हैदराबाद :भारत के बड़े शहरों में कोरोना के मामले कम हो रहे हैं लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में जहां देश की दो तिहाई आबादी रहती है, अभी भी कोरोना से प्रभावित है. इसकी वजह सरकारी सहायता में कमी के अलावा किसी भा स्वास्थ्य सेवा के बुनियादी ढांचे में कमी के अलावा अन्य कई कारण हो सकते हैं.
ग्रामीण भारत में कोविड
देश के कोरोना के मामलों में अप्रैल में ग्रामीण क्षेत्रों में 53 फीसद मामले थे वहीं मौत के कुल आंकड़े का 52 फीसद हिस्सा इन्हीं क्षेत्रों का था. इसी तरह महाराष्ट्र में मई के महीने में 61 फीसद मामले ग्रामीण क्षेत्रों से थे जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 39 फीसद थे. इस प्रकार देशभर में ग्रामीण इलाकों में अप्रैल में 20 फीसद का इजाफा हुआ था. वहीं अप्रैल में उत्तर प्रदेश में कोरोना के मामले 68 फीसद ग्रामीण जिलों से आए तो ओडिशा में ग्रामीण जिलों में यह 85 फीसद रहा.
कोविड -19: ग्रामीण भारत की स्थिति और चुनौतियां
निम्नलिखित अवलोकन भारत में ग्रामीण लोगों की स्थिति को चिह्नित करते हैं। ग्रामीण भारत में कोरोना के मामलों में बढ़ोत्तरी की कई वजह हो सकती हैं. इनमें कोविड-19 को लेकर जनत में भय का माहौल होने के साथ ही कोरोना के टेस्ट सुविधाओं का अभाव होने के साथ ही इसकी रिपोर्ट से देर से मिलना भी था. फलस्वरूप आगे भी संक्रमण की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. अस्पतालों में जहां सुविधाओं का अभाव था वहीं लोगों को आवश्यक दवाएं भी नहीं मिल पा रहीं थीं. दूसरी तरफ पीएचसी में डॉक्टरों व स्टॉफ की कमी इसके बढ़ने के कारणों में से एक थी. हालांकि ग्रामीण इलाकों में अधिकांश हुई मौतें दर्ज नहीं हैं, क्योंकि मृतकों को खेतों और खुले क्षेत्रों में दफनाना आसान है.
हालांकि पिछले साल के विपरीत इस साल निगरानी की वजह से नियंत्रण करने में कुछ हालात संभालने में मदद जरूर मिली. लेकिन लॉकडाउन की वजह से लोगों की आय और आजीविका के स्रोतों को खोने का डर पैदा हो गया. कोरोना की दूसरी लहर ने भारत के ग्रामीण जीवन को प्रभावित किया है. लेकिन इसकी वजह से दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और पुणे जैसे बड़े शहरों को झकझोर कर रख दिया. यहां अस्पतालों और श्मशान घाटों में जगह खत्म हो जाने से कार पार्किंग में भी अंतिम संस्कार किए जा रहे थे.लेकिन महामारी ने अब कई छोटे शहरों, कस्बों और गांवों को अपनी चपेट में ले लिया है जहां तबाही की काफी हद तक रिपोर्ट दर्ज नहीं की गई है.
मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में लगभग 26,000 कोविड पॉजिटिव टेस्ट किए गए, जो 17.3 फीसद पॉजिटिव मरीजों का संकेत देते हैं जो 27 अप्रैल को राज्य के कुल 23 फीसद के आंकड़े से बहुत पीछे नहीं है.ये ग्रामीण मरीज 5 से 25 अप्रैल के बीच मप्र में दर्ज किए गए कुल 189,055 नए मामलों में से लगभग 14 फीसद हैं.वहीं होली के आसपास कई प्रवासी श्रमिक महाराष्ट्र से मध्यप्रदेश में अपने गांव लौटे.जबकि अप्रैल के पहले सप्ताह में गांवों में लक्षण दिखाई देने लगे, लेकिन जब तक मौतों की सूचना नहीं मिली, तब तक उन्हें बड़े पैमाने पर नजरअंदाज किया गया.
राजस्थान
चिकित्सा स्वास्थ्य और परिवार कल्याण रिपोर्ट के अनुसार राजस्थान में कुल मामलों में से लगभग 40 फीसद ग्रामीण क्षेत्रों से सामने आ रहे हैं. राजस्थान भौगोलिक रूप से भारत का सबसे बड़ा राज्य है, जिसकी वजह से दूर-दराज के कोनों तक ऑक्सीजन और रेमडेसिविर जैसी महत्वपूर्ण दवाओं सहित चिकित्सा सहायता प्रदान करने की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. 2021 की पहली तिमाही में पर्यटकों की भारी भीड़ भी ग्रामीण क्षेत्रों में कोरोना के केस में बढ़ोत्तरी का एक कारण थी. दूसरा कारण महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों के साथ व्यापार संबंध भी हैं, क्योंकि इन राज्यों में कोरोना के मामलों में काफ वृद्धि देखी गई थी. वहीं प्रवासी श्रमिकों के आने का सिलसिला भी जारी था.
उत्तर प्रदेश
संभावना है कि उत्तर प्रदेश में 15 से 29 अप्रैल तक हुए पंचायत चुनाव की वजह से ही ग्रामीण उत्तर प्रदेश में कोरोना तेजी से फैला. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों से पता चलता है कि 17 अप्रैल को 170,059 सक्रिय मामलों में से लगभग 29 फीसद उन 18 जिलों से सामने आए, जहां पहले चरण में 15 अप्रैल को मतदान हुआ था. इसके अलावा राज्य में ऑक्सीजन की कमी के कारण भी मौत का आंकड़ा बढ़ा. वहीं राज्य के कई अन्य जिलों और गांवों में भी अस्पतालों में बिस्तर खत्म होने की खबर है.
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल के बीरभूम जिले के बोलपुर ब्लॉक ने मार्च में 15 कोविड-19 मामले दर्ज किए थे जो अप्रैल में, मामले बढ़कर 617 हो गए. जब राज्य में यह बीमारी चरम पर थी तब 90 फीसद लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते हैं, वहां अक्टूबर और नवंबर में 160 और 170 कोरोना संक्रमित लोगों की जानकारी दी गई थी.