हैदराबाद : नागरिकता संशोधन कानून 2019 (CAA) के पास होने के बाद अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने का रास्ता साफ हो गया था. मगर यह उसमें समय सीमा का पेंच है. अब सवाल यह है कि 31 दिसंबर 2014 के बाद या अभी पिछले दो महीनों में जो हिंदू या सिक्ख अफगानिस्तान छोड़कर भारत आए हैं उनका भविष्य क्या होगा?
अफगानिस्तान में तालिबान राज शुरू होने के बाद वहां रह रहे हिंदुओं और सिखों को भारत लाने की कवायद जारी है. भारत सरकार ने इस ऑपरेशन को 'देवी शक्ति' का नाम दिया है. केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया कि 24 अगस्त तक अफगानिस्तान से 626 लोगों को सुरक्षित बाहर निकाला गया, जिसमें भारत के 228 नागरिक हैं. अफगानिस्तान के सिख समुदाय के 77 लोगों को भी सुरक्षित बाहर निकाला गया है.
इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर भी बयान दिया. उन्होंने दावा किया कि नागरिकता एक्ट में 2019 में हुए संशोधन के कारण वहां से आए हिंदू और सिक्खों को नागरिकता दी जा सकती है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने भी लखनऊ के कार्यक्रम में कहा कि अफगानिस्तान से आए अल्पसंख्यकों को नागरिकता संशोधन कानून 2019 से फायदा मिलेगा. इन नेताओं के दावों के बाद नागरिकता संशोधन कानून 2019 की बारीकियों की पड़ताल शुरू हुई.
नागरिकता संशोधन कानून (CAA) पर पहले भी काफी बवाल कट चुका है. 2019 में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया गया. यह दिसंबर 2019 में पारित किया गया था और 10 जनवरी, 2020 से लागू हुआ था. इस नए कानून के हिसाब से अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से सताए गए धार्मिक अल्पसंख्यकों ( हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी या ईसाई) के लिए भारतीय नागरिकता दी जा सकती है. मगर शर्त यही है कि इसका लाभ वही अल्पसंख्यक ले सकेंगे, जो 31 दिसंबर 2014 के पहले इन देशों से भारत आए. यानी जुलाई-अगस्त में अफगानिस्तान से आए हिंदू और सिक्खों को इसका लाभ नहीं मिलेगा.