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विविध संस्कृति और परंपरा का अनोखा त्योहार है होली

पूरे देश में होली का उत्सव बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है. भारत की विविध संस्कृति और परंपरा इसको और दिलचस्प कर देती है. रंगों के पर्व होली पर लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को गुलाल लगाकर गले मिलते हैं. रंगों का यह पर्व देश के कोने-कोने में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. पढ़ें स्पेशल रिपोर्ट...

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Published : Mar 23, 2021, 9:37 PM IST

नई दिल्ली.'आजु बिरज में होरी रे रसिया, होरी रे रसिया बरजोरी रे रसिया; कौन के हाथ कनक पिचकारी, कौन के हाथ कमोरी रे रसिया.' कुछ ही दिनों बाद मनाया जाएगा फाल्गुन माह का प्रमुख पर्व. यह हिंदू पर्व है लेकिन इसमें हर धर्म के लोग घुल मिल जाते हैं. हम बात कर रहे हैं रंगों के पर्व होली की, जिसमें लोग गिले-शिकवे भुलाकर एक-दूसरे को गुलाल से रंग देते हैं.

बच्चे से लेकर बूढे तक रंगों से खेलते हैं और होली के पर्व पर घरों में तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं. पिछली बार की तरह इस बार भी होली का पर्व करोना की वजह से फीका पड़ सकता है. देश में कोरोना की दूसरी लहर ने भी पैर पसारना शुरू कर दिया है. इसके बावजूद लोगों में गुलाल से खेलने का जोश कम नहीं हुआ है.

रंगों का यह पर्व देश के कोने-कोने में अलग-अलग नामों से जाना जाता है. कहीं, धुलेंडी, शिमगो या शिमगा, लठमार होली, तो कहीं दोल पूर्णिमा, फाल्गुन पूर्णिमा या रंगपंचमी के नाम से प्रसिद्ध है. आइए जानें कि किस क्षेत्र में होली कैसे मनायी जाती हैं.

50 दिनों तक चलती है ब्रज की होली

भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थली ब्रज में होली सबसे अनोखी और आकर्षक होती है. केवल एक या दो दिन नहीं बल्कि पूरे 50 दिनों तक यहां गुलाल उड़ता है. उत्तर प्रदेश के बृज या बृजभूमि के नाम से प्रसिद्ध ब्रज मंडल में वसंत पंचमी से ही मंदिरों में भगवान के नित्य प्रति के श्रृंगार में गुलाल का प्रयोग होने लगता है. होलिका जलाए जाने वाले स्थानों पर होली के डंडे गाड़ दिए जाते हैं. शिवरात्रि से ढोल और ढप के साथ लोकगीत शुरू हो जाते हैं.

वृंदावन में फूलों की होली

फाल्गुन शुक्ल एकादशी से फाल्गुन शुक्ल पूर्णमासी तक (पूरे पांच दिन) वृंदावन के प्रभु बांके बिहारी मंदिर में सुबह-शाम गुलाल, टेसू के रंग और इत्र व गुलाब जल आदि से जबरदस्त होली खेली जाती है.

मौके पर गुलाल के साथ लड्डू और जलेबी की थाली भी सजाई जाती है. वहीं, वृंदावन में रास-लीलाओं के दौरान राधा व उनकी सखियां तथा कृष्ण व उनके सखा फूलों से परस्पर होली खेलते हैं.

फूलों की होली ऐसी खेली जाती है कि राधा-कृष्ण फूलों की वर्षा से उसके अंदर ढक जाते हैं. लीला स्थल पर फूलों का विशाल ढेर लग जाता है. इस ढेर से निकलते हुए राधा-कृष्ण जब इन फूलों को अपने दोनों हाथों से चारों ओर उछालते हैं तो बड़ा ही मनोरम दृश्य उत्पन्न होता है.

नंदगांव के हुरियारों पर भारी पड़तीं हैं बरसाना की गोपिकाएं

बरसाना में नंदगांव के हुरियारों (पुरुषों) और बरसाना की गोपिकाओं (महिलाओं) के बीच लट्ठमार होली खेली जाती है. इस होली में नंदगांव के गोस्वामी स्वयं को श्रीकृष्ण का प्रतिनिधि मानते हैं और बरसाना की गोपिकाएं अपने को राधारानी का प्रतिनिधि मानतीं हैं.

होली के दिन बरसाना की गोपिकाएं नंदगांव के गोस्वामी को रंग की बौछारों के बीच प्रेम भरी गालियां देती हैं.

साथ ही श्रृंगार रस से भरे हंसी-मजाक भी होते हैं. इसके बाद बरसाना की गोपियां अपने-अपने घूंघट की ओट से नंदगांव के हुरियारों पर लाठियों की बौछार करती हैं. गोपिकाओं की लाठियों के प्रहारों से नंदगांव के हुरियारों की ढालें छलनी हो जाती हैं.

ओडिशा में मनाई जाती है दोल पूर्णिमा

ओडिशा राज्य में होली का दूसरा नाम 'दोल पूर्णिमा' भी है. इस मौके पर भगवान कृष्ण और राधा की प्रतिमाओं को विमान पर विराजित कर घर-घर तक ले जाया जाता है. वहां उनकी पूजा होती है और भोग लगाया जाता है.

कुछ स्थानों पर भगवान श्रीजगन्नाथ की प्रतिमा की भी पूजा होती है, जिन्हें भगवान कृष्ण का एक और अवतार भी माना जाता है. बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में शाम को होलिका जलाई जाती है.

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एमपी, छत्तीसगढ़ में धुलेंडी की धूम

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में होलिका दहन के बाद धुलेंडी मनाई जाती है. यहां के आदिवासियों में होली की खासी धूम होती है. मध्यप्रदेश में झाबुआ के आदिवासी क्षेत्रों में 'भगोरिया' नाम से होलिकोत्वस मनाया जाता है. भगोरिया के समय धार, झाबुआ, खरगोन आदि क्षेत्रों के हाट-बाजार मेले का रूप ले लेते हैं और हर तरफ फागुन और प्यार का रंग बिखरा नजर आता है.

इसी प्रकार छत्तीसगढ़ में होली को होरी के नाम से जाना जाता है और इस पर्व पर लोकगीतों की अद्भुत परंपरा है.

गली-गली में नगाड़े की थाप के साथ होरी शुरू होती है. बसंत पंचमी को गांव के बईगा द्वारा होलवार ( जहां जलती है होली) में कुकरी (मुर्गी) के अंडे को पूज कर कुंआरी बबूल (बबूल का नया पेड़) की लकड़ी में झंडा बांधकर गाड़ने से फाग उत्सव प्रारंभ होता है. रंग भरी पिचकारियों से बरसते रंगों एवं उड़ते गुलाल में सभी सराबोर हो जाते हैं.

महाराष्ट्र में 'रंगपंचमी', गोवा में 'शिमगो'

महाराष्ट्र में होली को 'फाल्गुन पूर्णिमा' और 'रंग पंचमी' के नाम से जाना जाता हैं. होली पर राज्यभर में गोविंदा होली यानी मटकी-फोड़ होली खेली जाती है. होली के रंगों में घुलने के बाद एक वक्त ऐसा आता है कि युवा सारे मिलकर मटकी-फोड़ होली खेलते हैं.

गोवा के कोंकणी भाषा में होली को 'शिमगो' या 'शिमगा' कहा जाता है. मछुआरा समाज इसे अपने ही अंदाज में मनाते नजर आते हैं.

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दक्षिण भारत के कई शहरों में नहीं मनती होली

दक्षिण भारत के कई शहरों में होली नहीं मनाई जाती है. मुन्नार, अंडमान निकोबार और महाबलीपुरम में भी रंगों वाली होली खेलने से लोग कतराते हैं क्योंकि इस दिन को वे कामदेव के बलिदान के रूप में याद करते हैं.

होलिका दहन के बाद इस क्षेत्र में लोग होलिका की बुझी आग की राख को माथे पर विभूति के तौर पर लगाते हैं. हालांकि, चेन्नई और बेंगुलुरु जैसे कुछ स्थानों पर रंगों वाली होली भी मनाते हैं. तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में भी कुछ स्थानों पर रंगों वाली होली मनाई जाती है.

जब होलिकोत्सव की बात हो रही हो तो पकवानों की चर्चा न हो, ऐसा हो नहीं सकता. भारत में चाहे कोई भी त्योहार हो, घर-घर में स्वादिष्ट व्यंजन और पकवान बनना तो तय है. अलग-अलग राज्यों में त्योहार या किसी अतिथि के आगमन पर खाने के एक से बढ़कर एक व्यंजन परोसे जाते हैं.

रंगों के इस त्योहार में भारत के अलग-अलग राज्यों में विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं. ठंडाई का प्रचलन हर जगह है. नट्स, इलायची, गुलाब की पंखुड़ियों और दूध में बनी ठंडाई की मांग तो होली के मौके पर ही होती है.

होली से गर्मी के मौसम की शुरुआत होती है. इसलिए इस त्योहार में ठंडाई पी जाती है और इसका सेवन गर्मी के मौसम में भी किया जाता है.

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