पटना:जनसंख्या नियंत्रण (Population Control) को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) सीधे लड़कियों की शिक्षा से जोड़ते हैं. मुख्यमंत्री पोस्ट ग्रेजुएट स्तर तक लड़कियों को मुफ्त शिक्षा देने की घोषणा भी करते हैं, लेकिन विडंबना ये कि जब मुफ्त शिक्षा के बदले भुगतान की बारी आती है तो बिहार का शिक्षा विभाग (Education Department) अपने कदम पीछे खींच लेता है.
ऐसे में सीएम नीतीश की घोषणा का क्या मतलब जब लड़कियों को मुफ्त शिक्षा देने के बदले कॉलेज और यूनिवर्सिटीज का कई साल से भुगतान बकाया है. बिहार में लड़कियों को पढ़ाई के लिए पोस्ट ग्रेजुएट स्तर तक कोई खर्च ना करना पड़े इसके लिए सरकार ने तमाम तरह की घोषणाएं की हैं. मैट्रिक और इंटर पास करने पर लड़कियों को रकम भी मिलती है, लेकिन कॉलेज स्तर पर जब पढ़ाई की बात आती है तो लड़कियों को मुफ्त शिक्षा देने वाले कॉलेज और यूनिवर्सिटी सरकारी सिस्टम का दंश झेलने को मजबूर हैं.
2014 में ही बिहार सरकार ने लड़कियों की पूरी शिक्षा मुफ्त में देने की घोषणा की थी. इसमें प्राथमिक से लेकर मास्टर डिग्री तक की मुफ्त शिक्षा की बात कही गई थी. लेकिन, लंबे समय से घोषणा के बावजूद कॉलेज स्तर पर कम से कम यह योजना लागू नहीं हो पाई. लड़कियों को लगातार कॉलेज फीस देना पड़ा. ये मामला पटना हाई कोर्ट भी गया, इसे लेकर हाल ही में पटना हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई और आदेश दिया कि जब घोषणा है तो फिर बिहार में लड़कियों से पैसे क्यों लिए जा रहे हैं. उन्हें तुरंत फीस की रकम लौटायी जाए.
''सरकार को इस बात का जवाब तो सोचना पड़ेगा कि इतनी अच्छी योजना क्यों नहीं परवान चढ़ पाई. बजट का सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा पर बिहार में खर्च होता है और बजट में इस बात की भी चर्चा है कि लड़कियों की शिक्षा पर कितना खर्च होना है, फिर आखिर क्यों शिक्षा विभाग इसे विश्वविद्यालयों को देने में आनाकानी करता है.''- रवि उपाध्याय, वरिष्ठ पत्रकार