नई दिल्ली.'आजु बिरज में होरी रे रसिया, होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया; कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ कमोरी रे रसिया.' कुछ ही दिनों बाद मनाया जाएगा फाल्गुन माह का प्रमुख पर्व. यह हिंदू पर्व है लेकिन इसमें हर धर्म के लोग घुल मिल जाते हैं. हम बात कर रहे हैं रंगों के पर्व होली की, जिसमें लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को गुलाल से रंग देते हैं.
बच्चे से लेकर बूढे तक रंगों से खेलते हैं और होली के पर्व पर घरों में तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं. पिछली बार की तरह इस बार भी होली का पर्व करोना की वजह से फीका पड़ सकता है. देश में कोरोना की दूसरी लहर ने भी पैर पसारना शुरू कर दिया है. इसके बावजूद लोगों में गुलाल से खेलने का जोश कम नहीं हुआ है.
रंगों का यह पर्व देश के कोने-कोने में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. कहीं, धुलेंडी, शिमगो या शिमगा, लठमार होली, तो कहीं दोल पूर्णिमा, फाल्गुन पूर्णिमा या रंगपंचमी के नाम से प्रसिद्ध है. आइए जानें कि किस क्षेत्र में होली कैसे मनायी जाती हैं.
50 दिनों तक चलती है ब्रज की होली
भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली ब्रज में होली सबसे अनोखी और आकर्षक होती है. केवल एक या दो दिन नहीं बल्कि पूरे 50 दिनों तक यहां गुलाल उड़ता है. उत्तर प्रदेश के बृज या बृजभूमि के नाम से प्रसिद्ध ब्रज मंडल में वसंत पंचमी से ही मंदिरों में भगवान के नित्य प्रति के श्रृंगार में गुलाल का प्रयोग होने लगता है. होलिका जलाए जाने वाले स्थानों पर होली के डंडे गाड़ दिए जाते हैं. शिवरात्रि से ढोल और ढप के साथ लोकगीत शुरू हो जाते हैं.
वृंदावन में फूलों की होली
फाल्गुन शुक्ल एकादशी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी तक (पूरे पांच दिन) वृंदावन के प्रभु बांके बिहारी मंदिर में सुबह-शाम गुलाल, टेसू के रंग और इत्र व गुलाब जल आदि से जबरदस्त होली खेली जाती है.
मौके पर गुलाल के साथ लड्डू और जलेबी की थाली भी सजाई जाती है. वहीं, वृंदावन में रास-लीलाओं के दौरान राधा व उनकी सखियां तथा कृष्ण व उनके सखा फूलों से परस्पर होली खेलते हैं.
फूलों की होली ऐसी खेली जाती है कि राधा-कृष्ण फूलों की वर्षा से उसके अंदर ढक जाते हैं. लीला स्थल पर फूलों का विशाल ढेर लग जाता है. इस ढेर से निकलते हुए राधा-कृष्ण जब इन फूलों को अपने दोनों हाथों से चारों ओर उछालते हैं तो बड़ा ही मनोरम दृश्य उत्पन्न होता है.
नंदगांव के हुरियारों पर भारी पड़तीं हैं बरसाना की गोपिकाएं
बरसाना में नंदगांव के हुरियारों (पुरुषों) और बरसाना की गोपिकाओं (महिलाओं) के बीच लट्ठमार होली खेली जाती है. इस होली में नंदगांव के गोस्वामी स्वयं को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मानते हैं और बरसाना की गोपिकाएं अपने को राधारानी का प्रतिनिधि मानतीं हैं.
होली के दिन बरसाना की गोपिकाएं नंदगांव के गोस्वामी को रंग की बौछारों के बीच प्रेम भरी गालियां देती हैं.
साथ ही श्रृंगार रस से भरे हंसी-मजाक भी होते हैं. इसके बाद बरसाना की गोपियां अपने-अपने घूंघट की ओट से नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों की बौछार करती हैं. गोपिकाओं की लाठियों के प्रहारों से नंदगांव के हुरियारों की ढालें छलनी हो जाती हैं.
ओडिशा में मनाई जाती है दोल पूर्णिमा
ओडिशा राज्य में होली का दूसरा नाम 'दोल पूर्णिमा' भी है. इस मौके पर भगवान कृष्ण और राधा की प्रतिमाओं को विमान पर विराजित कर घर-घर तक ले जाया जाता है. वहां उनकी पूजा होती है और भोग लगाया जाता है.