकर कुछ ऐसा प्रावधान किया जाए ताकि शराब की बिक्री सीमित हो सके.

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद लगी थी कुछ लगाम-सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि नेशनल हाई-वे से शराब ठेके उठा दिए जाएं, जिसका तोड़ निकालने के लिए सरकार ने स्टेट रोड को डी-नोटिफाई कर दिया है. वहीं, एनएच को भी डी-नोटिफाई करने को केंद्र सरकार को लिखा था. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद यहां पर शराब ठेकों की गिनती 1822 से घटकर 1017 ही रह गई थी, जिसे आने वाले दिनों में बढ़ाया गया.

क्या कहती है जयराम सरकार की आबकारी नीति-हिमाचल में नई आबकारी नीति (new excise policy in Himachal) एक जुलाई 2021 से लागू हो गई है और 31 मार्च, 2022 तक नौ महीने के दौरान नई नीति के तहत शराब बिक्री और सप्लाई का काम होगा. नई नीति के तहत लाइसेंस फीस और एक्साइज ड्यूटी कम होने से देशी और भारत में निर्मित विदेशी शराब के कम कीमत वाले ब्रांड सस्ते किए गए हैं. नीति में शराब उत्पादक कंपनियों को ईएनए की कंपलसरी टेस्टिंग के प्रावधानों में छूट की व्यवस्था की गई है.

नई नीति से अर्जित होगा अधिक राजस्व- नई नीति के तहत एमआरपी से ज्यादा दाम पर शराब बेचने वाले विक्रेता पर कम जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है. विदेशी और महंगी शराब की उपलब्धता बनाए रखने के लिए थोक विक्रेताओं को अब किसी स्टेट कस्टम बांडेड वेयरहाउस से शराब लेने की छूट दी गई है. राज्य कर एवं आबकारी आयुक्त यूनुस ने बताया कि नई नीति से सरकार को पिछले साल की तुलना में 228 करोड़ रुपये बढ़कर करीब 1829 करोड़ का राजस्व अर्जित होगा. पहली बार पेट्रोलियम कंपनियों को सप्लाई करने के लिए एथनॉल उत्पादन के लिए अलग से नए लाइसेंस का प्रावधान किया है.

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